ओ फगत संजोग ई है कै भारू अखबार री खबर बणग्यौ। उण दिन अखबार रै बॉक्स में खबर छपी तौ केइयां री चोटी खड़ी होयगी। खबर न खबर रौ नांव। बस, ‘बिन पानी सब सून’ सिरैनांव तळै डब्बी मांन जग्यां में मंड्यौ हौ, “अखबारां में पांणी री कमी नैं लेय’र छप्या मजमूनां नैं पढ’र दूरदराज रौ अेक बूढौ गंवेड़ी भविस में आवण वाळै पांणी रै टोटै नैं लेय’र घणै दिनां तांई चिंत्या में रैयौ अर आखिर में फोबियै अर डिप्रैसन रौ सिकार होयग्यौ। उण रै घरवाळां उण नैं अठै अस्पताळ मांय भरती करायौ है।”
खबर, जठै तांणी अखबार पूग्यौ, पूगी। देस रा जळविदां अर मीडियै सारू भारू छिनेक में महताऊ होयग्यौ। मीडियै रै लोगां अस्पताळ नैं आ घेर्यौ। डाक्टरां पैलां तौ उणां नैं रोक्या, पण फेर कीं सीख-समझावै साथै वां नैं बात करण री छूट देय दिनी। वै भारू कनैं पूग्या तौ वो बोल्यौ, “म्हासूं के बात करौला? बडी लंबी रांमायण है। अठै ई कमरै में तो दवाइयां री गिंध में म्हारौ दम घुटै है। कोई खुली जग्यां होवती तौ हथाई करण रौ मजौ आवतौ।”
वै उण नैं अस्पताळ आगै खुलै पार्क में लेग्या तौ हरी घास माथै ओकडू बैठतौ भारू बोल्यौ, “जी, बोली-भासा री तौ थोड़ी दिक्कत आवैली, पण पुरांणौ फौजी हूं, जरमनी-जापांन देख्या है। ओखौ-सोखौ कांम काढ ल्यांला। समझ में कोनी आवै, कठै सूं सरू करूं? जी, बिंयां तौ म्हारौ गांव, गांव न कोई गांव रौ नांव, बस सौ-सवा सौ घरां री कच्ची-पक्की बस्ती है। पण आं दिनां पूरौ घर-गांव नाक-नाक आयग्यौ है। सगळां नैं आक बरगौ लागण लागग्यौ हूं। लागूंला क्यूं कोनी, जकौ मिनख जंगळ-दिसा जावती लुगायां रा लोटा खोस लेवै अर ऊपर सूं आ सीख देवै कै “हाथ धोय’र के करोली। पांणी पीवण नैं कोनी अर थांनैं ढूंगा धोवण री पड़ी है। गा-खुर कै घींसी कर लिया करौ”, कै फेर बाड़ै-बटोड़ै रै पांणी नैं टंकी-कुंडा मांय ल्या’र रीता देवणियौ आदमी खांड थोड़ौ ई लागैलौ। जकौ गांव आज म्हासूं धाप्यां खड़यौ है, कदैई म्हैं वीं री पाग-पगड़ी रैयौ हूं, पण करमा रा लिख्योड़ा टाळ्या नीं टळै।
हां तौ बात चालै ही सा गांव री, गांव में सुब्ध्या तौ अेक ई कोनी, दुब्ध्या तौ सगळी री सगळी है। बस अेक फोर बाई फोर बस लदूं-पदूं होय’र भातै बगत सै’र जावै है अर हांडी बगत पाछी जावै है। फगत आ’ई बस गांव री सगळी जरूरतां नैं पळोटै है। जे आ टिपज्या तौ आगलै दिन री उडीक ई बंचै है। बिंयां तौ थे जांणता होवौला सा, कै सत्तर पार रै आदमी नैं गांव में कोई खास कांम-धंधौ नीं होवै। खा लियौ-पी लियौ-सुस्ता लियौ। तास-चौपड़ खेल लिया-देख लिया। पोतै-पोतियां नैं खुआ दिया-प्या दिया-सुआ दिया। बस, पण पहाड़ मांन दिन काट्यौ नीं कटै। ईं उमर में नींद ई तौ बिल्ली री नींद आवै है। अेकर आंख्यां ओखी-दोखी लाग तौ ज्या है, पण उघड़गी तौ सारी रात उघाड़ी आंख्यां में ई बीतै है।
अब अेक कैवत है जी, ‘परायौ घर थूकण रौ ई डर!’ अनै ईं उमर में तौ आपरौ घर ई परायौ होयज्या है! “डैण न पड़ै, न पड़न देवै। समक रात मूत-पांणी, खों-खों, खट-पट।” बहू-बेटां रा अै तांना सुणण सूं तौ चोखौ है, जकै पसवाड़ै पड़ौ, वीं ई पड़्या रैवौ। रात कट्टी तो चलौ आदमी जाड़ भींच’र ई कर ले, पण दिन कट्टी बडी ओखी होवै है सा’ब। पण भलौ होवै सरकार रौ, जकौ लारलै बरस पांचवीं तांई रौ अेक इस्कूल खोल दिन्यौ। कलास तौ चलौ ईं साल दूजी ई चालू होयी है, पण आं टाबरां जोग अेक अधखड़ मास्टर अठै आय’र डेरौ जमा लियौ। मास्टर बिंयां तौ भलौ मिनख है जी बिच्यारौ, पण अखबार रौ पूरौ रसियौ है। थे सोचता होवौला कै अखबार गांव में कियां आवतौ होवैलौ। मरणाळौ-सो अखबार आथण बस सूं ई आवै है अर मास्टरजी उण री खाल काढ’र ई छोडै। बस ओ ई अखबार कळै री मूळ है। म्हैं सा, मास्टरजी सूं ई अखबार मांग’र ले आऊं हूं अर म्हारै हाथ चढियोड़ौ अखबार आगलै दिन नूंवौ आयां ई उतरै है। म्हैं पड़्यौ-पड़्यौ मसूरी अर बा’रै री बैठक तांई सगळौ पढ ज्याऊं हूं। फोतरियौ ई बिन्यां पढ्यां नीं छोडूं। बिंयां तौ म्हैं अणपढ हूं, पण जिंयां कै थांनै बतायौ पुरांणौ फौजी हूं अर जरमनी-जापांन देख्या है, ईं खातर अखबार पढणौ म्हां सारू कोई मुस्कल बात कोनी। अखबार रै सा’रै म्हारी दिन कट्टी ठीक ई होवण लागगी ही, पण आ’ई दिन कट्टी म्हां सारू आफत री जड़ बणगी।
हरेक इकांतरै-दूसरै अखबार में पांणी री कमी री चरचा में आधौ पन्नौ भर्यौ मिलतौ। अठै सूं ठाह नीं म्हैं आगूंच री के-के सोचण लाग जांवतौ। जिंयां कै जे पांणी निवड़ग्यौ तौ दुनियां रौ के होवैलौ? लोग तिस्या मर ज्यावैला। परळै होय ज्यावैली। बस अठै सूं ई म्हनैं लागण लागग्यौ कै, कै तौ म्हारी साठी बुध नाठी होयगी कै फेर म्हारा पुरजा ढीला होयग्या है, बस आ सोचतां-सोचतां पांच-सात दिनां मांय ई म्हैं ऊटपटांग हरकतां करण लागग्यौ। अब सगळी बातां तौ म्हनैं याद कोनी, पण फेर ई पांच-सात घटनावां चेतै है। आं करतूतां नैं कर्यां पछै म्हनैं पिछतावौ ई होवतौ हौ कै ओ म्हैं के कर मेल्यौ? पण हरेक दूसरै-चौथै म्हासूं कोई न कोई टंटौ-बखेड़ौ हौ ई ज्यावतौ।
अब देखौ म्हारौ छोरौ अणपढ है। कोई दोयेक महीनां पैलां जणा वो न्हावण लागर्यौ हौ तौ म्हनैं बेरौ नीं के होयौ। म्हैं अखबार उण कनै लेयग्यौ अर बोल्यौ, “ओ देख, इण में के लिख्यौ है, देख-देख, पढ, मोटै-मोटै आंकां मांय लिख्यौ है— आगलौ वर्ल्ड वार पांणी खातर होवैलौ। पूरौ लेख पांणी री कमी माथै है। पांणी ढंग सूं बरत्या कर।” म्हारी इण लीला सूं सा वो तौ हाकौ-बाकौ रैयग्यौ अर थोड़ी ताळ फेर म्हनैं ई सरम आई। अब थे बताऔ म्हैं म्हारै सिरबाळां नैं पाड़ण रै टाळ और कर ई के सकै हौ?
अब डेढेक महीनै पैली री बात है। मंगळौ गुजरग्यौ। मंगळै नैं थे कोनी जांणौ। म्हारै ई गांव रौ अेक पाकौ आदमी हौ। लोग-बाग वीं री अरथी “रांम नांम सत है, सत बोल्यां गत है” बोलता ले जार्या हा। कीं लुगायां जोहड़ै सूं पांणी ल्यावण लागरी ही। वां अरथी आवती देखी तौ सिरघड़ा उतार्या अर उठैई पांणी ढाळ दियौ। अब पांणी ढाळणौ तौ थे कोनी जाणता होवौला। म्हारै गांवां में अेड़ौ रिवाज है। अरथी रै साम्हीं सूं कोई पांणी लेय’र नीं जावै। सिरघड़ौ उठैई मूंधा दियौ जावै है, जकौ मुरदै नैं आगै पांणी मिळै। अब सा’ म्हनैं पतौ नीं के होयौ। अखबार तौ म्हा कनै हौ ई, कै चलौ दाग सूं आवता अखबार मास्टरजी नैं दे द्यांला अर नूंवौ ले आवांला। इस्कूल मुसांणा रै मारग में ई है। ‘रांम नांम सत’ तौ म्हैं बिचाळै ई छोड दिन्यौ अर सीधौ पांणी ढाळती लुगायां कनै जा पूग्यौ अर अखबार खोल’र बोल्यौ, “अरे जीवतौ जन पांणी बिना मरैलौ अर थे मुरदां खातर पांणी ढाळ री हौ। ओ देखौ, आपणै देस रै प्रधानमंत्री कैयौ है—जळ जीवन है। इण नैं बचा’र राखौ। पांणी निवड़ रैयौ है।” ओ माजरौ देख’र अरथी सागै चालणियां में अेकर तौ रांम-नांम सत बंद होयग्यौ अर बापड़ी लुगायां रै थड़ा बंधग्या। म्हैं कीं ताळ तौ उठैई चुपचपाटै खड़्यौ रैयौ अर फेर आपरी करणी माथै पिछतातौ, सिर कुचरतौ होळै-होळै घरे आयग्यौ।
अब सा, अखबारां में आं दिनां पांणी सारू जकौ कीं छपतौ म्हैं उण नैं ले ज्या’र लोगां नैं दिखावण लागग्यौ। कीं ताळ तौ म्हैं उणां नैं अखबार बांच’र सुणावतौ फेर पांणी रै बारै में म्हारी राय प्रकटतौ अर फेर लास्ट में वां सूं अेक सवाल करतौ कै “साच्याणी पांणी निवड़ ज्यावैलौ के?” वै बापड़ा केई ताळ तांई तौ म्हारै मूंढै कांनी तकांता अर फेर दया-भाव सूं म्हनैं समझावता। पण म्हैं समझण री जग्यां वांनैं ई कैवतौ, “देखज्यौ, आगलै बीस बरस में पांणी खातर मारा-मारी मच ज्यावैली।”अठै सूं जिंयां ई म्हारी मन भराई नीं होवती तौ सीधौ मास्टरजी रै अठै पूग ज्यावतौ अर जावतां ई सीधौ पूछतौ, “मास्टरजी, थे तौ स्याणा हौ, के साच्यांणी पांणी निवड़र्यौ है!” वै आपरी बातां सूं बिलमा’र म्हनैं राजी कर देवता अर म्हैं सीधौ घरे आ जावतौ।
हां, वा छोरै वाळी तौ थांनैं बताणी ई भूलग्यौ। वीं दिन दिनूगै-दिनूगै ई म्हैं चौकी माथै बैठ्यौ होकौ पीवण लागर्यौ हौ। म्हारै पाड़ौस रौ अेक छोरौ आपरौ ऊंटगाड़ौ जोड़्यां खेत गयौ। म्हैं कोई खास ध्यांन को कर्यौ नीं। अब बेरौ नीं घंटै-खंड फेर म्हारै माथै में के आई। म्हैं खड़्यौ होय’र सीधौ वीं रै खेत री डांडी पकड़ ली। म्हैं सोच्यौ, सा’ळौ जेई’र कुंहाड़ौ लेय’र गयौ है तौ दरखत काटैलौ। अर ओ ई होयौ। जणा म्हैं खेत पूग्यौ तौ वो दरखत काटण लागर्यौ हौ। वीं नैं दरखत काटतौ देख’र म्हैं सुध-बुध खो बैठ्यौ अर दे तेरै री, दे मेरै री। उण नैं गांव रै गुवाड़ मांय ल्यार छोड्यौ। गुवाड़ में रोळौ मच्योड़ौ देख’र दस-पंदरै आदमी और जुड़ग्या। लोगां पूछ्यौ, “के होयौ?” तौ म्हैं कैयौ, “के कोनी होयौ, ओ दरखत काटै हौ दरखत। डंडौ इण नैं। नीं तौ ओ ओजूं दरखत काटैलौ। दरखत काट्यां मेह कोनी बरसै। काळ पड़ै है अर पांणी, पांणी निवड़ ज्यावैलौ। तळसीर तौ सूकगी अर तीजौ काळ ई पड़ग्यौ। काटण द्यौ ईं नैं दरखत अर फेर थे ई देखियौ मजा!” गांव वाळा म्हनैं समझा-बुझा’र घरे छोडग्या। जणा ईं बात रौ ठाह म्हारै चाळीस पार रै छोरै नैं पड़्यौ तौ बापड़ौ म्हारै इण वैवार सारू वां रै घरे माफी मांग’र आयौ।”
अब दिन बीस-पच्चीस पैली री बात बताऊं। मुंह-अंधारै ई उठ’र फिरण चल्यौ ज्याऊं हूं। उण दिन उठ’र जंगळ-दिसा फिरण चल्यौ गयौ। आवती बरियां किणी रै बाड़ै-बटोड़ै सूं गोबर थापण वाळौ घड़ियौ उठा ल्यायौ अर आय’र कुंड मांय रीता दियौ। कुंड म्हारै अठै हरेक घर में है सा। बस, बरसात रौ पालर पांणी आं ई कुंडां में भेळौ करां हां अर पीवां हां। जणा घरांळा ओ देख्यौ तौ वै बोल्या, “ओ के कर्यौ?” म्हैं म्हारै ई नसै में हौ। बोल्यौ, “म्हारी तौ उमर नाकै लागी खड़ी है। घणौ जीऊंला तौ दो-च्यार बरस और जी ल्यूंला। पण बेटै-पोतां नैं कियां मर ज्याण द्यूं? पांणी रौ टोटौ आवैलौ, इणी खातर जिसौ ई मिल्यौ, लिआयौ। चलौ कीं स्टॉक तौ होयौ, जळ में के मळ?”
अब सा’ब म्हारी आं हरकतां सूं घर-गांव तंग आयग्यौ। पण म्हारै तौ माथै में पांणी ई पांणी मंड्यौ हौ। म्हनैं पांणी टाळ कीं को सूझतौ हौ नीं: इणी खातर म्हारी अै कारगुजार्यां दिन-दूणी रात-चौगुणी बधण ई लाग रैयी ही। वीं दिन कोई दसेक बजी री बात होवैली। मल्लू बारै बाखळ में बैठ्यौ न्हावण लागर्यौ हौ। वो तौ न्हावतौ रैयौ’र म्हैं देखतौ रैयौ। पण चांणचुकै ई पतौ नीं म्हारै दिमाग मांय के आई। म्हैं उठ्यौ अर सीधौ धोती बांधतै मल्लू कनै जा पूग्यौ’र धूड़ रा दो-तीन धबसा भर’र मल्लू रै मसळ दिन्या’र बळेड़ै माथै लूंण छिड़कतौ बोल्यौ, “क्यूं न्हा-न्हा’र तौ तूं होय ज्यावैलौ नीं गोरौ। और न्हा ले।” अब घंटै’क फेर म्हैं कीं ठीक होयग्यौ। म्हैं उण रै कनै गयौ’र कैयौ, “यार मल्लू, तूं किणी नैं बताई ना।” उण आपरै घरवाळां नैं टाळ’र आ बात और किणी नैं नीं बताई। पण म्हैं वीं दिन फेर उण रै साम्हीं इत्तौ कच्चौ होयौ कै आइंदै उण सूं आंख नीं मिला सक्यौ। वो काल अठै अस्पताळ में म्हासूं मिलण ई आयौ हौ सा।
अब सा, जिकै दिन ईं अस्पताळ में आयौ, वीं दिन दिनूगै री बात है। वो तौ गांव में संपत है, गांव-रांम है। नीं तौ लोग सिर फोड़-फाड़’र मर-मार देवै। होयौ इंयां कै भाखपाटै ई कीं छोरी-छापरियां पांणी रा लोटा लियां जंगळ-दिसा फिरण जाय री ही। म्हैं वां रै हाथां में पांणी सूं ओळ-झोळ लोटा देख्या तौ होस खो दिया। वा रा लोटा खोस लिया’र बोल्यौ, “छोरियो, पांणी निवड़ण वाळौ है। गा-खुरियौ कर लिया करौ। कै फेर घींसी कर लिया करौ।” अब सा’ब थे गा-खुरियौ अर घींसी तौ नीं जाणता होवौला। जाणौला कठै सूं? थांरै पांणी रौ टोटौ कोनी। स्यात इणी खातर थांनैं कणा ई घींसी कोनी करणी पड़ी। म्हारै गांव में पांणी री तौ सदां ई कमी ही। अब आदमी जणा जंगळ फिर’र आवै है तौ पांणी री जग्यां बेकळू रेत माथै ई खुद नैं घींसै है उण नैं ई घींसी कैवै है, ओ ई गा-खुरियौ है सा, पांणी री जग्यां रेत सूं ढूंगा धोवणौ। खुद म्हैं अस्पताळ मांय आवण सूं पैलां दो महीनां तांई हाथ नीं धोया है। बस घींसी कर’र आ जावतौ। न्हावण रौ तौ नांव लेवणौ ई कसूर रैयौ है। अठै आवण सूं पैलां न तौ खुद न्हायौ हूं अर न ई घरवाळां नैं न्हावण दिया है। घरवाळा जे चोरी-चपोरी न्हा लिया तौ बात न्यारी है, नीं तौ नीं।
अब घरवाळां हारी नै आक चाब्या है। के करै बापड़ा! पण दस दिनां में कीं ठीक लागै है। डाक्टरां कैयौ है, “अखबार ना पढी ना, पांणी घणौं ई है। टोटौ नीं आवैलौ। चिंत्या ना करी।” अब सो कीं ठीक लागै है अर नींद ई खूब आवै है सा! अब थे तौ अखबार वाळा हौ, पढ्या-लिख्या’र समझदार हौ सा। म्हनैं नीं बेरौ, के छापोला और के कोनी, अर न ई म्हनैं कोई छापेड़ै नैं पढण देवैलौ। पण अेक बात साची बताइयौ सा’ब कै— के साच्यांणी पांणी निवड़ ज्यावैलौ?