आथणकै रो बगत पंखेरू उड़-उड़ रूंखां रो आसरो लेवै लाग्या। काती रा अंधार पख में धरती काळी-कामळ ओढ़ती जेज नीं करै। सड़क रै साव सारै बीसे’क झूंपड्यां, आं में रोट्यां वणै जतै च्यांनणो लपलपावै पछै अंधेरो बस्ती नै गिट ज्यावै। सगळी झूंपड़्यां अेकसा डोळ। ओछी-ओछी भींतां काढ छानां अटकायोड़ी, बोर्‌यां ताण्योड़ी। पींपा, गूदड़ा अर डामर सूं खाली हुयोड़ा अेक-अेक डराम...ओ ही आं री गिरस्ती रो सामान। कोई-कोई रै बारणै बंध्योड़ा गदेड़ा अर अेक दो माचो निगै आवै। मिनखजूण रा आं कीड़ां नैं आसरो देवण नैं पूरो घर।

अदखली सड़कां माथै सूता अै सोचै आं सड़कां सूं ओरां नैं फायदो कांई ठा’ कद हुई? आपां रै आज ही काम आवै लागी-सोबा में साफ जगां कत्ती सांतरी!

भोमो कैरटां रै लारै अळसेटै मांय सूं छरड़्यां काढै हो। वीं बगत काळो नाग गिट्टा रै सारै डसग्यो “अरै खायग्यो रै...” अत्तो मूंडा सूं निकळ्यो। खून री तूरी छूटगी। खुड़ातो-खुड़ातो झूंपड़्यां सारै पूग्यो, लोग सामैं पगां नावड़्या।

“अरै भोमा कांई हुयो…?” पेटी सूं तूळी काढ़ बाळी “अरै…! ईं नैं सांप खायग्यो।” सगळी लुगायां चूल्हा छोड भाजी, मिनख भेळा हुया “अब कांई करां?” बिचार सगळां रै माथा में भंवळ खावै लाग्यो। अेक जणो बळती छरड़ी ल्याय सांप खायोड़ा घाव रै अड़ाई। वीं रै सांप रा जैर री बासते लागरी, ईं छरड़ी सूं की ठा’ नीं पड़्यो।

“ईं नैं सैर में लेय चालो। डागदर हाथूंहाथ जैर कम करणै री सुई लगा देई।” सगळा भेळा हुय सड़क रै पसवाड़ै बैठग्या। अेक मोटर रात पड़्यां अठी हू’र निकळै। थोड़ी जेज में मोटर आपरी आंख्यां रा पळका न्हांखती आवै लागी। सड़कां बणाती बगत मामूली हाथ रा इसारा सूं अै ओड मोटरां ढबाता रैवै। सड़क बण्योड़ी ठोड़ आं मैला-कुचैला मिनखां नैं मोटर ढाब कुण बिठावै? आं पांच-सात मिनखां री ग्यान-गिणती कर्‌यां बिना मोटर सरड़ाट करती निकळगी।

सगळा निसकारो न्हांख्यो- “आ बासते लागणी आज को ढबी नीं! आपां री कुण कदर करै?”

भोमै रो काळजो बैठग्यो “अरै मरग्यो मावड़ी ओ! आपां रै भाग में खटणो लिख्योड़ो। अै सड़कां लोगां नै अस्पताळ, इस्कूलां, बजारां अर घूमबा ले ज्यावै। आपां रै किण काम री?”

“आपां सूं कोसेक आंतरै दूजी झूंपड़्यां है, बठै ले चालो। खींयो झाड़ो जांणै,” भोमै नै ऊंचाय बै रवानै हूयग्या। भोमो बरड़ावै हो आपां रै भाग में धूड़ फाकणी लिखी, म्हारी जियां आपां सगळां नैं अठै मरणो पड़ैला। अरै म्हारा पिराण निकळै रै।”

सारै बगती भोमा री लुगाई जमना वीं रै मूंडैआडो हाथ दे दियो “इयां कांई कूड़ी जबान बोलो?” बै चाल्यां जावै हा।

जमना नैं छोटी छोड वीं री मा मरगी। बाप पाळ-पोस बडी करी। स्याणी हुयां भोमा रै साथै सगपण कर दियो। भोमो मा-बाप रै अेकाअेक हो। पण बात रो धणी, स्याणो मोट्यार हो। लोग कैवता भोमा रै पेट में डाडी उग्योड़ी दीखै, नहीं जणां धोळै मूंडै रो अत्ती समझ कियां झाल राखी है? अत्ती हुंस्यारी कंठू आयगी?

जमना रै ब्याव रा दिनां बीं उजाड़ में रात रूपाळी बणगी। दारू री मैफलां हुई, चावळ रांधीज्या। गीत-गाळ आखै दिन गाईजता। मैंदी मांडीजी। टिमक्यां रा लीला लंहगां रै लाल चुरट मंगज्यां, माथै ओढण नैं राता लाल गोटां रा ओढणियां में सगळी ही लुगायां सज्योड़ी सांतरी लागती। खांचा रा खंवा ताणी रा धोळा धप्प चूड़ा नै कांठला, मादळियां सूं भर्‌योड़ा गळां सूं बै गायां जाती, रात्यूं नाच नीं थमतो।

दो दिनां रै चाव पछै सगळा पाछा काम रै ढाळै ढळग्या। नुंवा अबोट कपड़ां में गिणगोर बणियोड़ी लुगायां आखै दिन काम रै भेळै गीत उगेर्‌यां राखती। दुनियां में और भांत-भांत री सोख मौज कांई हुवै? मिनख री सोराई सारू और कत्तीक चीजां बणगी? वै नीं जाणै। ईं उजाड़ में ब्याव हुवै...टाबर जलमै। नान्हा टाबर बकर्‌यां रै लारै गुवाळी में फिरता धूळ में माथो देय सड़कां बणावण रै काम लागै। दुनियां कठै-कठै री सोचै। सड़कां रो धन्धो चालतो रैवै, बात अै सगळा सोचता रैवै। और कीं कोनी जोइजै। जमना रै माथै माटी री परात आयगी।

टाबरपणै सूं जमना रै मन में अेक सपनो हो आपरो न्यारो-निरवाळो घर बसाय सातूं-सिंझ्या काम सूं थाक नै आया धणी री उडीक रो। आंगणो लीप-चांक हालरियो हुलरांवती नाचणै री मनस्यावां मन रै पालणै बरसां झुलाई। वै मनस्यावां पल्लै बंधी रैयगी। पल्ला सूं खुल कदे हाथ नीं आई।

अेक हाथ रै मोरियो ओर दूजै रै ‘भोमजी’ नांव खिणायो वीं दिन भोमा नैं कैवै लागी “मनैं सोना रो अेक मादळियो घड़ाय द्‌यो।”

गैली, क्यूं सोच करै? सोना रो कांटो, बींटी, मादळियो सगळा बणवांवालां, कीं हाथ सिरकबा दे।

पूरो सो लगावण कोनी ल्यां, सुकी-पाकी रोट्यां खायां भी आपणै पीसा कोनी ऊबरै, पछै हाथ कियां सिरकसी? दोन्यू जणां आपरी तंगी जाणता मुळक्या।

बा सोचै “आखै दिन बळती तावड़ी में भाटा फोड़ां, माटी री परातां न्हाखां, रेतूल में सगळो डील भर्‌यो रै, काम करतां थकां हाय-बोय माची रैवै। धरती माथै केई मिनख सोरा घणाई रैवै, मोटरां में बैठ्यां नै देखै जद लागै अै सैरां में बंगलां री मोजां लेवै, भांत-भांत रो बाणच खावै, पैलड़ै जलम रा चोखा कर्‌योड़ा हुसी।”

जमना रो जीव रात-दिन ईं उजाड़ में रोड़ीज्योड़ो घणो दुख पावै। रात हुयां सून-सट्ट बापर ज्यावै। चिन्योसोक बोल्याळो आं झूंपड़्यां रा रिमझोळां में सुणीजै। राता लाल दुमाला बांध्यां मोट्यार अर टाबर कुंडाळो घाल बैठ्या बतळावै। कांई-कांई बातां बतळावै? दुनियां सूं न्यारी, सगळै दिन री माटी री उठा-पटक री बातां, कै कोई सैर जाय आयो हुवै बठै री नुंई बात। सैर-गांव आं रै बसबा वास्तै नीं, कोरी देखण री जिन्सां है। कणां खुल्ला हांसै जणां लागै अै कत्ता सोरा, पण आं रै आंतड़्यां री बळत नैं कुण जाणै! दुनियां कठै री कठै पूगगी, अै बठै रा बठै, दुनियां रा ग्यान सूं आंतरा। नींद आयां करकता डील नैं पसार देवै।

दिन ऊग्यां सड़कां जागै। नान्हा टाबरियां नैं आदी-पड़दी छियां में सुवाय आं मिनखां री कनखळ भेळी हू ज्यावै। मेट, मिसतरी, ठेकादार, कणां-कणां सा’ब बूता सारू साइकिलां, मोटरसाइकिलां सूं आवै। अै आप-आपरा दरद नैं भूल्या उतावळा हाड-गोडा चलावण लागै।

मिनखां री सांवठी जरूरत हुवै जद ठेकादार रो आदमी आय कैवै काल सा’ब काम देख राजी नीं हुया। कीं रीसां बळै हा।

ओडां रै मूंडै हांसी आय पाछी घिरगी “सा’ब रीसां क्यूं बळै हा?”

काम होळै हुवै। काल दो-तीन जणां जाय न्यारी-न्यारी ठोड़ सूं थांकी जात रा बळगत आदम्यां नैं ल्यावो। मजूर लारै अेक-अेक रिपियो इनाम रो।

जमना नैं याद आवै केई दिनां सूं काम री भाळ फिरतां हुयगी। कठैई काम नीं मिल्यो। बा इण काम नैं छोड़बा रा घणा तरळा लिया। ओडां रा मिनखां में सिखाई-पढाई कठै? कीं काम जाण्यां बिना आज मजूरी कठै? सेवट हार नै ईं सड़कां रा काम में अेक-अेक रिपियो दलाली रो देय काम लाग्या। भोमा नैं आं दलालां ऊपर रीस आंती। मजूर रो मजूर दुसमण।

भोमो इण डेरां भेळो आयां पछै थोड़ा दिनां में सगळा मजूर अर अफसरां रै सरीसो नेड़ो बणग्यो। बां रै जीभ आंटै “भोमा बिना कोई काम पार नीं जावै,” बात रैवै लागी।

चढती तावड़ी में पल्ला री ओट मावां टाबरां नैं दूध पावै। परात, फावड़ा है जियां छोड धूळ में भाभड़ाभूत हुयोड़ा सगळा ओड, बिणजारा पाणी सागै घोळ्योड़ी मिरचां रै लगावण सागै लूखी-पाखी रोट्यां गटकावै। मेट, मिसतरी आंतरै जांटी री छियां “भोमा कटोरदान ल्याय दे,” कैय नै बैठै बीं सूं पैली भोमो वां रा कटोरदान ल्याय झिलावै। अेक पग रै पाण खनैं ऊबो रैवै। पाणी पकड़ावै, हाथ धुवावै, पछै जाय रोट्यां भेळो हुवै।

ओडां, बिणजारां रै मन में अेक हरख “देखो आपां रै इसारां मोटरां ढबै। लाल झंडी लगायद्‌यां बठै सूं पसवाड़ै मोटरां नैं जाणो पड़ै।”

दोफारां री छुट्टी में कदे भोमो दो घड़ी जमना सूं बतळावै “आपां री कांई जिंदगानी? सड़क पसरती जावै ज्यूं-ज्यूं आपां नै सिरकणो पड़ै। दुनियां में मजूरी सगळा करै पण रोजीना पूर-गूदड़ा कोई कोनी लादै।”

थे क्यूं झूठो सोच करो। अै पळकती सड़कां आपां री मैणत सूं बणै। कत्तो मानखो आं सड़कां सूं घरां पूगै...हेताळू मिनखां में जाय मिळै, नौकरी पूगै, घूमै, मोजां करै। आपां नीं बणावां जणां आपां रा मिनख लाई दुख पावै। देखो! सगळां सूं सांतरी वै नैनी-नैनी डब्यां हुवै ज्यूं कारां टीईंऽऽ...ऽ करती फर्‌राट निकळ ज्यावै।

दिन गुड़तां कांई ठा’ पड़ै? सड़कां बणती गी। डेरा लारै-रा-लारै सिरकता गिया। वीं अंधारी रात में भोमा नैं सांप खायां सगळा बेखळखातै हूग्या। दूजै डेरै पूग्या। कोई रोटी खायोड़ो कोई बिन खायोड़ो गूगाजी रै थान खनैं आयग्या। खींयो मंतर बोल-बोल कांकरी बगावै लाग्यो। तेल रो दीयो जगमगै हो।

आद घण्टा में “अरै राम रै” कैय भोमो पसवाड़ो पलट्यो। गूगा पीर रा भजन चालू हा। भोमा री तड़फड़ाट कम हुयां फंफेड़-फंफेड़ जगावै हा। भोमा नै जगावण रा पूरा जतन करतां थकां वीं री मींट सदा वास्तै लागगी। भजनां रा तार टूट्या। लुगायां हब् देणी नेड़ी भाजी। कुरळाटो माचग्यो। जमना ऊबी हुयां पैली तड़ाछ खाय पड़गी।

भोमा री माटी मुसाणां पुगाय बावड़्या दोफार दिन चढग्यो। ठेकादार रो आदमी सारै आय दो-तीन डोकरां नैं बुलाया। समझावै लाग्यो हूणी ही जकी हूयगी। ठाला बैठ्यां कोई थां री पार पड़ै म्हांरी। आपांरी पार पड़ै काम सूं। सगळा काल काम ढूक ज्यावो। जमना अर इण रा सासू-सुसरा नैं 5-4 दिन बैठा नैं आदी मजूरी दे देवां। बापड़ो भोमो किस्योक सांतरो मिनख हो। पण राम आगै कांई जोर?

जमना बारा दिन नीं हालै! हां, म्हे काल काम ढूक ज्यावां।

मजूरां नैं काम लगावणा हा। ठेकादार पूरो लोभ देय काम सरू करावण री कैयग्यो हो। अै बापड़ा पैली मानग्या। जमना जमीं रै चिप्योड़ी पड़ी ही। तीजै दिन स्याणा मिनख रोट्यां री घणी जिद करी। मूंडै सांमी कवो करतां पाछो पड़ै हो। काया नैं भाड़ो देवणो पड़ै। दूजां री जिद सूं काळजो काठो कर नै रोटी गळै हेटै उतारी। काळजै रा घाव मिट्या नीं करै। मर्‌योड़ा लारै मर्‌यो भी नीं जावै। जमना आपरा काळजा री पीड़ आडा हाथ दियां धूळ में माथो देय रोट्यां रै सतूनै में पाछी लागगी।

धोळी धोत्यां, कमीजां जकी गुगळी हूयोड़ी...मूंछ्यां-डाडी, कानां री रूंवाळी अर आंख्यां री भांपण्यां धूळ सूं धोळी हुया अै सगळा सरक्यां, झूंपड़्यां में बावड़ै। दिन झटकै आंथ ज्यावै। चढती रात सगळै चूलां छरड़्यां बळै कणां बुझै। धूंवै रो डूंड ऊपड़ै। फूंकां मारती लुगायां रा केस बिखरै...मोत्यां रा, चांदी रा झेला झबरकै। भूख-तिस मिटाय दुख-दरद री बातां करै।

अेक झूंपड़ी में जमना रो सुसरो आडो हुयोड़ो बोलतो जावै। सारै बैठी सासू हुंकारा भरै। चूलै चढायोड़ो दळियो खदबद-खदबद सीजै। अपूठी बैठी जमना आंसूड़ा ढळकाती जावै। निसकारां भेळै अूंडा-अूंडा सांस लेवै। छरड़्यां सरकाती रा हाथ दाझै अर दाझै वीं रो काळजियो...दाझतो जावै।

सासू पूछ्यो “बीनणी दळियो सीजग्यो कांई?”

आंसूड़ां नैं ओढणियै रै पल्लै बांधती हुंकारो भर्‌यो। पछै कोई बोल-बतळावण नीं हुई। सिलोर रा डबरिया में दळियो घाल सिरका दियो।

जमना रा घूंघटा सूं झरता आसूं देख कदे डोकरो चिड़ ज्यावै बो लाई मरग्यो जको सोरो। तूं सुरड़-सुरड़ कर नैं म्हानै मार न्हांखी। म्हारै काळजै किस्यो दरद कोनी? आठूं पोर कांई रबद?

“बेटा, दोरो मती मानजे। लाडी, आं रो सबाव काठो गतरस हुयग्यो,” इयां कैय सासू बात परोटै। जमना डुसक्यां भरती पाणी ल्यावै, पीसै, पोवै तीनूं जीव दोरो-सोरो काया नैं भाड़ो देय काम लागै। हफ्तो चूकै। मोटरां बगै। हाजरी भरणिया, मुनीम, अफसर, ठेकादार

“वा रै वा मरदां, जबरो काम कर दियो,” कैय ओढणियां रै पल्लां रा रंग निरखै। कणां बोदा मिनखां नैं झूठी डाटी पावै “भागू, नेमा, पेमा, जमना थे च्यार जणां काम मोळो करै लाग्या। थांरा पीसा काटणा पड़सी।”

आं सगळी बातां में साथै रैवतां थकां मन नीं रमै। कणां खदबदीजता दळिया में जेज लागै वीं बगत सासू-सुसरा री हलचल सुणती-सुणती जमना कठै आंतरी पूग ज्यावै। भोमा रै भेळै बीत्योड़ा दिन सामैं आय अूबै। मन री पीड़ सगसगी चढ’र जागै। हालरियो हुलरावण री मनस्या हांचळां में कसमसाट जगावै। मादळिया री याद मन मोळो कर देवै। भोमा री अेक-अेक बात हिड़दा रै ओळ्यूं-दोळ्यूं फिरबो करै। भोमा री बोली साव सारै सुणै। सड़क री कांकर्‌यां रै हेटै सूं बा आवाज आंवती लखावै “आपां सगळां नै अठै काम में खटतां मरणो पड़सी। बडेरा काम भोळायग्या। आपां नैं कदे कोई याद करसी कांईं?”

जमना नैं बा आखरी रात चेतै आवै भोमा री लागती मींट, तड़फड़ाती काया, अंतस री पीड़ सूं हळाबोळ हुयोड़ा गळा री आवाज सुणीजै “ओ मावड़ी मरग्यो अे।” बै झूंपड़यां सगळी छियां-मियां हू ज्यावै, अेक अंधारै नैं आंख्यां फाड़-फाड़ देखती रैवै। आंसूड़ा ढळकता जावै। सड़कां आगै पसरती जावै, झूपड़्यां लारै सिरकती जावै। डेरा कूंच करै बठै जमना रा टूट्या-भाग्या मनसूबां री जियां काळी हुयोड़ी ईंटा रा ढयोड़ा चूल्हा, आदी बळ्योड़ी छरड़या, कीं राख रा ढिगला, ढायोड़ी काची भींतां अर बुहार्‌योड़ा आंगणा रैय ज्यावै। अर अेक ठोड़ बसबा रा सपना मन नैं उणमणो कर न्हांखै। सफा अणपढ जमना डेरा छोडबा सूं पैली भोमजी नांव खिणायोड़ा नैं लूगड़िया री ओट बांचे डुसक्यां भरै। डेरा लद ज्यावै।

स्रोत
  • पोथी : आज री राजस्थानी कहाणियां ,
  • सिरजक : मनोहर सिंह राठौड़ ,
  • संपादक : रावत सारस्वत, प्रेमजी ‘प्रेम’ ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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