एक राजा हो, जिकै रै नूओं म्हैल करावण री हूंस जागी। जोसीजी ने बुला’र चोखो मौरत पूछ्यौ। जोसीजी केयो म्हौरत तौ अबार घड़ी बाद घणोइ सिरेकार है पण इण काम में न्याय सूं कमायोड़ी सोने री पांच म्हौरां चाइजे जणै काम चाले। राजा केयो थांरै चाइजै जिती खजांची ने हुकम कर’र मंगावौ। जोसीजी केयो राज रौ पइसो न्याय रो कोनी। राजा केयो, इत्ती प्रजा थांरै सामने बैठी है जिकी सूं पांच म्हौर मांगो। लोकां सै मूंढै में मूंग घाल लिया। राजा केयौ— कोई न्यायवान कोनी? लोकां केयो जिनदास सेठ रै न्याय रो पड़सौ है। राजा सेठ ने बुलावो भेज्यो। सेठजी झट करता खांधै चादर नाख’र राजाजी नै आय’र मुजरो कर्यो।
राजा केयो सेठां म्हारै म्हैल रे पायै में नांखण ने न्याय री कमाई री पांच म्हौरां जोइजै। थे म्हारै स्हैर में न्यायवान हो—जिको पांच म्हौरां दो। जिनदास कैयो—म्हारे खनै न्याय री कमाई घणीइ है पण थानै इण काम खातर दे को सकूंनी, थै जिकौ म्हैल बणावौ हो—वै में सराब-कवाब उड़सी’र रांड्यां नाचसी—म्हारौ पइसौ न्याय रो है। मनै इण खातर माफ करौ। राजाजी इण बात सूं आपरो घणो अपमान समझ्यौ अर हुकम कर्यो तूं देसी के नहीं बोल? इत्तै में इ जोसीजी केयो बस महाराज—ओ सेठ रो पइसो अबै थे लेसौ तो अन्याय रो हुय जासी—और जिको मौरत हो बा तो बेळाइ बीतगी। अबै इण बात नै जावण दो।
राजा रै मन में न्याय-अन्याय रै पड़सै रो कई असर हुवै इण बात री परीख्या करणै री बात उठी। दीवानजी नै एक म्हौर आपरी तथा दूसरी म्हौर सेठ जिनदास खनै लै’र मुंहतैजी ने दी। मुंहतौजी दोनुं म्हौरां न्यारी-न्यारी ले’र परीख्या करण नै निकळ्या। एक धीवर नै सेठ री म्हौर दी। धीवर रे हाथ में म्हौर पड़तेइ वै बिचार्यो—हूं महापापी हूं, रोज इता जीव मारूं, जीवती मच्छलियां पकड़-पकड़’र लाऊं पण रेवै तो भूख री भूख। आज भगवान री मरजी सूं पनरै रुपियां री म्हौर मिलगी तो अबै इयै पापी धन्धे नै छोडणौ चोखो। वै झट मछलियां पाछी तळाव में फैंक दी अर सराफै री दुकान जा’र म्हौर भंगाई। एक रुपयै रा तो दाणा लिया बाकी सूं सोच्यो कोई धन्धो करसूं।
इयै न्याय रै रुपियै रा दाणा धींवर रै घरवाळां रे पेट में पड़्या तो बांरै भी विचार हुयो कै मजुरी कर लेणी आछी पण मछली मारण रो धंधो छोड़ देणो। इण तरै सेठ रै पइसै रो प्रभाव पड़्यो के धीवर परिवार पक्को फळा’री’ हुयग्यो। आपरो मच्छीमार रो धन्धो छोड’र मैनत-मजूरी, खेती-बाड़ी करण लागग्या। आज भी उत्तरप्रदेस रै शाहजहांपुर जिलै रै गांव में जा’र देखसौ तो बठै बामण बाणियां-रजपूत सै मांसाहारी है पण सेठ जिनदास रै न्याय रै पइसै सूं सद्बुद्धि पायोड़ी धीवर जात साफ फळा’री है।
अबै दिवानजी राजाजी रै पइसै रो फळ देखण वास्ते आगे चाल्या। गंगाजी रै किनारै ऊपर देखै तो एक जोगी आसण जमायां समाधि-मस्त बैठा है। वांरी लिलाड़ी चमचमाट करै। मुंहतेजी देख्यो इसा महात्मां रो जोग मिलग्यो फेर कंई चहिजै। चट म्हौर मूंडै आगै धरदी। थोड़ी देर में महात्माजी समाधि खोली तो सूरज रै तावड़ै में चमकती म्हौर ऊपर निजर पड़ी। जोगी बिचार्यो कदेइ गांजो पीवण ने पइसोइ हाथ को आवेनी, आज सोनै री म्हौर मिलगी, आज म्हारी तपस्या फळी। फेर जोगी बिचारै—म्हें 40 बरस तांइ जोग-साधना करी—ध्यान, प्राणायाम, जोग-समाधि वगेरे सूं आत्मा नै तो जाणली पण अबै संसार रो भी तो अनुभौ करूं। विषय-भोग बिना भोग्यां जोग रो कंई महत्व? अब तो मनै जरूर संसार रा भोग भोगणा चहिजै। परमात्मा मनै सोनेरी म्हौर इयै खातर ही भेजी है। इण विचारां सूं जोगीजी भगतण रै अड्डै गया— अर आपरै जन्म भर री जोग कमाई री धूड़-धाणी करदी। जोगीजी रो पतन हुयग्यो।
मुंहतैजी न्याय-अन्याय रै पइसै रो परतख प्रभाव देख्यौ। सुण’र राजाजी नै भी सद्बुद्धि मिली और हिये में चानणौ हुयग्यौ।