बी. ए. पास कर्यां पछै ट्रेनिंग करण सारू सिवदयाल बीकानेर आयो। मेळ मुलाकाती रै घरे उतरग्यो अर भाड़ै रो घर जोवण लाग्यो—कालेज रै नैड़ौ-तैड़ो। घर में बीजळी हुवै, नळ हुवै अर जाजरू हुवै। मकान नवो हुवै, अर भलै माणसां रै रैवण जोग हुवै तथा भाड़ो कम हुवै, इसो घर सिवदयाल चावतो हो।
कालेज रै एड़ै-छेड़ै रैयगी ऊन रै बौपार री धूम। पैली जिकी धांरागर जागवां खाली पड़ी भूंभाड़ मारती ही अर बांनै रुखाळण सारू घर-धणी सामा रुपिया देवता हा, वै सगळी अबै ऊन्न में भाड़ै उठगी अर मूंढै मांग्यो भाड़ो कमावण लागगी। अबै ट्रेनिंग करण नै आवण आळां मास्टरां नै सस्तै भाडै सावळ जागा कियां लाथै?
पण जोवै जिको कांई-न-कांई पावैई। कालेज सूं डागां रै मदरसै री सड़क माथै एक सागीड़ो घर निजर आयो जिणमें गोमा दादी एकली रैवै, कोई घर-बार आळो हुवै जिकै नै आपरै आधै मकान में भाड़ै राख्यो चावै। सिवदयाल माजी सूं मिल्यो। बात करी। भाड़ो-तोड़ो सब जचग्यो, पण एक बात में सिवदयाल रो गाडो अड़ग्यो। माजी बोल्या—‘हूं तो घर-गिरस्ती आळै नै राखूँ, एकलै मिनख नै राखूं कोनी।’ सिवदयाल सोच्यो, लुगाई कठै सूं लाऊं? पण तो ई माजी नै कैय दियो—‘थे घर में मनै राख तो लेवो, हूं १०-१५ दिनां में लुगाई नै बुलाय लेसूं।’ माजी मानग्या, अर बो माजी रै घर में रैवण लागग्यो।
च्यार-पांच दिन हुया, अर माजी पूछ्यो—‘मास्टरजी, लुगाई-टाबर कद आसी?’ सिवदयाल कैयो—’हाल तो हूं कागद लिखसूं जणै आसी।’
‘तो हाल कागद लिख्यो कोनी?’
‘रात-दिन पोथ्यां सूं माथो लगावां, कणै कागद लिखां माजी अर जे लुगाई-टाबर आयग्या, तो बांसूं फेर माथो लगावणो पड़सी।’
‘बैगा बुलावो, नई तो एकलां नै हूं घर में नई राखूंली।’
दो-तीन दिनां बाद फेर, जद सिवदयाल आपरो नोट त्यार करतो हो, माजी पसवाड़लै डागळै सूं हेलो कर्यो—‘क्यूं मास्टरजी, हाल आया कोनी कांई लुगाई-टाबर?’
सिवदयाल रै ध्यान में बाधा पूगी अर मन री बात चेतै सू उतरगी। बो थोड़ी करडी बाणी में बोल्यो—‘माजी, हाल तो दस दिन ई को हुयानी। पन्दै दिनां ताणी रो तो मैं थांसूं कवल कर्योड़ो है। इयां ऊभां लकड़ां बेज कांई घालण लागग्या?’
‘उभा लकड़ां अर आडा लकड़ां री मनै ठा कोनी, जे लुगाई-टाबर नई आसी तो हूं पूरिया बारै फैंक देवूंली’ कैय’र माजी पाछै उथळै खातर अडीक्या। नीचै कड़ी खड़खड़ावण री अवाज आयी अर माजी डागळै सूं हेटै गया परा।
सिवदयाल पढ़ाई तो करै, पण मन में हरदम माजी रो खूंटो खुभै। लुगाई कठै सूं लाऊं, हाल तो ब्याव ई हुयो कोनी। एक दिन आपरै साथ्यां नै चाय पालटी रो नूंतो दियो। खासा मास्टर-मास्टरण्यां आया। एक मास्टरणी सागै माजी कनै थोड़ी मिठाई अर रसाल भेजी। माजी बींनै देख’र हरख्या अर पूछ्यो—‘थे मास्टरनीजी (सिवदयाल री बऊ) हो कोई?’ बा माजी रो ऊंडो अरथ तो समझी कोनी, अर मास्टरणी हुवण रो हूंकारो भर’र रसाल मिठाई री छिन्नी मेल आई।
दूजै दिन जद सिवदयाल कालेज जावण तांई बारै निकळण लाग्यो तो माजी बारणै कनै ऊभा मिलग्या अर हर्या-किरस हुयनै बोल्या—‘लुगायां सूं ई घर री सोभा है। बिना लुगाई घर कांई काम रो। मिनखां रै कुण ऊंचो-पाचो करै, कुण झाडू-बुआरी काढै। ढूंढो उंधै माथै पड़्यो रैवै। अबै थे भलेई बेखटकै रैवो, थांनै काढूं न कोई बात।’ सिवदयाल घणो-घणो राजी हुयो’र खासा हंसतो-हंसतो, माजी री किरपा खातर हात जोड़तो-जोड़तो कालेज पासी टुरग्यो।
इण बात नै खासा दिन हुयग्या, पण माजी फेर मास्टरनीणी रो मूंढो नई देख्यो। मन में सोच्यो—‘बारला लोग है, बोलणो-चालणो कमती ई राखे है; पण फेर भी लुगावडी लुक्योड़ी रैवै, इण रो कांई कारण? एक दिन सिवदयाल नै कैयो—‘मास्टरणीजी मैलां सूं बारैई निकळै कोनी कांई? इसो ढंग तो थांरै अठै ई देख्यो। लुगाई हुवै जिकी लुगाई सूं तो बात करै क नीं। मिनखां सूं नई करै जिकी तो चोखी बात है। सिवदयाल कैयो—दुनिया च्यार दिनां रो मेळो है, बोल बतळावण ई रैय जासी! बोलणो चायीजै, नई क्यूं बोलै।’
माजी नै बैम बड़ग्यो कै लुगाई है’क नई, वा कोई और लुगाई तो छिन्नी नई मेलगी ही। एक दिन सिवदयाल रै घर में गया कैयो—मास्टरणीजी, थांनै तो रळी को आवैनी, पण म्हांनै तो मिलण री मन में आयगी।’ सिवदयाल पंछियो पैरे दुध पीवतो हो, गुटको कण्ठां में अड़ग्यो। धांसी आयगी, अर ईसी अळूजी कै हात मांयली गिलास ढुळगी। सिवदयाल नै और तो उपाव सूझ्यो नई, पसवाड़ै ई मांचो पड़्यो हो। उण माथै आडो हुयग्यो। माजी च्यारां पासी आख्यां फैक’र घर संभाळता-संभाळता पाछा गया परा।
माजी रै जचगी कै मास्टर रंडो-बंडो दीखै है। दूजै दिन कालेज जावण री अडीक में बैठग्या। जद यो साइकल बारै मेल’र ताळो ढकण लाग्यो, तो माजी नैड़ा आय’र बोल्या—‘रात तो मास्टरणीजी
घर में को हानी, कठै ई बारै गया हा कांई?’ सिवदयाल बोल्यो—‘बारै कांई म्हारो करम गया हा, अस्पताळ में भरती है। दिनृगै-सिझ्या दोनूं टैम अस्पताळ रा चक्कर लागै है, दवाई-पाणी सूं घर खलैट हुवै, डाक्टरां रै हैटे हात देवणा पड़ै जिका पाखती में। आयो तो हो पढण खातर अर करणा पड़ै अठै हीड़ा। माजी बोल्या—‘सैंस्कार जोग री बात है।’
तीन-च्यार मईना सिवदयाल अस्पताळ रै नांव सूं काढ दिया। एक दिन माजी बोल्या—‘मास्टरजी! आज हूंई मास्टरणीजी रो सुख पूछ आऊं। किसै वारड कमरै, अर बिछावणै में है?’
‘आज हालत बोत खराब है, चैरो ओळखणो भी बंध हुयग्यो। सांवरियो सायक है।’
‘लंबर तो बतावो, मूंढो तो देख लूं।’
‘डाक्टर कमरो बदलण रो कैवतो हो, सिंझ्या बतासूं। जे कमरो फेर दियो हुवै तो फालतू फोड़ा पड़ जावै।’
माजी सिंझ्या री बैळा घर आगै बैठा सिवदयाल नै अडीकै। जद आयो तो पूछ्यो—‘कांई हाल है?’ सिवदयाल मूंढो उतार’र बोल्यो—‘भगवान री चीज भगवान रै घरे गई परी।’ माजी री आंख्यां फाटगी—‘हैं? राम! राम!! राम !!! लायण सैंसार मैं आय’र कांई सुख देख्यो?’
सिवदयाल कैयो—‘अबै एक बार तो मनै म्हारै गांव जावणो पड़सी, बारै दिन पूरा कर’र पाछो आसूं।’
माजी गळ-गळा हुय’र बोल्या—‘बारै दिनां पैली तो कियां आयीजै। तो ई पाछा बैगा आया। ओ घर थांरोई है। सगळी चीजां अठैई पड़ी रैय जावै। भूंड-भलाई सागै हालै।’