मिसेज सोहिनी ‘किचन’ में हा; हां वा ‘किचन’ ही, रसोई नीं ही। अेक रसोई मिसेज सोहिनी रै टाबरपणै में ही, जिणमें थेपड़्यां री भोभर हेटै सकरकंदी ओटीजती अर प्याज जिणमें वर्जित हा। जूत्यां तौ खैर कोसे’क अळगी खोलीज जावती। दादी जींवती रैयी जित्तै वीं में सिनांन कर्‌यां टाळ बड़णौ जुलम हौ। वा रसोई, असल में तौ अेक रसोवड़ौ हौ— जिण रा सैंग छौंक-बघार चाखता थका मिसेज सोहिनी बडा होया अर सासरै जाय पूग्या। सासरै सूं चाल’र मिसेज सोहिनी जैपुर आयग्या अर और बडा होयग्या। टाबरपणै री उण रसोई रौ तौ अबै मिसेज सोहिनी नैं हेंसणै कै खीझणै टाळ कीं अरथ नीं समझ आवै। साची बात है। सौ कीं कितरौ ‘एवरेज’ हौ— धुआंसै में छींकल्डा करतां बूढी होवती दाद्यां, नान्यां अर मावां! इण गत मिसेज सोहिनी री समझदारी बढती गई।

अबै इण नैं आप मिसेज सोहिनी री समझदारी नीं, तौ कांई कैवोला कै अबार वै आपरै किचन में हा; टेलीफोन ड्राइंग-रूम में हौ; घंटी पूरी बाजणै री ठौड़ फकत अेकर ‘ट्रिंग’ कर’र रैयगी अर मिसेज सोहिनी समझग्या कै फोन किण रौ है!

“आऊं-आऊं।” मिसेज सोहिनी मळाई री कटोरी माथै चीणी बुरकांवता कैयौ।

निस्चै ‘आऊं-आऊं’ टेलीफोन सारू हौ। फोन री अेक अर्थसास्त्रीय तजबीज ही। फोन चित्राजी रौ हौ। वां रै प्राइवेट कनैक्सन हौ, मिसेज सोहिनी रै सरकारी। चित्राजी नैं बात करणी होवै तौ वै फकत अेकर ‘रिंग’ कर’र धर देवै। लोकल कॉल रा पइसा बच जावै अर खरचौ सरकार रै खातै में मंड जावै। चित्राजी रै सुभाव री अधीरताई किणी सूं अछांनी नीं है, इण खातर मिसेज सोहिनी झट उत्तर दियौ। मिसेज सोहिनी रै ‘सर्किल’ में सैंग तरै री बांनगी है— कलावती, मोनिका, अभिलासा, ऊसा, देवयानी अर... हे भगवांन! सैंग नांव अेकै समचै चेतै आवणा कोई सेज कांम है?

मिसेज सोहिनी कटोरी लाय’र डाइनिंग-टेबल पर मेल्ही अर फोन कांनी मूंढौ कर्‌यौ कै गौड़ साहब न्हाय’र बारै निकळ्या। माथै में ऊबर्‌योड़ा थोड़ा-घणा गीला केसां में आंगळ्यां फेरतां गौड़ साहब री निजर आपरी घरवाळी सूं मिळी अर वै मुळक खिंडाय दीवी। गौड़ साहब दांना आदमी हा। वै मुळकता रैवता। वै जे आपरी घरवाळी री किणी बात नैं आंख मींच’र मूरखता समझता, तौ हेंस’र दांत दिखाय देवता। जितरी मुळक मधरी वांरी मुळक होवती, उण रौ म्यांनौ उतरौ ऊंडौ होवतौ— बात जाणनी भोत मुसकल ही।

अबार वै अेकदम ओपती अर मधरी मुळक मुळक्या कै :

“कांई मतलब?” मिसेज सोहिनी आंख्यां तरेर’र पूछ्यौ।

“कीं नीं... म्हैं तौ कैवूं कै रात थारै माथै में कित्तौ जोरदार दरद हौ अर अबै कांम वाळी फेर नीं आवैला।” कैय’र गौड़ साहब गीली आंगळ्यां लपेट्योड़ै तोलियै रै पूंछ लीवी।

“थांरै तौ ठंडी लीक पड़गी।” मिसेज सोहिनी रै जांणै टांटिया लड़ग्या, “पण सुण लो कांन खोल’र कै चावै वीं रा हजार नखरा सहन करूं, पण वा आवैला जरूर... वा नीं, तौ वीं री बैंन कोई और आवैला। म्हैं अबार चित्रा सूं बात करूं।”

गौड़ साहब नैं दफ्तर पूगणौ हौ। वै किचन में बड़ग्या। अेक सेंची रै खूंणै में दोय-तीन देवतावां री तस्वीरां ही। साम्हीं मामूली पूजा-पाठ री सामग्री ई। गौड़ साहब हरमेस दांई दोय अगरबत्त्यां भेळी सिळगाई अर च्यार चक्कर तस्वीरां रा देय’र स्टैंड पर टांग दीवी। चटपट हाथ जोड़’र वै बेड-रूम में गया अर कपड़ा पैर’र डाइनिंग-टेबल कनै आय ऊभग्या।

“हाय राम!” इण बिचाळै मिसेज सोहिनी फोन मिलाय लियौ हौ; हेलौ कैय दियौ हौ अर चित्राजी री किणी बात पर चिमक’र कैयौ, “अबै म्हैं इत्ती खाली बोतलां कठै सूं लाऊं?” म्हारा अै तौ पीवै कोयनी।”

कैय’र मिसेज सोहिनी ‘आपरै आं’ कांनी देख्यौ।

गौड़ साहब तौ जांणै इणी नैं उडीकै हा, झटकै सागै आंख्यां मींच’र वै नाड़ नैं अेक खम देय न्हांख्यौ।

समझौ कै हद होयगी।

पोज बणावणौ गौड़ साहब री पुरांणी आदत। वै घणी दफै मूंढै में पांन री पीक भर्‌यां इण तरै आंख्यां मींच देवै अर फेर वां नैं कीं कैवण-सुणण री दरकार नीं होवै। मिसेज सोहिनी वां रौ अेक-अेक पेच जांणनै रौ दावौ राखै। इण तरीकै नैं वै हद दरजै री मखौलबाजी मांनै। इण नैं देख’र वांरै मांय तेल पांणी पड़ग्यौ हौ, पण पैली चित्राजी सूं बात करणी घणी जरूरी ही।

अबार गौड़ साहब रै मूंढै में पांन नी, मळाई ही।

खांणै-पीणै री पोस्टिकता रै बारै में वे मिसेज सोहिनी रै नजरियै में कोई भिजोग नीं घालै। मिसेज सोहिनी री इण पर खास नजर। कांई नखां सारू है, किण सूं दांत अर हड्यां निरोग रैवै, किसी चीज खास लुगायां रौ खाज अर कांई मरदां सारू घणौ मुफीद— आं मांमलां में वै सुद्ध रूप सूं मिसेज सोहिनी रै ग्यांन पर निरभर रैवै। इण निरभरता में वां नैं सैत-रळ्यौ दूध, उड़द रा लाडू कै चिणी बुरकायोड़ी मळाई मौसम-मुजब मिळबौ करै। हां, डिब्बा बंद चीजां नैं वै कदैई-कदैई ‘माडर्न दकियानूसी’ कैय’र मिसेज सोहिनी रै क्षेत्राधिकार में पग जरूर मेल देवै, पण पछै वां नैं सुणनौ पड़ै, “आं डिब्बां रै तांण दोवूं सपूत आपरै बाप दांई मांय-बारै सूं लोह-लक्कड़ होयग्या। म्हारी ठौड़ कोई दूजी मां होवती, तौ कूबड़ा रैय जावता।”

‘दूजी मां’ रै नांव माथै गौड़ साहब बोल नीं जावै, सावचेती मिसेज सोहिनी पूरी राखै अर पैली कैय देवै, “देखौ, अबै फालतू बोर मत कर् या। म्हनैं निगै है कै थांरी मां तो बस थांरी मां ही। वा कथा म्हनैं याद होयगी। वै हफ्तै-हफ्तै तूळी नीं बाळता। चूल्है में बासदी अर पणीढै में पांणी नीं निवड़ण देवता। सिंझ्या पड़ी पछै झाडू रै हाथ नीं लगावता। रात नैं अैंठा बरतण छोडणा, पाप समझता आद-इत्याद... धन्यवाद!”

पण अबार गौड़ साहब कनै अंगै फुरसत नीं ही। पूंणी दस रौ सायरन बाजै हौ।

गौड़ साहब नैं पक्की सोय ही कै सरकारी फोन पर हाल बातां रा पेच लांबा बधसी। वै बारै निसरता जरूरी समझ’र इत्तौ कैयौ, “स्यात् दो बज्यां आज फेर मिस्त्री आवैला। चौथौ चक्कर होसी। घरै नीं लाधी, तौ थूं जांणै अर थारी वासिंग-मसीन जांणै। फेर म्हनैं मत कैयी।”

“हां-हां... थूं आव री।” मिसेज सोहिनी पलकां रै ऊपर डाळै गौड़ साहब कांनी देखतां फोन में कैयौ, “टमाटर थूं लेवती आईजै। थैला घर सूं लेवणा ना भूली। म्हैं खाली बोतलां खरीद लेसूं। म्हारा भाग इसा है। हाय राम! म्हैं तौ फेर भूल जावती, रात-भर म्हारौ माथौ सुंऔ नीं होयौ। मरजावणी कांमवाळी क्यूं नीं आई?”

गौड़ साहब अेकर फेर मुळक्या अर बारै निसरग्या।

‘डिब्बा-बंदी प्रसिक्षण-केन्द्र’ सूं आठ-आठ पूरी सोळै बोतलां तैयार करवाय’र मिसेज सोहिनी अर चित्राजी दोवूं रिक्सै में बैठग्या हा। रिक्सैवाळौ जुवांन छोरौ हौ, फूटरी अर इत्तर सूं गमकती सवारी देख’र घणी झिकोळ कर् ‌यां बिनां वाजिब भाड़ै मांनग्यौ।

उन्हाळै री च्यार बज्यां रौ सूरज काळी सड़क पर चिलका मारै ही।

जम’र बैठ्यां पछै मिसेज सोहिनी आपरै ‘स्लीव-लेस’ रै बारै ऊबर्‌योड़ी चामड़ी पर कंवळास सूं खाज करतां कैयौ, “टाइम भोत लागग्यौ, है नीं?”

“टमाटर किसा थोड़ा हा।” चित्राजी उथप्योड़ा-सी कैयौ, “केई दिनां रौ गीत मिट्यौ। म्हारै तौ लोपा अर कंटी सॉस बिना अेक पग नीं मेल्है। अबकै पंदरै दिन होयग्या म्हारा कांन खावतां—ममी सॉस, ममी सॉस...।”

“अच्छ्या चित्रा, थारै तौ वी.सी.पी. आयग्यौ नीं?” टाबरां रौ नांव आवतै मिसेज सोहिनी नैं जांणै किण तरै सवाल सूझ्यौ।

“ओ येस।” चित्राजी गुमांन सूं कैयौ, “आंरै अेक क्लाइंट दिरवायौ। कोई हाकम अली है, दारू रौ ठेकैदार।”

“कित्ता पड़्या?”

“आठ हजार। ड्यूटी समेत।” चित्राजी चिड़कली री बांणी में उत्तर दियौ।

अेकर केई ताळ चुप रैय’र मिसेज सोहिनी कोई अणेसौ भुलांवता-सी हेंस’र पूछ्यौ, “सेलिब्रेट नीं करैला?”

“व्हाई नाट?” चित्राजी आदत मुजब आपरी साड़ी रै पल्लै नैं कांनां लारै दाब’र कैयौ, “अेक दिन सगळ्यां भेळी होवां। पण वीं मास्टरणी नैं दोपारां टाइम किंयां मिळसी?”

“किण नैं अभिलासा नैं?” मिसेज सोहिनी पूछ्यौ, “वीं री बातां छोड। वा रोज पारट्यां करै। थारै-म्हारै दांई खूंटै री गाय थोड़ी है। आं भणी-गुणी लुगायां री तौ दुनिया निरवाळी है। पैलां सैंग सुवाद लियां पछै जांणै अेकाधौ टाबर जणनै रौ सुवाद लेवण सारू ब्याव करै। अर अठै, साची कैवूं चित्रा, म्हारै ब्याव री फोटुआं कणांई हाथ में आय जावै, तौ काळजौ तिड़कण लाग जावै। कांई ही म्हैं, साव लट, अर माइतां लपेट दीवी बासदी रै चौफेर। कूड़ नीं कैवूं, अेकर जे किंयां कर’र कुवांरी होय जाऊं नीं, तौ पाछी आं गौड़ साहब साथै तौ नीं परणीजूं... आदमी कांई है, अेक सिकंजौ है। दिन-रात लड़ां, पण दौरै पर गयां पछै दो-तीन दिन तौ सौरा निकळै—अर अचांणचक अै म्हनैं इत्ता भला, इत्ता प्यारा बण’र याद आवै कै पूछ मत। पण बात थनैं कैऊं, वां नैं बताय दूं नीं, तौ दूणी खसमाई सरू होय जावै।”

“भई सोहिनी, डोंट माइंड, थारा साहब तौ म्हारै कीं समझ में नीं आवै। म्हनैं तौ गौड़ साहब री प्रजेंस में अेक अजीब-सो डर लागतौ रैवै। म्हैं वां नैं छोड दूजौ आदमी नीं देख्यौ, जिकौ फूटरी लुगायां बिचाळै ऊभ्यौ कीं नरम पड़्योड़ौ नीं दीखै। खैर, म्हारी जावण दै, थूं बता, थनैं तौ गौड़ साहब कणांई मुलायम निजरां सूं निरखता होवैला।” कैय’र चित्राजी मिसेज सोहिनी री उघाड़ी कमर पर हवळै-सी’क चूंटियौ भर लियौ।

मिसेज सोहिनी बिदक’र बोलण सारू मूंढौ खोल्यौ हौ कै जांणै रिक्सै में भूचाल आयग्यौ।

पगां हेटै पड़ी बोतलां अेकै समचै खड़बड़ीजी।

रिक्सैआळौ सीट सूं कूद’र सड़क पर आयग्यौ। वो आपरौ अंगोछौ हाथ में लेय’र लिलाड़ रौ पसेवौ पूंछण लागग्यौ। फेर वो पहियां लारै छूट्योड़ै ‘स्पीड ब्रेकर’ नैं बगनी-सी निजरां सूं देख्यौ।

इत्ती ताळ में मिसेज सोहिनी सगळी बात ताड़’र गरज्या, “ओ भाया, चालणौ है, तौ साम्हीं देख’र चाल। लारै देखण री थनैं कोई जरूत कोनी। म्हे बिनां भाड़ौ दियां उठ’र नीं भाग जावांली... समझ्यौ?”

रिक्सैआळौ आपरा पग पाछा पैडलां पर मेल दिया।

मिसेज सोहिनी अचांणचक बोल्या, “अरे हां, चित्रा... देख, म्हैं तौ फेर भूलगी। आज वीं मरी कांमवाळी रै कांई होयौ! सगळा तौ बरतण पड़्या है। झाडू-बुहारी उडीकै। वासिंग-मसीन न्यारी खराब पड़ी है। स्सौ घर ऊंधै माथै लाधसी। कीं बतायौ थारी गोमती?”

गोमती चित्राजी री कांमवाळी रौ नांव हौ।

मिसेज सोहिनी सारू कांमवाळी वा सोध’र लाई ही। कांमवाळी नीं पूग्यां वीं रा समाचार चित्राजी रै मार्फत वीं नैं पूछणा पड़ता। अबार चित्राजी बतायौ, “दिनूगै फोन कर्‌यौ जित्तै तौ गोमती नीं आई ही। फेर म्हैं अठीनै आयगी।”

“इण रौ मतलब...!” मिसेज सोहिनी बात बिचाळै छोड’र अणमणा होयग्या।

च्यार दिन बीतग्या, दोनूं कांमवाळ्यां नीं आई ही।

दिनूगै रौ टाइम। मिसेज सोहिनी डाइनिंग-टेबल कनै कुरसी माथै अेकला बैठ्या कीं सोचै हा अर निरांयती साथै चाय री चुस्क्यां लेवै हा।

टाबरां नैं इस्कूल वहीर कर दिया हा।

गौड़ साहब काल दौरै पर दिल्ली गया परा हा।

मिसेज सोहिनी रै साम्हीं अेक बडी खिड़की ही। परदा हटायोड़ा हा। तावड़ै रा हाथ अजेस इण खिड़की लग नीं पूग्या हा। ठंडै काचां रै मांयकर अेक लांबौ-चौड़ौ दरसाव हौ— जिणमें अेन खिड़की रै नजीक छीदी डाळ्यां अर नुकीलै पांनां रौ अेक दरखत, बाउंड्री वाल कनकर बगती सड़क, सड़क-पार स्टेट बैंक रै क्षेत्रीय कार्यालय री टणकोर लाल इमारत अर इमारत रै चौफेर खिंड्योड़ी हरियाळी अर फुलवारी।

मिनख अजेस इक्का-दुक्का दीखणा सरू होया हा। दो-अेक घड़ी पछै तौ भांत-भांत रा मिनख अर लुगायां सूं सड़क अर इमारत नैं चेळकै होवणौ हौ, पण अबार फकत अेक धुंधळी-सी’क लुगाई खाथा पग मेलती जावती दीसै ही। मिसेज सोहिनी अचांणचक वीं नैं पिछांण लीवी—गोमती!

मिसेज सोहिनी नैं लखायौ कै वै अबार हेलौ पाड़ लेयसी, पण इत्तै में तौ गोमती अेक कांनी मुड़’र अदीठ होयगी।

“मरजावणी, अेक तौ जीवती है।” मिसेज सोहिनी बड़बड़ांवता थका अेक उम्मीद री निजर सगळै घर पर पसार दीवी।

आज दुपारै चित्राजी रै वी. सी. पी. रौ सेलिब्रेसन हौ। तै हौ कै दोय बज्यां सैंग मिसेज सोहिनी रै अठै भेळी होयसी। खांणौ-पीणौ बारै सूं आयसी। वी.सी.पी. अर कैसेट रौ खरचौ चित्राजी रौ। चाय-पांणी मिसेज सोहिनी कांनी सूं ‘कर्टसी सर्विस’ होवैला। काल गौड़ साहब रौ दोरौ बण्यौ अर गळती वै करी कै दुपारै चपरासी भेज’र ब्रीफकेस दफ्तर मंगवाय लियौ। चपरासी रै घर सूं निकळतां मिसेज सोहिनी रै पैली बात इज दिमाग में आई। फटाफट चित्राजी नैं फोन कर् ‌यौ, वै आगै सैंग नैं नूंतौ देवण री जिम्मेवारी तेवड़ लीवी।

गौड़ साहब रै दौरै पर निकळ्यां पछै मिसेज सोहिनी अैड़ी गोठां कर लेवता। गौड़ साहब थकां बात कदैई नीं होय सकै। कारण कै अेक तौ मिसेज सोहिनी रौ ‘फ्रेंड्स’ गौड़ साहब री मौजूदगी में ‘ईजी’ नीं होय सकै अर दूजै— बावजूद लुगायां री सुतंतरता अर बरोबरी री तमाम जुबांनी झिकोळ रै— मिसेज सोहिनी गौड़ साहब सूं मांय मांय बुरी तरै डरै। चांवतै थकै वांरी पसंद—नापसंद सूं घणा अठीनै-उठीनै नीं होय सकै। स्यात् गौड़ साहब मिसेज सोहिनी रै मांयलै इण डर नैं ओळखै अर मुळकै। वांरी मुळक सूं डर चालू पत्रिकावां में छप्योड़ी दलीलां रौ भेस बदळ’र— मिसेज सोहिनी री जीभ माथै आय बैठै। गौड़ साहब इण नैं ओळखता थका कोई महान द्रष्टा होय जावै, आर-पार अर अपरंपार निजरां सूं सो कीं निरखतौ निरभै पुरुस, जिण नैं उण रै आसण सूं मिसेज सोहिनी जैड़ी लुगायां कदैई नीं डिगाय सकै।

अर फेर अैड़ी ना-कुछ सुतंतरता रै लावां सारू मिसेज सोहिनी खुदोखुद कनै सूं खासी कीमत वसूल लेवै। और तौ और, वै आपरै दोवूं लाडलां नैं बेजां ‘कान्फीडेंस’ में राखै, ताकि वांरै पापा साम्हीं इण सुतंतरता रा दरसाव उघड़ नीं जावै। इण तरै मिसेज सोहिनी आपरै मांयलै डर सारू आप खाद-पांणी रौ पक्कौ इंतजांम राखै।

आज अैड़ौ इंतजांम हौ।

कांमवाळी रै नीं पूगण सूं मिसेज सोहिनी रौ जीव कीं उडारू पड़्यौ हौ। हे भगवांन! दोय बजतां किसी जेज लागै अर सगळौ घर ऊंधै माथै पड़्यौ है। घर चावै सेजां उडीकती परणी रै उनमांन सज्यौ-धज्यौ अर अबोट दीसौ भलांई, कांमवाळी नीं पूगै तौ मिसेज सोहिनी नैं वो हर घड़ी ऊंधै माथै दीसै। आज घर री माथा-चोटी घणी जरूरी। सैंग भेळ्यां होयसी। मिसेज सोहिनी सैंग रै आवै-जावै... पण कांमवाळी तौ स्यांन लेवण नैं त्यार।

दुनिया-भर री झिकोळ पछै तौ कांमवाळी मिळी अर इज बैरण होयगी। साम्हैं मूंढै अेकदम गऊ री जात अर घरै पूग्यां पछै पक्की मतैरण। इधकौ कै इत्तै बडै स्हैर में इसी मुची-तुड़ी लुगायां रौ इत्तौ टोटौ! घणी दफै मिसेज सोहिनी नैं आपरै चेतै रै परबार कांमवाळी सारू अेक तुलना सूझ जावै— आपरै छोटै थकै देख्योड़ी अेक अेलम्यूनियम री देगची, जिणमें सापती थकां घर-भर रै सिनांन सारू खण-खण पांणी उकळ्या करतौ। अेक दिन वीं रै पैंदै में तीणौ होयग्यौ। पछै वा टाबरां रै रमतियां में रळगी अर फेर रुड़ती-पड़ती विडरूप होय’र कांई ठाह कठै गमगी ही। पण मरजावणी कांमवाळी तौ जींवती होवैला, मिसेज सोहिनी सोच’र उठ्या अर टेलीफोन लग जाय पूग्या।

“हेलौ चित्रा... अबार कीं ताळ पैलां म्हैं थारी गोमती नैं देखी। अजै पूगी’क नीं?”

फोन सुणतां मिसेज सोहिनी री लिलाड़ी में तीन सळ पड़ग्या। वां नैं धूजणी-सी मैसूस होई। वै पूछ्यौ, “कद?”

फेर और केई ताळ पछै वै फोन नैं डावै कांन सूं जीवणै कांन पर लियौ अर हांफता-सी’क कैयौ, “हां-हां... प्लीज चित्रा... इंयां ठीक रैयसी।”

इणी पल काल-बेल बाजी—ट्रिंग!

मिसेज सोहिनी री छाती धक् होयगी।

वै फोन पकड़्यां पकड़्यां दरवाजै कांनी देख्यौ कै कीकर होय सकै? तुरत फोन रख’र वै दरवाजौ खोल्यौ।

“मम्मी।’ साम्हीं बस्तै रै भार सूं दोलड़ौ होयोड़ौ सुमित खड़्यौ हौ।

“बदमास...”, मिसेज सोहिनी झिड़कता थका पूछ्यौ, “इण तरै घंटी क्यूं बजाई? म्हैं जांण्यौ थारा पापा आयग्या। थनैं ठाह नीं, वै दौरै पर गयोड़ा है।”

सुमित जोर सूं हेंस्यौ, “मम्मी पापा सूं डरै... मम्मी पापा सूं डरै...।”

“चुप्प... बत्तमीज... चाल, कपड़ा बदळ।”

मिसेज सोहिनी पूछणौ भूलग्या कै सुमित स्कूल सूं जल्दी कीकर आयग्यौ?

आज री गोठ टळगी।

सुमित खा-पी’र दोस्तां साथै खेलण नैं गयौ परौ।

दो अजेस नीं बज्या हा, बज रैया हा।

मिसेज सोहिनी आपरै घर नैं नूंवी निजरां सूं देखै हा। वां नैं लखायौ हौ कै कोई नूंवी चीज घर में आयगी है, जिकी सगळै सामांन री भीड़ में कठैई गम्योड़ी है, सांपड़तीक दीख नीं रैयी है —पण है जरूर।

बीच-बीच में जांणै थक’र मिसेज सोहिनी आंख्यां भींच लेवता। तद कांनां में टेलीफोन पर चित्राजी री बतायोड़ी बातां अर सुमित रौ आपरै पापा री स्टाइल में काल-बेल बजाय’र चिगावणौ— सीटी रै उनमांन गूंजण लाग जावता। फेर अेक दरसाव मांय रौ मांय घेरा घालण लाग जावतौ : अेक आदमी, दारू में धुत्त, भैंसे दांई फूंफाड़ा करतौ दरवाजौ पीट रैयौ है अर जियां दरवाजौ खुलै, दारू रै भभकै साथै सुणीजै, “हरांमजादी रांड, माथै चढै... थूं है कांई, बता... हें, थूं है कांई? पग री जूती... बता, कित्ता पइसा कमाया आज? अै साहब लोग आपरी मेमां री गोरी चांमड़ी अर इत्तर-फुलेज सूं उथप्योड़ा है। आं नैं चरकास चाईजै। ठीक है, दिया कर... पण पइसा तौ म्हनैं दै। अर थारी छोरी... कोई साहब री औलाद लागै... म्हनैं देय दै। ला... ला... नहीं? तौ लै-लै...लै!”

मिसेज सोहिनी जांणै इण मार सूं बचण सारू लारै सिरकै अर वां री आंख्यां खुल जावै। वै सोचण लाग जावै; सुमित रा पापा तौ कदैई दारू नीं पीवै, फेर म्हनैं डर क्यूं लागै? गाळ तौ आपरी ठौड़, कदैई ऊंचा नीं बोलै। म्हारी किसी मांग पूरी नीं करी? म्हारा गैंणा, म्हारा कपड़ा, घर, फर्नीचर, टेलीफोन, अै परदा— सैंग जग्यां वै तौ है, फेर म्हैं किण सूं डरूं? कांई म्हैं सुमित रै पापा रै मुळकणै सूं डरूं? कांई होवै जे वै अेक खास तरीकै सूं काल-बेल बजावै तौ...! इणमें डरणै री कांई बात?”

अचांणचक मिसेज सोहिनी नैं दीखै कै गौड़ साहब कांमवाळी रै दरवाजै पर खड़्या-खड्या मुळक रैया है अर वा हाथ में कैंची लियां रणचंडी ज्यूं साम्हीं खड़ी है, “आव-आव राखस... म्हारै नजीक तौ आव!”

खच! जांणै खूंन रौ फवारौ छूटै।

“ट्रीं ईं ग...!”

लंबी काल-बेल सूं मिसेज सोहिनी री आंख जंजाळ में खुल जावै। वै घड़ी कांनी देख्यौ, पूरी दोय बजगी। स्यात् अमित स्कूल सूं आयग्यौ। थाकल डील सूं उठ’र मिसेज सोहिनी दरवाजौ खोल दियौ।

“अरे! अभिलासा... थूं?”

“क्यूं, बिना बुलायोड़ी मैमांन तौ हूं नीं, इतरौ अचंभौ कांई बात रौ?” रंगीन चस्मै नैं आंख्यां सूं माथै पर सिरकांवती अभिलासा हेंसी।

“आ, मांयनै आवरी...।” मिसेज सोहिनी नैं जांणै अभिलासा रै आवणै सूं आपरै मांय मांय कीं जग्यां मिळी होवै— वै अेक सोरप मैसूस करतां कैयौ।

अभिलासा पर्स नैं लापरवाही सूं अेक कांनी न्हांख’र दीवांन पर पसरगी। फेर कीं सूंघती-सी’क पूछ्यौ, “इज समथिंग रोंग... कोई नहीं आई अभी तक?”

मिसेज सोहिनी इण रौ उत्तर नीं देय’र पूछ्यौ, “अभिलासा, थूं म्हारी कांमवाळी नैं देखी कदैई?”

“हां, क्यों? कोई नुकसांण करगी? समथिंग मच प्रीसियस...?”

“नीं...” मिसेज सोहिनी फुर्ती सूं कैयौ, “वा अस्पताळ में है। वीं रौ हसबैंड वीं रै पेट में कैंची घोंप दीवी।”

अभिलासा उठ बैठी, “पण क्यूं? फोर व्हाट?”

“आज च्यार दिन होयग्या, वा भरती है। वीं रौ हसबैंड कोई रोजगार नीं करतौ हौ। दूसरौ ब्याव हौ वीं रौ.... पैलै सूं अेक छोरी ही, जिकी अब जुवांन होयगी। इत्ता दिन तौ वीं रौ आदमी सिर्फ वीं री कमाई खोस’र दारू पीवतौ... अब वीं री नीयत वीं छोरी पर ही। उण दिन वो नसै में धुत्त हौ, कैंची लेय’र छोरी अर वीं रै बिचाळै खड़ी होयगी। वो कैंची खोस’र पाछी उण रै पेट में घोंप दीवी।” मिसेज सोहिनी कैय’र चुप होयगी।

“देट पूअर क्रेचर!” अफसोस जतांवती अभिलासा बोली, “आल दा सैम, म्हैं पूछूं कै अै फाइनेंसियली अनप्रोडक्टिव लुगायां आखिर ब्याव करै क्यूं है? फेर अेकर नीं, दो-दो बार? एनी वे, थनैं किंयां पतौ लाग्यौ?”

मिसेज सोहिनी टेलीफोन रौ सगळौ प्रसंग बताय दियौ।

सुण’र अभिलासा बोली, “डोंट बी मच सेंटीमेंटल, माई डीयर सोहिनी। तौ इण कारण पारटी कैंसल कर दीवी। आखिर थै रैई लुगायां री लुगायां। इण तरै तौ रोज अखबार पढ’र रोज हेंसणौ... बोलणौ कैंसल होय सकै। खैर, एज यू लाइक... म्हैं चाल सूं... हाल तांई तौ म्हारै रिसेस चाल रैई होवैला। आई मस्ट बी बेक विदिन टू सेव माई हाफ डे कैज्युअल।”

अभिलासा रंगीन चस्मौ पाछौ आंख्यां पर न्हांख’र वहीर होयगी।

मिसेज सोहिनी अेक अबूझ अर साव निरवाळै डर में पज्योड़ा बैठा हा— अेक अैड़ौ डर, जिणमें गौड़ साहब खुद हाजर हा अर वां री उडीक सामल ही। पण घणी ताळ इण तरै बैठ्यौ रैवणौ मुसकल होयग्यौ, तौ मिसेज सोहिनी कपड़ा बदळ्या, पर्स उठायौ अर बारै निसरग्या।

अमित अजेस आयौ नीं हौ। वीं नैं देवण सारू चाबी नीचै राय साहब रै क्वार्टर पर दीवी, तौ मिसेज राय पूछ्यौ, “इण धूंम तावड़ै में सवारी?”

“अस्पताळ...!” मिसेज सोहिनी कैय’र झट पाछा मुड़ग्या।

रात पड़गी। सिंझ्या गौड़ साहब फोन कर्‌यौ कै वै रात नै मोड़ा थका घरै पूग जासी। तद सूं मिसेज सोहिनी रा कांन जांणै काल-बेल सागै चिप’र रैयग्या हा। वांरी आंख्यां अवस टी.वी. रै परदै पर ही। मरुस्थळ माथै कोई वृत्तचित्र दिखायौ जाय रैयौ हौ। सोनलियां धोरां रौ अमाप बिस्तार सगळै सरणाटै समेत परदै माथै पसवाड़ा फोरै हौ। अंगरेजी में कमेंट्री चालू ही, पण वीं नैं सुणनियौ कोई नीं हौ।

अस्पताळ सूं मिसेज सोहिनी नैं सागी पगां पाछौ आवणौ पड़ग्यौ। ऊजळौ झक बुसर्ट पैर्‌योड़ौ ‘पूछताछ बाबू’ साव निर्लिप्त भाव सूं बताय दियौ, “सर्जिकल ग्रुप-2, बी-वार्ड, बेड नं.-43, पेसेंट नेम जांनकी, एज-36, इंजरी इन अपर अेब्डोमिनल रीजन डिक्लेयर्ड डेड दिस आफ्टर-नून अेंड डेड बोडी डिस्चार्ज्ड टू हर रेलेटिव्ज!”

“थैंक यू।” मिसेज सोहिनी कैयौ अर मुड़तां वांरी आंख्यां आगै तिरवाळौ आयग्यौ। मेन गेट सूं पाछा निकळ’र पोर्च में आवतां-आवतां तौ वां नैं भींत रौ सायरौ लेवणौ पड़ग्यौ।

“तौ उण रौ नांव जांनकी हौ!” मिसेज सोहिनी उण मुचै-तुड़ै कळझाइज्योड़ै चैरै नैं याद करतां सोच्यौ, “साचांणी, म्हैं कांई इत्ता दिनां में वीं रौ नांव नीं पूछ्यौ, अेक नांव जिणरै लारै अेक समूची जिंदगी ही, असल जद्दो-जहद ही। अेक साची लड़ाई ही... जिकै नैं फकत कांमवाळी कैयां कांम सर जावतौ म्हारौ?”

मिसेज सोहिनी नैं लखायौ कै कोई वां नैं वांरै काळजै में डायनामाईट होवणै रा समंचार देयग्यौ— समंचार कै कद वो वांरी चिंद्यां-चिंद्यां उडाय देवैला, कीं ठाह नीं पड़ सकै। वां नैं रैय-रैय’र लुगाई-मिनख री बरोबरी रै बाबत रात-दिन आपरी कर्‌योड़ी जुबांनी झिकोळ चेतै आवै ही, जिण नैं कै वै अेक महांन मोरचौ बणाय राख्यौ हौ अर खुदोखुद नैं अपरबळी जोद्धा। वांरी इंछा होई कै कठैई भाग’र जावै अर काच में मूंढौ देखै... कांई वांरी सूरत जांनकी सूं थोड़ी-घणी मिळै?

घरै पूग्यां अमित दरवाजौ खोल्यौ हौ अर आपरी ममी री सदीनी चेळकै मूरती माथै कळमस री झांई ओळखतौ पूछ्यौ हौ, “ममा, कांई होयौ? तबीयत तौ खराब नीं है?”

“ठीक हूं। चाय बणा दै।” कैय’र मिसेज सोहिनी डाइनिंग-टेबल कनै आपरी थितू जाग्यां आय बैठग्या हा।

खिड़की कनलै दरखत री डाळ्यां अर पांनां पर सूं डूबता सुरजी रौ उजास चासणी री गळांई जाडौ पड़तौ थकौ झरण लागग्यौ हौ। अेक चकचूंदरी डाळ्यां-डाळ्यां चाल’र आयोड़ी खिड़की रै काचां पर पंजिया जमायां ऊभी मूंढौ मचकोड़ै ही। मिसेज सोहिनी री ज्यूं नजर पड़ी, वै टेबल माथै हाथ पटक’र वीं नैं भगाय दीवी। थोड़ी देर में पूंछ हिलांवती पाछी आयगी। मिसेज सोहिनी बठै सूं उठ’र बेड-रूम में आयग्या हा।

मिसेज सोहिनी फेर कीं नीं कर्‌यौ।

टाबर ब्रेड अर जैम अर सॉस अर अचार अर स्वीट्स अर फ्रूट्स खाय’र पेट भर लियौ, फेर पापा नैं उडीकता-उडीकता नींद लेय लीवी। आमतौर पर गौड़ साहब रै मोड़ा आयां मिसेज सोहिनी नींद लेय लेवै। पण आज किणी भांत वांनैं नींद नीं आय रैयी ही। अलबत्त घबराहट नैं काबू राखण सारू वै अेक डायजापाम री गोळी अर बीकोसूल कैपस्यूल लेय लियौ हौ।

घड़ी आपरी सदीनी चाल बिसर’र जांणै ठणका करती चालै ही।

टेलीवीजन पर देर रात री विदेसी फिल्म सरू होयगी ही। परदै पर अेक आदमी-लुगाई बाथमबाथ होयोड़ा अेक-दूजै रै मूंढै में मूंढौ घाल्यां दीसै हा। मिसेज सोहिनी जुंजळा’र रिमोट रौ बटन दबाय दियौ— क्ल्च!

स्योपौ-सो पड़ग्यौ— सिवाय कूलर रै पंखै में फंफेड़ीजती हवा रै सूंसाड़ै रै!

ट्रिंग!

कांई काल-बेल बाजी?

मिसेज सोहिनी नैं बैम-सो होयौ अर वै उठ’र दरवाजै लग जाय पूग्या। दूजै बाजण री उडीक में केई ताळ खड़्या रैया अर छैवट पाछा आयग्या। अबै वै इण बैम रौ कांई उपाय करै? पांणी पियौ, बाथरूम गया, छोरां री टांग्यां सीधी करी अर सोच्यौ कै अेक कप चाय बणाय लेवै कै फेर सुणीज्यौ— ट्रिंग।

मिसेज सोहिनी रा हाथ-पग जांणै हा जठैई लोथ होयग्या। वै उठता-उठता हाथ बिछावणै पर टेक’र बैठा रैयग्या— अेकदम अधर।

“ट्रिंग... ट्रिंग... ट्री ईंग!”

अबकै समूचै घर में काल-बेल री चिरळाटी गूंजगी।

मिसेज सोहिनी हड़बड़ाय’र भाज्या अर दरवाजौ खोल्यौ— साम्हीं गौड़ साहब ऊभा मुळकै हा। ब्रीफकेस रै साथै अेक और बडौ पैकेट उठावता पूछ्यौ, “बेटा सोयग्या?”

“हां...।” लारै सिरकता मिसेज सोहिनी उत्तर दियौ। पूछ्यौ, “खांणौ?”

गौड़ साहब जांणै सुण्यौ नीं अर पैकेट दीवांन पर धर’र वीं री पैकिंग खोलण लागग्या। मिसेज सोहिनी चुपचाप वीं नैं खुलतां देखता रैया। थर्मोकोल रै टुकड़ां बिचाळै सूं निकळ’र अेक वी.सी.पी. वांरी आंख्यां आगै किणी नूंवै जलम्योड़ै टाबर दांई चरूड़ होयग्यौ।

अचांणचक मिसेज सोहिनी नैं तेज बास मैसूस होयी— अेक भयानक भभकौ! गौड़ साहब कैवै हा, “फोन पर बतावणौ भूलग्यौ, काल खरीद लियौ हौ।” मिसेज सोहिनी चिलख रै उनमांन झपट्टौ मार्‌यौ अर वी.सी.पी. गौड़ साहब रै हाथां मांय सूं लेय’र फर्स पर पटक दियौ। “म्हनैं नीं चाईजै... क्यूं लाया ओ... इणमें बास आवै... गिंधै...!”

“पागल होयगी कांई?” गौड़ साहब मिसेज सोहिनी रा दोनूं बांवळिया पकड़ लिया।

आज वै मिसेज सोहिनी री इण हरकत पर आपरी निरभै मुळक नीं खिंडाय सक्या।

स्रोत
  • पोथी : साखीणी कथावां ,
  • सिरजक : मालचन्द तिवाड़ी ,
  • संपादक : मालचन्द तिवाड़ी/भरत ओळा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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