जगत-काका रै परवाड़ां रौ छांण काढ्यां ईं इण मरण रौ सुभट अेलम व्है के माईत अर बडेरां टाळ मांनखौ जुगानजुग आदू वनापाती, पंछी अर जिनावरां री ओळ ढूकै। दीखता-पाखता सुभट उणियार अर सळिया सुभाव रै अयांळ-पंयाळां आक-धतूरौ, केर, खेजड़ी, कब्बू-कमेड़ी, सरप-नेवळा, नाहर-सुसिया के हाथी-ऊंदर इत्याद समस्त चराचर रै किणी अदीठ ढाळै जणा-जणा री हलगत, अंतस री अगम-पुड़दां ढळ्योड़ी व्है।

बाळपणै नित-हमेस भखावटै पलकां उघड़णा रै समचै जगतप्रकास दाधीच नै सूरज रौ उजास निगै आवतौ अर पलकां मूंदणा रै समचै उणरी आंख्यां काळौ-बोळौ अधांरौ पाथर जातौ। इण जोग-संजोग रै मिस नांव-परवांण जगतप्रकास रै हीयै भरम रौ अैड़ौ रेसौ सांचरण मंड्यौ जांणै उणरी पलकां रै परताप सूरज रौ उजास जगमगै अर अंधारौ पाथरै।

सातूं भतीजां रै मूंडै घड़ी-घड़ी जगत-काका री बतळावण सुण-सुण पाड़ौसियां रै टाबरां रै अैड़ी बांण पड़गी। पछै तौ छोटा मोटा, बूढा ठाडा सैंध-पिछाण्यां मिनखां रै कंठां जगत-काका री बतळावण पूरमपूर रस बैठगी। मां अर परणी तकात रै होठां इज बतळावण अर इज नांव। सासती ओझाड्यां जगत-काका नीठ आपरी जोड़ायत नै इण नांव रै हेवा कीवी। अबै तौ वा धणी नै निसंक जगत-काका रै नांव बतळावै। अर जगत-काका रै कांनां जणा-जणा रै मूंडै रणकती बतळावण अणूंती मीठी लखावै। भरम री बेल बिना पांणी पांगरै पछै कैड़ी माठ! जगत रौ काकौ थरपीज्यां आखा जगत री साळ-संभाळ रौ भार अंगेज्यां ईं सरै।

हाई-स्कूल रा हेड मास्टर बणतां ईं जगतप्रकास दाधीच रै हीयै मतै अेक अैड़ौ चमक-चांनणी भळक्यो के उण दिन सूं ईं वै पूरा नांव री ठौड़ 'जगत-काका' रै आखरां दसखत करण मंड्या सो डिप्टी डाइरेक्टर रै पद पूग्यां उपरांत 'जगत-काका' री छाप आपरा दसखत मांडै। तर-तर सगळां रै मनाग्यांना जांण-अजांग आपौआप बांण झरती गी। राज रा मंत्री, सिरै-मंत्री धुराथुर वांनै कोड सू जगत-काका रै नांव आदरै। सुण्यां वांनै जबर आणंद आवै। फगत इण नांव सूं ईं वांनै आपरै जीवता खोळ्या रौ अेलम व्है। काया सूं ईं वत्ती वांनै आपरै नांव सूं मोह-परीत। नांव-नांव तौ जगत-काका रौ, नींतर फीकी-फच्च बतळायण। साच पूछौ तौ 'बापू' रौ बोल वांनै लुखथुखौ लखावै।

बापू री गत-मत तौ बापू जांणै, पण जगत-काका नै लुगाई जात सूं हदभांत लगाव। गोपियां रै झूलरै किसन- भगवांन नै आणंद तौ खराखरी आवतौ इज व्हैला, पण जगत-काका री तौ बात बीजी। अड़वां रै उनमांन कोरा-मोरा ठूंठ मरदां रै बिचाळै वांनै बात करण रौ अंगै साव नीं आवै। जांणै डाढां रै बिचाळै मींगणी पजगी व्है। पण लुगायां रै थट्ट वंतळ करती वेळा वांरी जीभ रै सुरंगी पांखां लागै। रूं-रूं मुगती रौ वरण करै। सूरज री उगाळी फूल खिलै ज्यू कांमणियां री मंडळी वांरौ अंतस खुलै। अर खुदोखुद लुगायां नै जगत-काका रै ओळू-दोळूं आपरी दुभांत रौ खासा-भलौ मोद व्है।

रमणियां री रंगत जगत-काका री रग-रग तासीर बदळती जावै। होळै-होळै वांरी आंख्यां सांम्ही चिळका रा मुधरा-मुधरा झांवळा तिरण लागै। ज्यां में आप सूं परबारी अेक न्यारी मोवनी छिब रौ सुरंगौ चित्रांम पळकतौ दीसै। अै भरम रा चित्राम घणकरा मिनखां री मीट-धरम, ख्यात, प्रेम, ग्यांन, संपत, परोपकार, हिंसा के नसा-पता री बंधोकड़ी झांकता लखावै। परतब साच री परपूठ आं झिलमिल चित्रांमां रै पांण वांरौ मन मोदीजै। आप रै मिनख-जमारा री थापना सीसा रै गारै अवचळ अर अतूट थरपीज्योड़ी लागै। पण जगत-काका री दीठ में फगत लुगायां रै खिंवते उणिवारां दूजी छिब रा बगत-परवांण न्यारा-न्यारा सरूप सांचरै। जिन भांत अबूझ टाबरां रौ मन ढूला-ढूली अर रमेकड़ां सूं बिलमै, इणी भांत जगत-काका रौ अधबूढ़ मन अजै तांईं लुगायां रै मन बिलमै।

आज तौ चीकणी पळकती तांबा-वरणी टाट बिना जगत-काका रौ डोळ नीं फबै, पण तेतीसां ढळ्यां पैली वांरै माथै घूघरियै केसां रौ काळौ छतर तण्योड़ौ हौ। हाल जिणरौ बखांण करतां जगत-काका री जीभ किणी भांत रौ संकौ नी पाळै। पछै तौ वगत री कुचमाद-काळा, कड़बटीला अर धोळै बाळां री तरतर संकड़ीजती झालरी। म्याळ-मिनका री गळाई कायरी आंख्यां। फींडौ नाक। गोळ सुघड़ बत्तीसी।

छोटी मूंफाड़। ओछी गाबड़। कबांण-गट्टा खंवा। सीमा सूं ईं सवाई धूंद। सिरैपोत लुगायां री असैंधी आंख्यां जगत-काका रौ डोळ ताबै नीं बैठै। पण होळै-होळै सेंगत व्हियां इण रुणझुणिया रौ ढंग-ढाळौ पैला जित्तौ अपरोगौ नीं लागै।

अेकर दफ्तर में लुगायां रौ फूठरौ मजमौ जम्योड़ौ हौ। जगत-काका री आंख्यां, चिळका रै झांवळां आप सूं परबारी अेक छिब रौ चित्रांम कुरण वाळौ हौ के सताजोग री बात के अंगरेजी रौ अेक वरिस्ठ अध्यापक मांय आयौ। नांव मुरळीधर पुरोहित। चिपतां ईं जगत-काका री निजर उणरै माथा माथै पड़ी। केसां रौ काळौ मुगट वांनै हौ जिण सूं ईं दूणौ दीस्यौ। पूजती कद-काठी। सांचै ढळ्यौ ओपतौ डील। ओपता गाभा। जगत-काका रै चित्रांम में अचांणचक की भंज पड़ग्यौ। नमस्कार रै उपरांत जगत-काका ठीमर सुर में कह्यौ, “अबार अेक जरूरी बात में रूधोड़ौ हूं, जे कीं खास कांम नीं व्है तौ कालै पधारज्यौ।”

मुरळीधर पुरोहित रै नीं सुभाव में गळेटा अर नीं उणरी बोली में लाग-लपेट। पेटा री बात सीधा होठां दरसाई के जरूरी कांम नीं व्हियां वौ बिरथा डाफा क्यूं खावतौ...।

वौ धकै कीं कैवणी चावतौ पण जगत-काका सूं सबूरी नीं व्ही। बिचाळै मोसा री तीख में बोल्या, “म्हारै पाखती आवण नै बिरथा डाफा समझौ तौ अठै पधारण री भूल क्यूं कीवी?”

मुरळीधर मजमा कांनी उडती मीट उछेर लिलाड़ में सळ घालतौ बोल्यौ, “कीं अैड़ी अंवळी आडी पजगी, जिण सूं माडै आवणौ पड़्यौ, नींतर सात बरसां में इण दफ्तर री थहळी नीं चढ्यौ।”

अैड़ा लूखा अर विस्वादा बोल जगत-काका इत्ते मांन होय पैली वळाई आपरै कांनां सुण्या। पड़दां झरणाट माची। माडै मुळक ढोळता कैवण लागा, “पण म्हैं तौ बिना कांम मिळै-भेंटै उणरौ कायदौ बत्तौ राखूं।”

“आपरी दातारी किण सूं छांनी, पण म्हनैं बिना कांम अठी-उठी झांकण री वेळा कठै! जे इण बरस मां गंठिया-बाय में नीं झिलती तौ बदळी सारू अरजी नीं देवतौ।”

दो-तीनेक महिलावां मुरळीधर रौ सुभाव ओळखती ही। अेक जणी कह्यौ, “आंनै पोथ्यां बांचण रौ भूंडौ चस्कौ, माथौ ऊंचौ नी व्है।”

पण मुरळीधर रै मूंडै गंठिया-बाय अर बदळी री बात सुणतां ईं जगत-काका रै माथा में घरणाटी माची। पोथ्यां रै चस्का री बात सावळ सुणी कोनीं। झटौझट दराज सूं अेक लिफाफौ काढ्यौ अर मुरळीधर रै सांम्ही करतां बोल्या, अै सोवन-आखर आपरा इज है?”

सवाल रौ म्यांनौ सावळ समझ में नीं आयौ तौ मुरळीधर गताघम में पजतौ थकौ कैवण लागौ, “सोवन-आखरां रौ मरम तौ आप जांणौ, पण पतौ म्हारै हाथां इज लिख्योड़ौ है।”

झूलरा रै सांम्ही लिफाफौ वगावता जगत-काका इचरज रै लटकां कैवण लागा, “सात बरसां सूं सिक्सा विभाग में मास्टरी री गादी खूंदै अर पिंडां नै जाच कोनीं के म्हारौ नांव कांई है?”

केई बरसां उपरांत आपरै साचैला नांव री ओळखांण सांप्रत धकै पड़ी तौ जगत-काका री रग-रग मठोठी लागी। उपनिदेसक सिक्सा-विभाग, जोधपुर रै पदै स्री जगतप्रकास दाधीच रौ नांव बांच्यां मजमा रै इचरज रौ पार नीं रह्यौ। आक-बाक होय दोय-तीन जणियां सागै बोली, “जगत-काका, म्हांनै तौ साचांणी आज जाच पड़ी के आपरौ नांव जगत-प्रकास दाधीच है। कैड़ा सिरै नांव रौ कैड़ौ पोखाळौ कर्‌यौ!”

जगत-काका रै काळजै ताजणा रौ सटीड़ उड्यौ। आखतै सुर बोल्या, “जद इज तौ पतौ बांच्यां कालै सूं ईं म्हारै झाळ-झाळ ऊठगी। रावळी बाट जोवतौ इज हौ।”

“आप बाट जोई अर म्हैं हाजर व्हैगौ। पण म्हारा ठोठ मगज में हाल बात नीं जमै के साचैला नांव सूं आपनै इत्ती चिड़ क्यूं?”

जगत-काका पडूत्तर देवण सारू ताखा-माखा करण लागा के अेक अध्यापिका मुरळीधर रै सांम्ही देखती बोली, “जणा-जणा रै मूंडै जड़ाव री जात जगत-काका री बतळावण तौ आपरौ साचैलौ नांव है।”

तठा उपरांत जगत-काका रै रांम-जांणै कांईं जची सौ दो-तीन वळा मूंडौ मस्कौर 'जगतप्रकास दाधीच, जगतप्रकास दाधीच' री सूग उलाकता, लिफाफा रा टुकड़ा मसळ-मसळाय रद्दी री टोकरी तालकै कर्‌या।

बात अर बात रौ नांव। कैड़ौ अचीतौ धुरळियौ मच्यौ। लिफाफौ फाड़्यौ तौ कीं कोनीं। अरजी तौ ठांणै इज व्हैला। वौ नीठ अटकतौ-अटकतौ बोल्यौ, “जे मां री अैड़ी मांदगी में ईं सेवा नीं करूं तौ नौकरी म्हारै कांई भाव पड़ै?”

“तौ छोड़दौ नौकरी, किणी माथै किरियावर थोड़ौ है।”

“किरियावर तौ किण माथै करूं, पण नौकरी छोडूं जैड़ौ म्हारौ ठरकौ कोनीं।”

“ठरकौ कोनीं के लोतर कोनीं?”

कुत्तौ भुसै तौ जगत-काका बुचकारनै ढाबै, पण आज तौ वै मुळगौ चेतौ बिसरग्या। पण मुरळीधर आपरै आपा में हौ। निरांत सूं बोल्यौ, “आप म्हारा लोतर जांणणी चावौ तौ मोहनगढ़ रै चोखळै अर म्हारै चेलां नै बूझौ।”

“बूझूंला; झख मारनै बूझूंला। दूजौ कांम कांईं, जिकौ पाकिस्तांन रै कांठै धोरां री धूळ फांकण सारू गदका खावूं। अर वौई पिंडां रै लोतर री तपास खातर! जे लोतर रौ लवलेस व्हैतौ तौ आपनै इण बात री सुभट सोय व्हैती के म्हारा सूं बदळी री बात करण खातर वेळा नीं है।”

“माफी बगसावौ। धापनै भूल व्हैगी। सात बरसां में किणी दफ्तर रै बारणै नीं फरूक्यौ। पछै कीकर सोय व्है? आप चिपतां फरमाय देता तौ इत्ती झोड़ नीं व्हैती। कालै वगत-परवांण आवूंला।”

लुळताई री अैड़ी चासणी देखी तौ जगत-काका खोळा पड़ग्या। अपणायत रै सुर खरावता बोल्या, “पण गरूजी कांन खोल सुभट सुण लीजौ के अेक सौ आठ वळा पांना माथै जगत-काका रौ नांव लिख्यां टाळ सुणवाई नीं व्हैला।”

पण वौ तौ हांमळ भर्‌यां बिना व्हीर व्हैगौ। अणूंती अछेरी लागी जांणै मूठी वांनी वारै माजनै उछाळ ढळ्यौ व्है।

थोड़ी ताळ तांईं तौ सांम्ही बैठी लुगायां रा उणियारा उड़क-धुड़क अेक-मेख व्हियोड़ा दीस्या। पछै होळै-होळै मीट नितर्‌यां, खुदौखुद रै खोळ्यै गोटीज्योड़ा, फदाक मारी तौ वांनै न्यारी-न्यारी लुगायां रा न्यारा-न्यारा उणियारा पाछा सुभट दीखण लागा। किणी सूं नवी तौ किणी सूं जूंनी ओळखांण। जे परमेसर भूल-चूक सूं मिनखां री दुनिया में लुगाई रौ वरदांन नीं पूरतौ तौ विरंगौ संसार जीवण-जोगौ नीं रैवतौ। लुगायां रा रूप लारै कुदरत रूपाळी लागै। नींतर चांदणी, बिरखा अर बापड़ा फूलां में धर्‌यौ कांई! तद लुगायां री संगत अेक नाकुछ मास्टर री गिनरत कर्‌यां जगत-काका नै छाजै भलां! अणछक वां उणियारां रै कांमण वांनै अेक चिळकौ हवा में तिरतौ दीस्यौ। अर दूजै छिण चिळका रै मांय अेक धूंधळौ-धूंधळौ चित्रांम परगट व्हियौ-सुथराई सूं टाळ काढ्योड़ी फूंदीकट मूंछ्यां। कोट रै सांम्हौ-सांम्ह झबझबातौ साख्यौ। जगत-काका रौ जीव अजेज उण चित्रांम में चापळग्यौ। होठां जगमगती मुळक सांचरी। कुरसी माथै उछळता जोर सूं बोल्या, “जे म्हैं हिटलर व्हैतौ, तौ...!”

किणी नै किणी भांत रौ इचरज नीं व्हियौ। मोटा मिनखां रै आंगै पोखीजण रौ सुभाव नवादू नीं हौ। अेक जणी तौ हंसती थकी तुरंत बोली, “बापड़ा मुरळीधर री मौत तौ अखरै ही। के तौ गेस चेम्बर में के...”

जगत-काका अणूंती हूंस रै बघार बिचाळै बोल्या, “अेक बावळी में तौ घाटी नीं। जे म्हैं हिटलर व्हैतौ तौ मुरळी-फुरळी नै ओळखणा रौ तंत कद जुड़तौ! सावळ सोच-विचार नै छांण काढ़ौ, जे म्हैं हिटलर व्हैतो...”

“तौ म्हांनै सवाल सुणण रौ सभाग कद सजतौ?”

पण अेक जणी असली छांण काढ़्यौ। बोली, “जगत काका, जे आप हिटलर व्हैता तौ रूस माथै भवै चढ़ाई नीं करता। आखी दुनिया री जीत अखरै ही।”

“ऊं हूं।” जगत-काका झीणी मुळक छितरावतां कह्यौ, “जे म्हैं हिटलर व्हैतौ तौ दुनिया नैं जुद्ध रै बदळै प्रेम सूं जीततौ। फगत प्रेम सूं बात री बात में लाखूं जहूदियां रा प्रांण बच जाता।”

माडै उफणती हंसी नै ढाबती अेक बंगाली अध्यापिका बोली, “आखौ ईस्ट यूरोप रूसियां री खूनी डाढ़ सूं बचतौ जकौ सवाय में।”

“हां, सौ तौ बचती ईं” पछै करम ठोकता सूग रै आखरां बोल्या, “अैड़ा गधा-गोदां नै कुण मास्टर बणाय दिया। जे म्हैं सिक्सा मंत्री व्हैतौ तौ अैड़ा पतबायरा मास्टरियां नै अेक ही झटकै मोकूब कर देतौ।”

“नीं जगत-काका नीं, हिटलर बण्यां उपरांत आपनै सिक्सा-मंत्री रौ नाकुछ पद नीं ओपै। गोळी मारौ।” वा इज बंगाली महिला ओड़ौ देवती बोली।

“धीमै धीमै। गांधीजी री तस्वीर रै सुणतां गोळी-वोळी री बात मत करौ।” जगत-काका आपरै होठां हाथ देय उणनै पालतां कह्यौ।

अर उण दिन बिना हित्या अर हिंसा रै हिटलर वाळौ वौ मजमौ प्रेम सूं बिखरग्यौ। पण जगत-काका तौ मजमा रा इज पुतळा हा। वांनै लुगायां रै मजमा टाळ आवड़तौ इज नीं। जांणै अेकला आपौ आप सूं डरपै। इण खातर अदीतवार अर दूजी तातीलां वांनै खारी आक लागती। जे किणी तातील मजमा री जुगत नीं जुड़ती तौ दिन उथापणौ भार व्है जातौ। के तौ मजमौ जुड़तौ जठै वै भेळा व्है जाता अर के आपरै घरै मजमौ भेळौ कर लेता। नींद रै सपनां ईं जे मजमा री जाजम नीं ढळती तौ वांरी नींद उचट जाती। पसवाड़ां दर पसवाड़ां बाळण जोगड़ी रात रौ नीठ सूं मूंडौ काळौ व्हैतौ। मांय री मांय धुकती-छीजती मिड़कल घरवाळी सूं वांनै ओक्या इज बैठगी। घरवाळी है तौ घर संभाळै, फूस वाहीदौ, बरतन-बासण, रसोई अर धोवाधावौ।

दूजै दिन, सागै मजमा में अेक पंजाबी निरीक्सिका रौ नांमी जोग सजग्यौ। झांकी मिळतांईं जगत-काका कोड सूं पूछ्यौ, “इत्ता दिन किसै अदीठ बनवास ढबणौ पड़्यौ? पूरा अेक महीना सूं नित गैर-हाजरी मंडै।

“गंगानगर मां अर भाई रै पाखती गी। केई महीनां सूं मिळणौ नीं व्हियौ।”

“मां अर भाई रा गना में लाई जगत-काका री कुण पूछ करै, रगत बिचै पांणी घणौ पतळौ व्है।”

“पण पांणी री गरज रगत सूं कद सरै!”

“वाह वाह! कैड़ी हाथौहाथ फारगती कीवी। जैड़ी ऊंडी समझ वैड़ौ माकूल पडूत्तर।”

अकल रै बखांण रौ नांमी ताखौ देख निरीक्सिका मुळकती बोली, “जगत-काका, आज आपरै पाखती अेक जरूरी कांम आई।”

“तौ इण में संका री किसी बात। दस कांम बतावौ। थांरा कांम सारू तौ म्हैं मळीच नौकरी करूं। बोलौ बोलौ, पैला कांम पछै रांम।”

“अेक चपड़ासी री ठौड़ खाली सुणी।”

“हां-हां, कैवौ जिणनै राख दूं।”

“अेक विधवा लुगाई नै आपरै भरोसै साथै लाई।”

“जरूर जरूर, आज आदेस कर दूं। जगत-काका रै भरोसा री भैंस पाडौ नीं लावै।”

तद वा लारै मुड़नै कोडाई हेलौ मार्‌यौ, “रामू री मां, रामू री मां! चपड़ासी रै सागै रामू री मां कमरा में‌ आई। उणियारै निजर पड़णा रै समचै जगत-काका रै मूंडै अजांण्या बोल रळक पड्या, “अैड़ी जवांन लुगाई अर विधवा! भगवांन आंधौ तौ नीं व्हैगौ?”

“भगवांन आंधौ व्हियौ तौ छौ व्हियौ। आपरी आंख्यां साजी-सूरी चाहीजै। बापड़ी विखा रा दिन सोरा-दोरा तोड़ लेवैला। म्हैं खुद घणी समझाई, पण अेकाअेक बेटा री खातर दूजौ ब्याव नीं करणी चावै। नींतर इणरी जात में दाछंट नाता व्है।”

“जद तौ गजब री मरद-लुगाई है। अबार हाथौहाथ आदेस सूंपूं। जेज किण बात री। बैठौ, कुरसी माथै बैठौ।” जगत काका रौ अैड़ौ कोड अर अैड़ी अंतावळ देख चपड़ासी रै खळबळौ माच्यौ। खुणिया सूदा हाथ जोड़ कह्यौ, “इण खाली ठौड़ सारू तौ आप म्हारा भाई नै थावस बंधायौ।”

चपड़ासी रै याद दिरावतां पांतरै पड़्योड़ी बात तुरंत याद आयगी। थोड़ा मोळा पड़ता थका कैवण लागा, “थावस बंधायौ तौ नटूं थोड़ौ हूं। पण थूं ईं बता, जे थूं, म्हारी ठौड़ व्हैतौ तौ जवांन विधवा माथै थोड़ी-घणी दया नीं विचारतौ?”

चपड़ासी नाक री डांडी माथै दो-तीन वळा आंगळी फेरतौ बोल्यौ, “अैड़ी आस म्हैं नोज करूं। अै तौ पूरब-जलम रा करम आडा आवै। म्हारी अैड़ी पुन्याई कठै?”

“देख, भूंडौ नीं मांनै तौ आज थनै अेक लाख रिपियां री बात समझावूं। थोड़ी ताळ वास्तै सोच तौ खरी के जे इण भांत गांव-गांव सूं खेती रौ हलीलौ छिटकाय सगळा करसा राज री नौकरियां खातर रांचण लाग्या तौ देस री कळबळती आबादी नै धांन कुण पूरैला? सोच री बात है।”

“गरीब परवर, म्हारी अैड़ी ऊंडी समझ कठै? पण म्हारा अेक भाई री खातर देस में धांन रौ घाटौ पड़ै तौ जावण दौ। धणी रौ धणी कुण?”

“धणी! म्हैं तौ थां लोगां रौ चाकर हूं चाकर! पण लाडी, थूं किसौ नीं जांणै के थोड़ौ-थोड़ौ करतां ईं लंक लागै।” सिरै मंतर सुणाय जगत-काका च्यारूंमेर भाळ्यौ। चपड़ासण नै ऊभी देखी तौ वळै जोर देय कह्यौ, “बैठ बैठ, कुरसी माथै बैठ। सुतंतर भारत में सै बराबर है। कोई छोटौ-मोटौ कोनीं।”

पण रामू री मां तौ कुरसी माथै नीं बैठी। सुतंतर भारत सूं उणरौ कांईं तल्लौ-मल्लौ। संकती-संकती बोली, “म्हैं तौ आज दिन तांईं कुरसी माथै बैठी कोनीं। नामूंन थोड़ौ बधै!” झूलरा री अछेरी मीट रौ झबकौ पड़तां ईं जगत-काका रौ माथौ ठणक्यौ। पछै उणनै कुरसी माथै बिठावण खातर मुळगौ वाद नीं कर्‌यो। आंमण-दूंमणौ चपड़ासी कमरा रै बारै बैंच माथै बोलौ-बोलौ बैठग्यौ।

आज रा झूलरा में दो लुगायां बेसी ही। अेक तौ जवांन विधवा चपड़ासण अर दूजी पंजाबी निरीक्सिका। पद अर भणाई रौ छोगौ नीं व्है तौ वा नवी चपड़ासण दीखतै उणियारै किणी सूं माड़ी नीं ही। जगत-काका दो-तीन वळा चोर निजर चपड़ासण री जवांनी रौ तूमार जोय, सांम्ही बैठा झूलरा रै उणियारां मीट घोळ दी। अर थोड़ी ताळ उपरांत वांरी आंख्यां सांम्ही चिळका रौ अेक गोळ चकरियौ झबूकण लागौ-धोळी टोपी, धोळौ झब्बौ अर धोळी धोती, इकलंगी। उणी पलक सै म्यांनौ समझ में आयग्यौ। गेळीज्योड़ा सुर में कैवण लाग्या, “हिटलर बण्यां थारै डाफी चढै तौ हिटलर लारै धूळ वगाऊं। पण जे म्हैं राजस्थांन रौ मुख्यमंत्री व्हैतौ तौ साचांणी इण सूखी धरती रै थळ-धोरां री काया पलट कर देतौ अर बिना अेक कोडौ खरचियां। बिना अेक कोडौ खरचियां। बतावौ कीकर?”

कुण कांईं बतावती! पण तौ जगत-काका रै घोदायां अेक जणी कह्यौ, “जद आप तेवड़ी हौ तौ आप बतावौ। म्हैं मुख्यमंत्री बणूं तौ म्हारै मन री बात बताऊं।”

“बतावौ बतावौ, थांनै म्हारी सौगन। कोई बेजा बात कोनी; थें मुख्यमंत्री बणौ तौ सिरैपोत किसौ कांम करौला?” जोर सूं ताळी बजाय वै हंसता थका बूझ्यौ।

वा नीची धूण कर्‌यां होळै-सीक पडूत्तर दियौ, “आपनै हाका-धाकां निदेसक रौ पद सूंप देवूंला।”

सूरज आडी बादळी आयां कमरा में उजास कीं मगसौ‌ पड़्यौ तौई किणी नै कीं बेरौ नीं पड़्यौ। सगळाई आप-आपरै चांनणै रूधोड़ा हा। अड़ौअड़ बैठी बंगाली अध्यापिका खुणी सूं घोदावती बोली, “बस निदेसक बणायां नेहचौ व्है जावैला। जे म्हैं राजस्थांन री मुख्यमंत्री बणूं तौ जगत-काका नै दूजैई दिन सबसूं पैली सिक्सामंत्री री सपथ दिरावूं।”

“औ मूंडौ अर मसूर री दाळ। नीं नौ मण तेल व्है अर नीं राधा नाचै।” पंजाबी निरीक्सिका होठ मुळमुळावती डोढ़ फेंकी।

जगत-काका दो-तीन वळा भोडक हिलाय कह्यौ, “आंहां, नौ मण तेल री किसी बात! आजकालै तौ राधा रै नाचण सारू आधौ पलौ तेल उबरतौ पड़्यो। मुख्यमंत्री पलटग्या। मोटी बात है जमाऊ कांम करणौ। जिण सूं पैल फटकारै धोरां री छिब बदळ जावै। फगत न्यावेक निजर खुली राख्यां तुरंत सूझै।”

तीन-चार वळा चिमट्यां बजायां उपरांत नवी चपड़ासण रै सांम्ही जोय धकै कैवण लागा, “काती महीनै, तीसूं तारीख नित जांझरकै, गांव-गांव री लुगायां पींपळ सींचै। बिना किणी रै हुकम-आदेस। पीढ्यां सूं। धणी बरजै तौई नीं मांनै। क्यूं मांनै? खुदौखुद रै सागै धरती नै सिणगारण वाळी क्यूं किणी री गिनरत करै? वा तौ धरती रै बणाव-सिंगार सारू अवतरी। जे राजस्थान री अेक-अेक लिछमी रै अंतस छट बारूं मास बिरछ सींचण रा चमचाळ्या व्है तौ वै किणरै पाली ढबै? खेती, गळियारा, मारग, सड़क अर आबादी टाळ राजस्थान में सगळै रूंख रूंख झूमता लाधैला। जठी निजर ढूकै उठी रूंख अर बिरछ। बिरछ अर रूंख! सूखी धरती रै इण अढब नजारा रौ कुंतौ तौ करौ!”

अणछक बिजळी बंद व्हियां घरर-घरर चालतौ पंखौ मतै ढबग्यौ। जगत-काका ऊंचौ भाळता कैवण लागा, “राजस्थान री सूखी धरती रै पांच-पांच पांवडै बिरछ व्हियां मेह-पांणी रौ कांई तुठार! अलंघां री खड़्योड़ी बिरखा बूठैला—धरर... धरर! नीं राजस्थान नहर रौ पंपाळ अर नीं बेरा-बावड़ियां रौ पराळ कूटौ। नीं बिजळी री लाय-पाय अर नीं पांणत रौ धयौ। रूंखां री ठाडी छींयां रै भीड़ै नीं इत्ती तपत व्हैला अर नीं पंखां री हवा रै भरोसै परबस होवण री लाचारी।”

माडै आंसू तौ नीं ढबै पण हंसी नै तौ ढाबणी पड़ी। मातेती री लाचारी खासी मोटी लाचारी है। मातेत व्हियां ईं जाच पड़ै।

राजस्थान री कायापलट रै थावस जगत-काका मुख्यमंत्री टाळ वळै किणी दूजी चावना सारू मन नीं डुळायौ। वांरै भावै तौ कुररा-काळ रै नेगम-बिखा री सै तळतळावण मिट-मिटाय गांव-गांव अर ढांणी-ढपांणी नव-निध व्हैगा हा। धोरां री धरती रौ जायौ-जलम्यौ धांन-चूंन अर धीणा-धापा री मोकळ रै हींडै हरख रै झोटां हींडतौ हौ।

थोबड़ौ सुजायोड़ौ चपड़ासी जद जगत-काका रै हाथ मुरळीधर पुरोहित रै नांव री परची झिलाई तौ वै नाक में सळ घाल ऊपरला मन सूं हेलौ मार्‌यौ, “पधारौ गरूजी, मांय पधारौ।”

सगळां सूं जुहार कर्‌यां उपरांत मुरळीधर जांणै काल रै रींझट रौ पिछतावौ करतौ व्है ज्यूं बोल्यौ, “आज तौ मिळण री वेळाई आयौ?”

जगत-काका रा मन में ईं काल रै धुरळिया रौ थोड़ौ-घणौ गिरगिराटौ हौ। अबार आपरै हाथां राजस्थान री कायापलट व्हियां पूरौ नेहचौ धार्‌योड़ा हा। मनाग्यांना मुरळीधर रै ढंग-ढाळा रौ पोत उकराळ्यौ। थळी रै सिंधियां री भांत पट्टा छंट्योड़ा। छाजळ-गट्टा। लारै चवड़ा अर धकै सांकड़ा। खीज अर भोपाडफरी सूं बख में आवणियौ काटी नीं। तौ जांणै आपरै इज दंद-फंद में अळूझ्योड़ौ। आपरै इज गोरखधंधै गम्योड़ौ। लुळताई राख्यां ईं नीठ परोटीजै तौ परोटीजै। स्वारथी अर लोभी मिनख नै केवटणौ कित्तौ सोरौ। जगत-काका सुर में मिठास घोळता बोल्या, “काल री गुस हाल मिटी कोनीं दीसै। अरे बाबा, जगत-काका सूं मिळण में रांड किसी तौ वेळा अर किसी कुवेळा। जद मरजी व्है मिल सकौ।”

पछै उणरै सांम्ही हाथ धकै करतां बूझ्यौ, “लाया, अेक सौ आठ वळा लिखनै वौ पांनौ लाया?”

गाबड़ री सांनी रै ओळावै उणरै नटतां ईं वांरी सिंग्या रै जांणै वांण इज वेगौ। पांवडै-पांवडै रूंख-बिरछां सूं भर्‌यो-तर्‌यौ वाल्हौ राजस्थान अेक झोलै उजड़ग्यौ। हाब-गाब होय वळै बूझ्यौ, “इत्तौ खरायां उपरांत भूलग्या?”

“भूल्यौ तौ नीं, पण मजाक री बात जांण म्हैं कीं यारै नीं कीवी।”

“मजाक! इण कुरसी माथै बैठी, म्हैं अेक मास्टर सूं मजाक करूंला? लिखौ म्हारै सांम्ही लिखौ। अेक सौ आठ वळा-जगत-काका, जगत-काका।”

मुरळीधर पुरोहित नै तौ पतियारौ नीं व्हियौ। पतियारौ करै जैड़ी बात नीं ही। आपरै मापीणै वौं सै मिनखां री परख करतौ। अभरोसा अर इचरज रै पुट कैवण लागौ, “आप कांईं भोळी बातां करौ, म्हैं तौ सात बरसां सूं बारै काळौ-पांणी भुगतूं अर आपनै फगत आपरै नांव री इज लवल्या लाग्योड़ी!”

“बारै! बारै कठै? हिन्दुस्तांन सूं बारै। सै हिन्दुस्तांनियां रौ अेक देस है-भारत! मोट्यार-काटी हौ, थोड़ी-घणी तौ जिम्मैवारी समझौ।”

“पण जिम्मेवारी म्हारै अेकला रै इज पांती क्यूं आवै? वळै चार बरस चूंकारौ नीं करतौ, जे मां री अैड़ी कुजरबी मांदगी...!”

“मांदगी, मां री मांदगी! जे सगळा आप-आपरी मावां सारू इण विथ कूकण लाग्या तौ भारत-मां रा कांई दीन व्हैला? थांरै भेळाभेळ म्हारौ वगत क्यूं बिगाड़ौ? दूजा केई जरूरी कांम है। रावळी मां खातर माथौ पचावण री म्हनै वेळा कठै! अै मांदगियां-फांदगियां रा धूतक दूजां नै बताजौ।”

“आप जांणौ के म्हैं झूठ बोलूं?”

“आप नोज झूठ बोलौ। झूठ-झूठ तौ फगत म्हारै पांती आयौ। म्हैं हळाहळ झूठ बोलूं।”

इण झूठ-सांच रौ भलां कांई निवेड़ौ व्हैतौ! मुरळीधर पुरोहित अर उणरी मां रा करम इज माड़ा। नींतर जगत-काका रै मांणक-मूंडै अैड़ा थोक सुणण री जरूरत किसी ही! वौ निरभागी तौ वळै काल री भांत नमस्कार करनै बोलौ-बोलौ व्हीर व्हैगौ। अबै आफरौ झाड़ै तौ किण माथै! वळै लिलाड़ ठपकार वौ छेहलौ मंतर सुणायौ, “औ सिक्सा-विभाग अजब-गजब जंतुवां रौ बाड़ौ है।”

थोड़ी ताळ उपरांत कमरा री हवा कीं ताबै आई तौ बंगाली महिला हीमत करनै बोली, “आप भूंडौ नीं मांनौ तौ अेक बात कैवूं।”

“म्हैं कदैई किणी बात सारू भूंडौ मांन्यौ? बोलौ, निसंक बोलौ।”

“इणरी मां साचांणी गंठिया-बाय में भूंडै-ढाळै झिल्योड़ी है। अेकाअेक बेटौ सात बरसां सूं मोहनगढ़ धूळ फाकै। पड़ौसी रै नातै म्हैं थोड़ी-घणी तौ संभाळ करूं, पण मां रौ जीव बेटा बिना नीं धापै।”

“तौ आपरी लुगाई नै मां रै पाखती राखै।”

“पण लुगाई है किण ठालाबूला रै। परणीज्योड़ी व्हैतौ तौ कीं रांझौ नीं हौ। इणरी मां माथै थोड़ी दया विचारौ।”

“म्हैं तौ सेवट दया विचारूंला ई, पण पांनौ लिखतां इणनै मौत क्यूं आवै?”

“म्हैं निरांत सूं सावळ समझावूंला।”

“तो इणरी बदळी जोधपुर खरी।”

गंगानगर वाळी महिला कह्यौ, “आप मोटा हौ, मोटी विचारौ।”

“इण सूं मोटी वंळै कांई विचारूं?”

दूजै अर तीजै दिन मुरळीधर रै लिख्योड़ौ पांनौ जगत-काका रै हाथ में नीं आयौ जित्तै वाइज उडीक अर वाइज तळ-तळावण! जांणै गंठिया बाय री मांदगी वांरै जौड़ां चापळगी व्है। नीं व्हैती पीड़ रा चभीका हालण ढूका।

अेक-अेक दिन ढळतां जगत-काका सारू आखौ पखवाड़ौ सूखौ निकलग्यौ। पण आज सागेड़ी बिरखा वूठी। गंगानगर वाळी महिला रै डागळै उणरी बरसगांठ रौ ठावकौ मजमौ जम्योड़ौ हौ। नवी चपड़ासण बथ-बध नै कोड सूं सै कांम निवेड़ती ही। जगत-काका उणरै कांम सूं जांणै जित्ता राजी हा। ऊंचे आभै सातम रा चांद रै ओळूं-दोळूं अणगिण तारा घेरौ घाल्योड़ा हा। हेटै धरती माथै दुनिया रै किणी अेक डागळै जगत-काका रै च्यारूंमेर महिलावां रौ झूलरौ घेरौ घाल्योड़ौ हौ। दोनूं ठौड़ हरख री चांदणी मावती नीं ही। पण तौ जगत-काका नै चांदणी अणूंती दुमनी अर चांद पिलांदरौ निगै आयौ। ऊंडै काळजै किणी तीखी सूळ री रड़क साल्हती ही। अठी-उठी री बातां-बिगतां रै ओळावै जगत-काका सेवट बंगाली महिला नै बूझ्यौ, “कांईं वौ वादीलौ ढोलौ हाल नीं मांन्यौ?”

“आधौ-दूदौ तौ मांनग्यौ। कळाप कर्‌यां आधा-दूदौ वळै मांन जावैला।”

“कद मांन जावैला? मां रै मर्‌यां मांन जावैला।”

उण री दोनूं आंख्यां में अेकण सागै बिजळी री खिंवण भळकी। अेकर तौ जगत-काका रै हीयै धूजणी वड़गी। पण दूजै छिण आपौ संभाळता उण नै वत्ती चिगावण खातर बोल्या, “उण नै मनावणौ है तौ इण नाकुछ कांम सारू कांईं मनावै, थनै परणीजण सारू क्यूं नीं मनावै?”

जगत-काका रै हाथां भाटौ तौ कावळ छूटौ। कुण जांणै बात किण नाकै ढूकैला! पण उण रौ पडूत्तर सुण्यां किणी रै इचरज अर ईसका रौ पार नीं रह्यो। वा तौ इण भांत निसंक बोली जांणै आपौ-आप सूं बंतळ करती व्है। जगत-काका री आंख्यां में मीट गडाय कह्यौ, “म्हैं तौ समझावण में कीं खांमी राखी नीं, पण वौ वादीलौ ढोलौ मांनै जद! नीं व्है तौ अेकर आप उण नै समझावौ।”

जगत-काका रै आखै डील धड़धड़ी छूटी। अटकता- अटकता नीठ बूझ्यौ, “कुण, म्हैं समझावूं? म्हैं समझावूं? हां, थू कैवैला तौ समझावूंला। जरूर समझावूंला।”

तमांम झूलरौ अेकण सागै तालियां बजावतौ बोल्यौ, “जगत-काका रै समझायां तौ कैड़ा मूरख नै मांनणौ पड़ै। दस किलौ मिठाई सूं कम में सोदौ नीं पटैला।”

“मिठाई री तौ ना कोनीं, पण वौ मूरख अंगै नीं है। म्हनै तौ उण री जोड़ रौ दूजौ समझवांन मिनख निगै नीं आयौ।”

दो अेक जणियां डोढ़ में बोली, “परणीज्यां पैली इत्ता बखांण! निजर रौ मादळियौ तौ मंतराय लै।”

साथणियां री खिखर-खमडोळ में जगत-काका री गत मांय री मांय भूंडी बिगड़ी। मैण रौ सिंघ नीं पिघळै जित्तै तौ सिंघ री गरज सारै। अबै किणी दूजा खोळ्या री सरण नीं झाल्यां तौ चालतौ सांस थम जावैला। वांनै जद-कद चिळका अर चित्रांम री चावना व्हैती तौ नीं दिन आडौ आवतौ अर नीं रात। सातम री चांनणी रै पड़दै अणछक अेक भळभळातौ चिळकौ पाथर्‌यौ। गोळ-गोळ भरणाटी खावता उण चकरिया में अेक छिब दीसी। धूंधळी-धूंधळी। ओळखतां ईं वै चालू बंतळ रै मूचौ देय भारी गळ में बूझ्यौ, “जे म्हैं नाथूराम विनायक गोडसै व्हैतौ!”

हेवा व्हैता थकां ईं किणी रै कांनां जगत-काका री अचीती अपरोगी मंसा नीं झरी। सुणतां ईं अैड़ौ लखायौ जांणै चांदणी में ठौड़-ठौड़ धूंवा रा गोट ऊठ्या व्है। पंजाबी निरीक्सिका छाती माथै हाथ धरती बोली, “तौ कांईं आपरै हाथां बापू री हित्या व्हैती!”

“आ इज तौ बात है। जे म्हैं नाथूरांम गोडसै व्हैतौ तो बापू री ठौड़ किणी दूजा रौ भख लेवतौ। बतावौ किणरौ?”

धड़ाधड़ केई मोटा-मोटा नांव होठां उछळ्या। मुरळीधर रौ नांव भेळमभेळ गांथीज्यौ, पण जगत-काका किणी नांव सारू हांमळ नीं भरी। घड़ी-घड़ी पळकतौ भोडक हिलावता नटता इज गिया, “आं हां, आं हां। सेवट री बाजी आंती आय वांनै आपरै अरथ-गरथ री गांठड़ी खोलणी पड़ी, “जे म्हैं नाथूरांम गोडसे व्हैतौ, तौ ओटाळ जिन्ना रौ पापौ काटतौ। नीं देस रा टुकड़ा व्हैता अर नीं अणगिण मांनखौ भूंडै ढाळै कटतौ-बढ़तौ। अेक नै मार्‌यां अलेखूं प्रांण बच जाता। हजारूं बैन-बेटियां...।”

बंगाली महिला तीन-चार सिंधी-पंजाबी अध्यापिकावां रा नांव गिणाय ओड़ौ देवती बिचाळै बोली, “जगत-काका, देस रौ बंटवाड़ौ नीं व्हियां, आं रूपाळी अपछरावां रौ अठै तंत कीकर जुड़तौ? नीं अै आपनै ओळखती अर नीं आप आंनै ओळखता। कित्तौ कांईं गब्दोळौ व्हैतौ।

वै तुरत गुचळकी खाई, “अरे, म्हैं तौ यूं ईं थांनै डरावण खातर चालू बात कीवी। जगत-काका रै हाथां जिन्ना तौ मोटी बात, अेक नाकुछ कीड़ी नीं किचरीजै। पण साचांणी, जे म्हैं नाथूरांम विनायक गोडसै व्हैतौ तौ बापू रै मूठी हाडकां री ठौड़ भ्रस्टाचार रै भूत रौ भूटकौ करतौ...ठें... ठें....ठें....।”

अैड़ौ चरम संजोग सज्यां ईं मिनख रै कंठां हंसी रौ ठेकौ नीं गूंजै तौ वा रोवण सूं वत्ती दुखदाई। कदास इण गत री हंसी रै होड़ौ लाग्यां ईं मिनखा देही रै मांय कठै कठैई कैंसर रौ उठाव व्हैतौ व्हैला।

जगत-काका आपरौ खोळ्यौ छोड नाथूरांम गोडसै री छिब नै पूरमपूर अटोपली ही। आपरै कंठां ठणकता अेक-अेक आखर माथै वांनै पूजतौ पतियारौ हौ। जद इज तौ जगत-काका रै मूंडै हाथ रै लटकां इत्ता जोर सूं तीन भूटका व्हिया के ऊंघीजता तारां री झपकै ऊंघ खुलगी। पण वांनै उण वेळा ऊंचौ जोवण री मोकळ कठै ही। तारा ऊंघै तौ ऊंघै। जागै तौ जागै। ताखड़ा तोड़ती हूंस रै बघार धकै कैवण लागा, “चवड़ै-धाड़ै, मज्झ बेफार रांमलीला रै मैदांन उणी पलक वौ जम हेटै गुड़ जातौ-धड़ांम। तीन हाथियां रै उनमांन लांठौ भोडक। सात बांस लांबा लटिया, मैल सूं चिपचिपा अर लुखथुखा। माटी री परात रै उनमांन तीन गोळ-गोळ आंख्यां, अेकण ठौड़ अटक्योड़ी। पांच हाथ लांबी गाबड़, पूरमपूर रूंगतां ढक्योड़ी। दो-दो हाथ लांबा दांत।”

इण जम सूं तौ जिंद छूटी पण मातेती रौ खईस हाल जीवतौ-जागतौ है। ठौरमठोर। भाखर रौ भार उठावणौ सोरौ पण मातेती रा तोख उठावणा दोरा। कद किणरै हाथां इण सूं पिंड छूटैला? कीकर छूटैला?

सै मांनखौ अर सै प्रांणी मरण सारू जलमै, उणी भांत राजस्थान रै विद्युत-मंडळ री बिजळी जावण सारू आवै। पंखा री घरणाटी बंद व्हियां जगत-काका दफ्तर में अेकला बैठा अखबार सूं हवा खावै हा। अैड़ी आड़ंग अर अैड़ी बळत तौ इण जमारै भुगत्योड़ी याद नीं आवै। तिण ऊपरां आपौआप सूं अेकल सांम्हेळौ। जगत-काका खुदौखुद आपरी संगत रै हेवा इज नीं हा। बड़भाग रौ संजोग के बीसेक महिलावां रौ झूलरौ धब्ब करतौ जगत-काका रै दफ्तर ठाडी बावळ रै उनमांन अचीतौ धमक्यौ। सोना रौ सूरज ऊगै जणा किणी नै बूझै नै थोड़ौ ऊगै। जोर सूं हाकाहक मचावता वै चपड़ासी नै कुरसियां लावण रौ आदेस कर्‌यो। पण कुरसियां ढाळ्यां रै उपरांत जगत-काका नै तुरत अेक दूजौ उपाव सूझ्यौ। परसेवा में घांण झूलरा रै न्यारै-न्यारै उणियारां जकी रंगत निगै आई तौ अजेज वांरै मूंडै दफ्तर सूं व्हीर व्हैतां पांण नींबड़ां री छीयां तळै जाजम ढाळण रौ चपड़ासी रै नांव फरमांण सुणीज्यौ।

पण आज उण झूलरा रै हीयै तौ अेक दूजी खदबद मच्योड़ी ही। कालै सूं ईं जोधपुर री सड़कां अर गळी-गळियारां हवा रै समचै हाकौ फूट्यौ जकौ हाल उणरी पड़गूंज नीं ढबी के टणकेल धाड़वी मंगळसिंघ री चूकती गैंग रौ खातमौ व्हैगौ। नौ धाड़‌वियां री ल्हासां पुलिस लेण रै मैदांन जनता रै जोवण सारू धरीजी। अेक ओटाळ धाड़वी मरतां-मरतां ईं दो सिपाहियां रै सागै अेस.पी. अमरनाथ नै ढाय लियौ। आखौ नगर हलबलै चढग्यौ। मर्‌योड़ा धाड़वियां नै निरखण सारू निसंक निरभै मेळौ मंडयौ। बापड़ा सै धाड़वी रगत में रगाबग सचळा बोला-बोला पड़्या। डरण जैड़ी कांईं बात नीं।

दफ्तर सूं बारै निकळतां ईं सांम्हौ-सांम्ह सड़क माथै हळफळाई भीड़ आपरी धुन में भाजती दीसी। बाईसिकलां रा पैडल चकरी चढ्योड़ा। पाळी भीड़ दोवड़ी खुणियां खुचखुचियै पगरखियां रा झपीड़ पाड़ती ही, जांणै उणरै हाथां ईं सै धाड़वियां रौ उत्तन ऊठ्यौ व्है।

के अणछक फाटक री उरली बाजू मुरळीधर रै सांढ़ै बंगाली अध्यापिका माथै जगत-काका री मीट पड़ी। ऊभा जठा सूं ईं आंचै-आंचै बतळावता बोल्या, “आज तौ गरूजी सेंजोड़ै पधार्‌या। सेवट तौ समझायां सुमत वापरी दीसै।” पाखती आवतां ईं आखता होय बूझ्यौ, “देखूं, आपरै हाथ री लिखावट कैड़ी'क है?”

“आधौ दूदौ जाप घटै, अबार अठैई बैठ पूरौ कर देस्यूं।”

जगत-काका रै जीव में जीव आयौ। मुरळीधर रै सांम्ही डोढ़ री मुळक उफाणता कैवण लागा, “मास्टरजी, अबार मांग रै कह्यां गुडाळ्यां चालण लागा तौ दिल्ली कीकर पूगीजैला?”

हवा में अेकण सागै हंसी रौ फव्वारौ छूट्यौ। पण मुरळीथर रै होठां नीं मुळक, नीं हंसी अर नीं खीज। इण वेताछीली खमडोळ सूं उणरै आपधापी सुभाव री अंगै रंगत नीं बदळी। जगत-काका रै कांनां उण अेकल मूंन री गूंज सगळी हंसी सूं वत्ती गूंजी।

महिलावां रौ कोडायौ झूलरौ भाजती भीड़ सांम्ही सांनी करतां कह्यौ, “जगत-काका, म्हे मर्‌योड़ा धाड़वियां नै निरखण रौ विचार कर्‌यौ। आपरै साथै चाल्यां दूणौ मजौ आवैला। जद इज तौ भेळी होय आपनै ले जावण खातर आई। पधारौ-पधारौ, अठै दफ्तर में नींतर तपै।”

हाबगाब दिहावळा मिनख रै सांम्ही सही धूम मारग पगां चलायनै हाजर व्हैगी व्है। मुरळीधर वाळौ लफड़ौ छिटकाय वांनै बरजतां समझावण लागा, “आं हां, अैड़ी भूल भवै मत करज्यौ। सरकार भूल कीवी सौ मोकळी। म्हारौ बस पूगै तौ टाबर-लुगायां नै अैड़ौ कावळ जंजाळ नीं आवण दूं अर थें साथै चालण री बात करौ।”

नींबड़ा री छींया तळै सुथराई सूं बिछ्योड़ी जाजम माथै ऊभता ईं जगत-काका च्यारूंमेर हाथ घुमावता धकै कैवण लागा, “थें तौ दुनिया नै सिरजण वाळी मां हौ। थांनै मौत रा दरसण छाजै भलां! म्हैं सरकार जैड़ौ मूरख नीं हूं। अबार पुलिस लाईन री फाटक रै पाखती बालचरां री तीण बांध दूं। किणी टाबर के लुगाई नै ल्हासां रै नैड़ाकर नीं फरूकण दूं। बाळ-गोपाळ अर लुगायां रा मन माथै कित्तौ बेजा असर व्हैला। जिणरौ कीं तूमार है!”

अेक रूपाळी अध्यापिका आड़ौ लेवती व्है ज्यूं बोली, “नीं काका...।”

वै बिचाळै धडूकता बोल्या, “वळै वा बात! सात वळा बोलौ-जगत-काका, जगत-काका।

आपरी भूल कबूल कर्‌यां उपरांत वा धकै कैवण लागी, “पण जगत-काका धाड़वियां री ल्हासां नै जोवण रौ वळै कद अैड़ौ नांमी ताखौ सजैला। अर वै अेकण सागै नौ। देखां तौ खरी के धाड़वी व्है कैड़ा?”

“कैड़ा कांई, साख्यात म्हारै जैड़ा।”

“आपरै जैड़ा! कांई आप धाड़ायतियां जैड़ा हौ?”

“ऊं हूं, म्हैं धाड़वियां जैड़ौ कोनीं। कैवण रौ सार के धाड़वी सगळा मिनखां जैड़ा मिनख है। वै दो हाथ, दो पग, दो आंख्यां, दो कांन, अेक माथौ अर दो नाक।”

“दो नाक?”

“हां-हां, दो नाक। अेक नाक व्हैतौ तौ लाज री धार बढ़ण रा डर सूं वै मिनख होय धाड़वियां जैड़ौ मळीच अर सूगलौ कांम करै भलां!”

“सूगलौ! सूगलौ कीकर? धाड़वियां रौ कांम तौ हिम्मत अर जोखम रौ है।”

“मिनख री हित्या में कैड़ी हिम्मत अर जोखम! हिम्मत अर जोखम रौ कोई सिरै कांम है तौ मिनख नै जलम देवणौ। आपरी देह रौ रगत पाय उण नै मोटौ करणौ। हिम्मत-हिम्मत वाळी तौ थें हौ। मां बणणा जित्ती जोखम रौ कांम दुनिया में दूजौ कीं नीं है। जगत-काका री गीता रौ सार-नांव फगत इज है। बोलौ, हिम्मत रौ कांम मिनख नै मारणौ के उण नै जलम देवणौ? मां बणण री जोखम उठावणी। बोलौ, बोलौ।”

इण बात रै समचै जगत-काका टांगा पसार जाजम माथै थरपीजग्या। तद सगळी महिलावां ईं हेटै बैठगी। नीची धूण कर्‌यां इण विध भेळी-भेळी होवण लागी, जांणै जापा री चसमस चीस अेकण सागै हाली व्है।

पांच टाबरां री मां अेक गोळ-मोळ मुख्याध्यापिका हीमत करनै पूछ्यौ, “पण जगत-काका, भिंड़ंत व्हियां अै पुलिस वाळा तौ धाड़वियां नै मारै!”

“छेबास, म्हनै इणी निगोट संका री आस ही। बापू रै अमोघ मंतर रौ इज म्यांनौ है, अंतस रौ बदळाव, अंतस रौ बदलाव!”

ताखड़ा तोड़ता चपड़ासी नै इत्ती ताळ बात करण रौ बख नीं मिल्यौ। अंतस रै बदलाव रौ 'सम' पूरौ व्हैतां ईं अरदास कीवी, “सा'ब...!”

सा'ब तौ परियां रै झूलरै चोळजोसां चढ्योड़ा हा। पण तौ आपरै नांव री खोटी बतळावण वांरै कांनां रड़की। दिखावटी खीज रै सुर चपड़ासी रै मिस जांणै मुरळीधर नै सुणावता जोर सूं कह्यौ, “सा'ब नीं, जगत-काका, जगत-काका! लगावौ पांच ऊठ-बैठक।”

चपड़ासी दोनूं हाथां कांन झालतौ कैवण लागौ, “जगत-काका, दफ्तर रा सगळा बाबू अर चपड़ासी धावड़ियां नै जोवण सारू आपरी दवायती मांगै।”

जगत-काका दवायती इनायत कर्‌यां उपरांत उणनै भुळावण दी के वौ उम्दा कॉफी बणायनै लावै। चपड़ासी रौ मन पेंखड़ां तोड़तौ हौ। खुणिया सूदा हाथ जोड़ होळै-सीक गुणमुणायौ, “म्हैं ईं सगळां रै भेळम-भेळ...!”

“इत्तौ कांईं आंचौ है! मर्‌योड़ा धाड़वी पाछा जीवता तौ व्है कोनीं। कॉफी बणाय जाजै परौ।”

“इत्ती ताळ तांईं जगत-काका अेकर मुरळीधर सांम्ही नीं जोयौ तौ उणरौ उणियारौ वांरी आंख्यां सूं अदीठ कठै व्हियौ!”

“म्हैं कांईं कैवतौ...हां... अंतस रौ बदळाव। जे म्हैं अेस.पी. व्हैतौ।”

“तौ इण सिक्सा-विभाग रौ कुण धणी-धोरी बणतौ?”

“थें डरौ मती, साच-माच रौ अेस.पी. नीं। थोड़ी ताळ वास्तै मांनलौ के म्हैं अेस.पी. व्हैतौ।”

“पण अैड़ी कावळ बात म्हैं मांनां ईं क्यूं? जे आप अेस.पी. व्हैता तौ आपनै अमरनाथजी री मौत मरणौ पड़तौ।” पंजाबी निरीक्सिका री लाजबाब संका ही।”

“आं हां, म्हैं अमरनाथ अेस.पी. री भांत नांढ़ थोड़ौ हूं। धाड़वियां रा भूटका सुणतां पांण पाधरौ लांबौ-धड़ाक धरती माथै पसर जातौ।” अर साचांणी मुकळाई रौ चेतौ राख वै तौ जाजम माथै ऊंधा पसरता इज निजर आया। थोड़ी गाबड़ उठाय होळै-सीक बूझ्यौ, “थें ईं बतावौ, अबै गोळी कीकर लागती?”

आलीजा अफसरां री खेप इज इण गत री व्है के फगत सिक्सा-विभाग रै करमां री इज पुन्याई पाकी। सोचण री बात है।

तठा उपरांत भचकै बैठा होय अेक गोडा रै पांण वै मोरचौ लेय बंदूक चलावता व्है ज्यूं कैवण लागा, “इण भांत बंदूक री नाळ सांम्ही कर वांनै वकारतौ- खबरदार, अबै गोळी चलाई तौ सगळां नै भूंन न्हाकूंला। मिनखाजूंण पाय क्यूं दर-दर जीव लुकावता फिरौ। हथियार बगाय सगळा सरेंडर व्है जावौ तौ धकली सै खींचातांण म्हारी। नेगम घर बसावौ। आपरा टापरा संभाळौ अर टाबरां नै जगत-काका री सीख-प्रमांण पूजता भणावौ। पछै जांच पड़ैला के मिनख-जमारा रौ साव कांईं व्है? अर वै साचांणी हथियार वगाय सरेंडर व्है जाता। अेक धाड़वी रै चड़ापौ बावण री जरूरत नीं ही। अंतस बदळियां पछै कांई आंट।”

दो अेक महिलावां रै हीयै अंतस रै बदलाव री बात झरी कोनीं। मूंडैमूंड संका कीवी, “पण जगत-काका, म्हां तौ सुणी के अै हित्यारा सवा सौ मिनखां रा नाक-कांन वाढ्या। ज्यां में घणकरा टाबर है। लुगायां तकात भेळी। जका अधबेरड़ा टाबर-लुगायां रा नाक वाढ़ै, वांनै पूजती सजा नीं देय, फगत अंतस बदळियां कीकर पोसावै?”

“पण अबै तौ किणी रा नाक-कांन पाछा जुड़ै कोनीं। तौ अेक इतियास री ओळी व्हैगी। आपां नै इतियास री चिंता छोड़, आगै अर फगत आगै देखणौ है।

इतियास नै रोयां इतियास नीं बदळीजै। नवी चेतना रै परताप नवौ इतियास रचीजैला। पापी री नीं पाप रौ पापौ काटौ, इज नवी चेतना जणा-जणा रै हीयै जगावणी है।”

पण मत-बायरी पुलिस नवी चेतना नीं जगाय कैड़ौ रुळियार-रासौ कर्‌यौ। ल्हासां नै जोवण सारू अलेखूं मांनखौ आवै अर जावै। डकरेल धाड़वी आंगणै पड़्या धिधकै। घावां छक्योड़ा। खांडा-बांडा। रगां रगत ठस्योड़ौ। बाका फाट्योड़ा। माख्यां भंवै। डोळ बिगड़्यां कंचन-काया कित्ती विडरूप लागै। किणी री जीभ बारै निकळ्योड़ी तौ किणी रा डोळा भंवियोड़ा। इण गसका रा धणी कांईं धाड़ा दौड़ता। पसवाड़ौ पलटणौ तौ मोटी बात, मांख्यां उडावण री सरधा कोनीं। वांनै इण विध भूंडै ढाळै मर्‌योड़ा जोय लोग-बागां नै आपरै जीवत खोळ्या रौ अणूंतौ मोद व्हियौ। मूवा धाड़वियां खातर अबै सपना कठै पड़्या। आंरै भावै अबै नीं तौ लूवां बाजैला, नीं ठारी पड़ैला, नीं सूरज तपैला, नीं बादळ बरसैला अर नीं सुरंगा फूल विगसैला। नीं आंनै भूख लागैला अर नीं आंनै प्रीत री चावना व्हैला। छळगारी कुदरत फगत जीवता प्रांणियां री हाजरी साजै।

अर उठी अेस.पी. अमरनाथ रै सागै दो सिपाहियां रै दाग में कित्तौ मांनखौ अड़वड़ियौ। अैड़ो नेक-नांमी सालस अर हीमतवर अेस.पी. जलमियौ अर नीं जलमै। हजारूं लोग बळ-बळता निसास न्हाकिया अर झरां-झरां रोया। मिनख तौ जैड़ै-तैड़ै टांणै आपरै खपतां किणी भांत री खांमी नीं राखै। नीं हंसण में सोटौ भुगतै अर नीं रोवण-रींकण में कोताई। मांनखौ तौ मेळा-खेळां रौ जीव है।

धाड़वियां रा अंतस आवगा बदळ-बदळाय जगत-काका पाळगोटी मार निरांत सूं जाजम माथै बैठा हा। अेक जणौ बूझ्यौ, “जगत-काका, मर्‌योड़ा मिनख रौ अंतस नीं बदळीजै?”

“आं हां, बात नीं बापू रै बस री ही, नीं जगत-काका रै बस री है। मर्‌योड़ा मिनख रै फगत आतमा व्है; अंतस नीं व्है। अर आतमा रौ सरूप कदै नीं बदळै।” अणछक कोई भूल्योड़ी बात याद आई व्है। “हां, अेक खास बात तौ म्हैं अंगै पांतरग्यौ। वां सरेंडर व्हियोड़ा नौ धाड़वियां नै म्हैं सिक्सा-विभाग री बसां रा डलेवर बणाय देतौ।”

तीन-चारेक फूठरी-फर्‌री महिलावां माथौ धूणती बोली, “नीं जगत-काका नीं, अंतस रौ कांईं पतियारौ। पाछौ बदळग्यौ अर कोई धाड़वी लड़कियां सूं भर्‌योड़ी बस लेय फरार व्हैगौ तौ...।”

“गजब व्है जाता! थें बगतसर नांमी याद दिराई। म्हारी कित्ती बदनांमी व्हैती! खैर सला, वांनै डलेवर नीं बणाय चपड़ासी बणाय देतौ।”

“गरीब परवर, भेळमभेळ म्हारै भाई रौ ध्यांन राखजौ।” चपड़ासी चेतौ राख पाछी याद दिराई।

“जरूर राखूंला।”

“पण जगत-काका, अपांनै अैड़ी जोखम क्यूं झेलणी? धाड़वियां रै कैड़ी निरख! वांनै तौ पुलिस में भरती करावणौ सावळ है। जिणरा जैड़ा माजना व्है, वौ उठै ओपै।” पंजाबी निरीक्सिका रौ सुझाव बेजा नीं हौ।

नींबड़ा री छींयां तळै बैठ्या ईं आसोजां री लाय अंगै कम नीं व्ही। बायरिया रै झोलां नै छिण-छिण उडीकतौ नींब अवचळ ऊभौ हौ। मजाल के अेक पांन तकात कांईं हिल जावै! जगत-काका च्यारूंमेर ऊंचौ भाळता, रूमाल सूं परसेवौ पूंछता कैवण लागा, “अपां बळत सूं काया होय, छींयां री सरण आया। पण छींयां तौ सांम्ही किणी दूजी छींयां रै आसरै जावण खातर तड़फा तोड़ै। पण नींबड़ा रौ ठायौ छोड जावै तौ कठै जावै! जे भगवांन री ठौड़ सूरज म्हारी बखड़ी में व्हैतौ तो म्हैं इण सूं सीयाळै तपत बरसावतौ अर ऊन्हाळै ठारी। पछै नीं तौ पंखा चाहीजता अर नीं हीटर। नीं गरीब-गुरबा ठारी में धग-धग धूजता अर नीं बळती लूवां दाझता। अनाप खरच-खाता रै खांम लाग जाती। बोलौ, लागती के नीं?”

बंगाली महिला रै होठां खांम नीं लागी तौ वा निसंक बोली, “जगत-काका, अबै फोरी-पतळौ भार संभाळयां धाकौ नीं धकै। इंदिरा गांधी री ठौड़ देस रै प्रधानमंत्री री लगांम झेल्यां पार पड़ै तौ पड़ै।”

वा तौ वळै अपळ-गपळ बोल काढ़ती पण जगत-काका रै रूं-रूं धूजणी वड़गी। तरर करती रौ मूंडौ थाप खायग्यौ। होठां आंगळी देय गुणगुणावतां कैयौ, “खबरदार, सपनै अैड़ी बात नीं सोचणी। हवा रै कांन व्है। जे भवांनी रै कांनां भणक पड़गी तौ इण डिप्टी डाइरेक्टरी रा जांदा पड़ जावैला।”

अणछक कांईं छूमंतर व्हियौ। जगत-काका री ठौड़ जाजम माथै मुरळीधर नै अेक ऊंदरौ फदाफद नाचतौ निगै आयौ। दीठ री तासीर तौ नीं बदळगी। आंख्यां टमकार वळै इदक सावचेती सूं जोयौ-ऊंदरा री ठौड़ जगत-काका पाळगोटी सूदा जाजम माथै बिराज्या हा। परसेवा में रगाबग व्हियोड़ा। मगणी टाट अर आंमण-दूमण उणियारौ। जांणै किणी रै अदीठ हाथां गळै टूंपौ लाग्यौ व्है। तौ बरसां... बरसां लग सासती सेवियोड़ी बांण यूं सोरै-सास कद छूटै। संग्याविहूण जगत-काका रै कंठां नीठ अटकता-अटकता अै बोल बारै नीसर्‌या, “प्रधानमंत्री री गादी तौ छाजै जिणनै छाजै। पण जे म्हैं टाटा-बिड़ला, नीं-नीं मांणकसा, नीं नीं रास्ट्रपति व्हैतौ...।”

पण अबकी उण धूजता सुर रौ वैड़ौ गाढ़ कठै हौ? नीं जगत-काका नै उण सूं जोह बंध्यौ अर नीं ओळूं-दोळूं बैठी अपछरावां बिलमीजी। जगत-काका आंख्यां फाड़-फाड़ घणा खपिया पण वांनै चिळका रै चकरिया आगै मोटा मिनखां री मोवनी छिब अटोपण रै भरम रौ खलिंदौ व्हियां वै साव इज ढोळै बैठग्या। निपट अपळंग अर अभ्यागत।

बंगाली महिला आंमनौ दरसावती बोली, “नीं नीं जगत-काका, अबै तौ प्रधांनमंत्री री गादी संभाळ्यां ईं देस री नाव कांठै लागै तौ लागै। आपरै हीणी ताक्यां आखौ देस रुळ जावैला।”

प्रधांनमंत्री रै नांव री अैड़ी धबक बैठी के आपरै होठां हथाळी देवण टाळ जगत-काका आफळ्या तौ घणा ई, पण अेक फूटौ आखर बारै हवा में नीं उछळ्यौ। जांणै बोलणौ बीसरग्या व्है।

तिण ऊपरां मत-बायरौ मुरळीधर वळै बळती में पूळौ रिगसायौ। जगत-काका रै जाप वाळौ पांनौ फाड़फूड़ वांरै माथै वगावतौ बोल्यौ, “लाई पुटियौ काकौ।”

(पुटिया रै भरम अधर आभौ उणरै परताप अजै तांईं ऊंचौ टिक्योड़ौ। अणगिण प्रांणियां रै बचाव खातर पुटियौ आपरा पंजा सदावंत आभै री सोच ऊंचा राखै।)

आखै झूलरै झणझणाती पड़ गूंज सुणीजी-पुटियौ काकौ। अर उण पड़ गूंज बिचाळै सगळी महिलावां आंख्यां फाड़-फाड़ घणी तपास करी, पण जगत-काका रै आसण वांनै फगत फूट्योड़ौ ढब्बू निजर आयौ। सळां भर्‌योड़ौ। लिपळौ-लिपळौ। साव छिन्योक। पग रै अंगूठा सूं ईं छोटौ।

स्रोत
  • पोथी : साखीणी कथावां ,
  • सिरजक : विजयदांन देथा ,
  • संपादक : मालचन्द तिवाड़ी, भरत ओळा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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