“बाबू, आं हाथां नै कुण चिगळ्यां जावै है..! पैल्यां सूं काम जादा करां, फेर भी पैल्यां जित्ती चीजां कठै मिलै। पैल्यां सूं घटिया मिलै वै ओर। चोखी चीजां नै राम जाणै कुण खातो जा रैयो है। कांईं हुयग्यो इण टेम रै।”

ब्यासजी परमा री बात-वात सुण’र उणरै मूंडै कानी देखै लाग्या। बां नै अचूमो हुयो कै जिणनै लोग-बाग गैलो कैवै, वो आज कांईं बात कैयग्यो।

उण रै चैरै सूं निजर परी कर’र सोचता थका बैए बोल्या, ‘महंगवाड़ो है नी परमा, बस ही खातो जाय रैयो है आदम्यां रो काळजो अर कर्‌योड़ो काम।”

बातां करतां थकां दिन आथणै लाग्यो। सिरेस माथै बोलता चिड़ी कागला नै देख’र परमो बोल्यो, “बाबू सिंझ्या पड़गी। आज तो बातां में बेरो ही कोनी पड़्यो।” कैवतो थको वो उठ’र चाल पड़्यो। सीकर आळी सड़क माथै वो लंगड़ातो चाल्यो जावै हो। आगै भंगिया रो बास हो, वो उठीनै ही मुड़ग्यो।

परमो पांच जमात ताईं पढ्योड़ो हो। पण जद वो थोड़ो संभळवा लाग्यो तो अेक पर अेक मुसीबतां आय’र बीं नै पाछो नीचै नाख दियो। बिचारो इण दुख में आपरो आपो ही भूलग्यो।

अबै तो उणनै आपरै नांव सूं ही चिढ हुयगी ही। बास रा छोरा जद बीं नै परमानन्द कैवता तो बो बां रै लारै भाजतो, कदे-कदे तो भाठां री भी मार देंवतो। लोग-बाग बीं नै गैलो समझ्या करता।

धोळी-काळी दाढी। पिचक्योड़ा गाल। फाट्योड़ी गंजी जिण रै सत्तर बेज। अैड़ी ही फाट्योड़ी पुराणी टेम री पैन्ट, जिणरै गोडा नीसर्‌योड़ा, दोनूं कूल्हां पर दो कारी। सिर पर चिड़्यां रै आळां ज्यूं उळझ्योड़ा बाळ, अळसायोड़ा होठ। अेक पग मांय खोड़। हो परमानंद।

जात सूं बो भंगी हो पण बो कदे भी मैलो उठावण रो काम नीं कर्‌यो। बीं री लुगाई तो कद री ही गुजरगी ही। बा मरती टेम अेक छोरी छोडगी ही, जिकी रा लारली साल बीं रो भाई फेरा कर दीन्या हा।

जद सूं परमै रो चित्त खराब हुयो, उणरो भाई मिरच्यो ही घर संभांळतो। छोरी नै पाळणै-पोसणै सूं लेय’र ब्याव तांईं रो खरचो बो ही कर्‌यो। आही नीं, भाई री रोटी-पाणी री चिन्ता-फिकर भी उणनै ही रैवती।

परमो आखै दिन गांव में रमतो। भूख लागती तो घरां आय’र रोटी खाय लेवतो अर पाछो बारै चल्यो जांवतो। चाय-पाणी रै पीसा खातर बो कदे भी आपरै भाई नै नीं सतावतो। जे कोई सोच परमा नै हो तो वो फगत चाय-पाणी रो हीज हो।

अमल-पाणी रै पीसां खातर वो लकड़ी फाड़्या करतो। बा भी पैंतीस पीसा सूं जादा री नीं। पच्चीस पीसा री चाय अर दस पीसा री बीड़ी बी नै चावै ही। ही परमा रो खरचो। अब जद महंगवाड़ो हुयग्यो हो तो बो कीं जादा काम करतो। पण पचास पीसा सूं जादा कोनी करतो। जिकी चाय पैल्यां पच्चीस पीसा में मिल जांवती, उण रा अबै पैंतीस पीसा लाग्या। दस बीड़्यां रा दस री जगां पन्दरा पीसा लागै लाग्या। परमा नै बड़ो अखरतो। ब्यासजी कैया करता कै पैल्यां बो बडो सोकीन हो। मुन्सपालटी में नौकरी करतो, चोखा गाभा पैरतो अर साफ-सुथरो रैया करतो। उण बखत बी नै देख’र कोई नीं कैय सकतो कै भंगियां रै है। पण आज..।

व्यासजी कनै परमा री सदां सूं ही ऊठ-बैठ ही।

हळवा-हळवा पग मेलती सांझ चालती आवै ही। परमो ब्यासजी कनै बैठ्यो बातां करै हो।

“..बाबू पैल्यां पैतीस पीसा कमावतो तो चाय भी चोखी मिलती अर बीड़्यां में भी जरदो ठीक आवतो, पण आज पचास पीसा में भी वै भी वै चीज कोनी मिलै। सांस लेय’र वो बोल्यो, “मिलै कठैऊं, वै चीजां अब रैयी ही कोनी। वै आदमी ही कोनी रैया। थोड़ी ठैर’र वो ओजूं बोल पड़यो, “मेरै समझ में कोनी बैठै कै पन्दरा पीसा जितरो बधीक काम किणरै वास्तै करणो पड़ै।” वो ओजू ठैरग्यो अर फेरूं बोल्यो, “गिनजी महाराज कैवै कै चाय मैंगी हुयगी, लकड़्यां रा दाम पैल्यां सूं जादा लागै, चीणी रा दाम चढग्या। दूध में पाणी आवै लाग्यो..अै बधीक पीसा अर बढिया चीज कठै छूमंतर हुवै, की ठा’ नी लागै।” चिलम रा गुल झाड़ता ब्यासजी बोल्या, “तूं ठीक कैवै परमा, सारी चीजां नै महंगवाड़ो खातो जा रैयो है। गायां रो गुंवार महंगो हुयग्यो, गिनजी महाराज रो खरचो बधग्यो..” “मनै तो बाबू, सारो दोस सिरकार रो लागै। बात भी है।”

“पण परमा, मोटा आदम्यां रो ओजरको कियां भरैलो।”

“लोग कैवै हा नी कै बहुमत रो राज है। आपणै देस में तो गरीब जादा अर पीसा’ळा कम है, बाबू।” “ओ भरम है, परमा..! अठै तो थोड़ै मत आळा रो राज है। बहुमत रो तो फगत नांव है। गरीबां कानी कुण देखै रै परमा! अै राज-काज करणिया कांईं गरीब है..? फेर अै गरीब वास्तै क्यूं सोचै..? बहुमत रो राज गरीबां नै गरीब बणावणै वास्तै बैठ्यो है, परमा..! ऊंचा तो पीसा’ळा ही उठैला। गरीब तो गरीबी रै नीचै दबतो जावै है अर दबतो ही जावैलो रै।”

“जद इसी बात है तो सारै गरीबां नै अेक हुय जाणो चाहीजै, बाबू।”

“कांईं अेक हू जावै परमा..! टाबरी पाळणै में ही टेम को मिलै। रोट्यां रो सोच ही सिर सूं नीं उतरै।”

“जद ही पोल ल्हाद मेली है बाबू..! पण बतावो कै गरीब नै कद न्याय मिलैलो।”

“परमा, बुराई कदे भी घणा दिन नी चाली है। कदे बुराई रो भांडो फूटैलो। कदे मानखो चेतैलो रै परमा।”

परमो कीं बोलतो, इतरै में मंगतू खटीक आयग्यो। परमै कानी देख’र बो बोल्यो “थोड़ी लकड़ी फाड़ दे रे परमा..! तेरली काकी लकड़्या बिना खोटा भुगतै है।”

“आज नीं काका।”

“क्यूं रै परमा..?”

“आज री ध्याड़ती पकगी काका, काल फाड़ देवूंला।”

“भूल मतना जाजे।” इतरी कैय’र वो पाछो मुड़ग्यो।

परमो बोल्यो, “बाबू, आज तो भोत मोड़ो हुयग्यो।” उत्ती कैय’र वो उठग्यो।

ब्यासजी चिलम रा धुवां उगळै हा।

परमो गिनजी महाराज रो पूगतो गिरायर हो। मेह आंधी अूक जावै पण परमो नीं अूकतो। गिनजी कनै उण री उधार भी चालती।

लारलै सात-आठ दिनां सूं परमा नै कोई काम नी मिल्यो। बडो उदास रैवै लागो बो। चाय री टेम हुयगी ही। ब्यास जी रै कनै सूं अूभो हुय’र वो चाल पड़्यो।

गिनजी महाराज री दुकान माथै वो मूंडो लटकायां आय’र अूभो हुयग्यो। गिनजी महाराज परमै नै दूर सूं ही देख लियो हो। कनै आय’र खड़्यो हुंवता ही बै कैयो, “कांईं देखै है परमा, जा तेरो कोप उठाल्या।”

चाय पीय’र वो पाछो कनै आयो तो गिनजी महाराज बंडळ में सूं दस बीड़ी काढ’र बोल्या, “लै।”

परमो धोबो मांड लियो।

बीड़ी लेय’र वो लंगड़ातो चाल पड़यो।

गिनजी रा इंया करतां-करतां कोई पांच रुपिया चढग्या। पण वै कदे भी नीं कैयो कै परमा पीसा दे रे। परमो कदे खुद ही कैय देवतो आपरै पीसा रो जुगाड़ बेगो ही करूंला, महाराज। तो गिनजी उणनै कैय देंवता तेरा पीसा कठै जाय है, परमा। छोटो सो पडूतर गिनजी उण नै देंवता।

दोपारी री टेम ही। परमो डाकखानै आळी गळी सूं नीसर’र सीकर आळी सड़क माथै आयग्यो हो। सड़क रो डामर तप’र पिघळनै सूं जुत्यां रै चिपै हो। असवाड़ै-पसवाड़ै ताती धूळ सूं झळ उठै ही। सामै तमतमाट करतो तावड़ो इंया लागै हो जाणै कोई बासते बरस रैयी हुवै। परमो आगै चाल्यो जावै हो। जद बो कानजी सेठ आळी हेली कनीकर जावण लाग्यो तो पोळी में बैठ्यो सेठ उणनै हेलो दियो “लकड़ी फाड़ै है के।”

हेलो सुण’र बो पूठो मुड़’र देख्यो तो सामैं खाट माथै बैठ्यो सेठ निजर्‌यां पड़्यो’ अर उणरो गळो सूखग्यो। बो उणरै कानी देखै हो, जियां भूखो बळद धणी कानी देखतो हुवै। चाणचुकै उणरै कीं बात ध्यान में आई, तो बो चिमकतो सो बोल्यो,

“फाड़ देस्यूं।”

सुणता पाण सेठ उठ’र खड़्यो हुयग्यो। बारलै वाड़ै पड़्योड़ी लक्ड़्यां कानी हाथ कर परो बो बोल्यो, “अै है..! देख ले।”

भींत कनै दो बडी-बडी पेडी पड़ी ही। बीनै बै इंया लागी जाणै दो आदम्यां नै हाथ-पग काट-काट इण दोपारी में सड़क रै छेड़ै गेर दीन्या हुवै। कनै पड़्या डाळा बी नै कटेड़ा हाथ-पग सा लाग्या। बो देख’र बोल्यो, “काल फाड़ देस्यूं।”

“आज ही फड़वाणी है।”

“तो अेक फाड़ द्‌यूं..?”

“फड़वाणी तो सारी है।”

“बाकी काल फड़वा लीज्यो।”

“आज फाड़नी है तो बात कर नहीं गैलो पड़्यो।”

परमा रा नीं जाणै क्यूं पग ठौड़ ही रुपग्या। बो बोल्यो, “अच्छ्यो तो खुवाड़ ले आवूं।”

“खुवाड़ तो पड़ी है, बता कांईं लेसी..?”

“दे दीज्यो हिसाब देख’र।”

“तूं ही बता दे..! हिन्दू कहतो सरमावै, लड़तो कोनी सरमावै, सो पैल्यां ही खोल’र कह दे।”

“बीस रुपिया लेस्यूं।”

“राम..! राम..! बीस रुपिया..! च्यार रुपिया रो काम कोनी।”

“तो सेठ दस रुपिया देस्यूं फड़वादे।”

“मनै तो फड़वाणी है। बोल फाड़ै तो रुपिया पांच देस्यूं।”

“इंया मत करो सेठां। भोत मैनत है। थोड़ो छाती पर हाथ मेलो।”

“तो पावली और लेलीजे।”

“थोड़ो मन में विचार करो।”

“साढे पांच रुपिया दे देस्यूं।”

परमा रै अेकर तो जची कै पाछो मुड़ जावूं पण जाणै क्यूं बीनै बीं रा पग साथ नीं देय रैया हा। ठोड़ खड़्यो ही बो बोल्यो, “अच्छ्या ठंड हुयां फाड़ देवूंला।” सेठ अच्छया रो नांव सुण’र हंसतो थको बोल्यो, “आगै ही साढै पांच रुपिया बोहळा दे दीन्या। अबै ही फाड़-फूड़’र नक्की कर।”

“अरै पीथा..! पीथा ! मांय सूं खुवाड़ लेय’र आजे।”

परमो बीच में बोल पड़्यो, “सेठां इंया क्यूं तावळ करो हो। मैं अबार ही रोटी खायावूं हूं, पाछो आय’र फाड़ देवूंला।”

“रोटी अठै ही खाले, परमा, कांईं फरक पड़ै है..! तेरो ही घर है।” कनै खूवाड़ लियां खड़्यै पीथा नै सेठ कैयो, “जा, मांय सूं साग अर रोटी ल्यादे।”

परमो बैठ्यो रोटी खावै हो। ज्यूं ही पीथो डाळा लेय’र कनीकर नीसर्यो कै गासियो बीं रै कठां में अटकग्यो। उणनै हिचकी आवै लागी। सेठ हिचकी लेवतै नै देख’र बोल्यो, “ओ पीथा। पाणी प्या। देख बिच्यारै रै रोटी अटकगी।”

पाणी पीय’र परमो खड़्यो हुयग्यो।

मंझ दोपारी अर क्रीसी री लकड़ी। ठै-ठै री आवाज सूं धरती धूजण लागगी, पण सेठ रो काळजो कोनी हाल्यो। उण रै मूंडै सूं भी कोनी नीसरी कै परमा थोड़ो साह्‌रो लै-लै रे।

उणरै माथै सूं कळ-कळ पसीनो बैवै हो।

होठां पर फेफड़ी आयगी ही बीं रै। पण वो लकड़्यां सूं बांथेड़ा करतो ही जा रैयो हो अर सेठ दो-च्यार डाळां रो नांव लेय’र चेजो चिणावतो जा रैयो हो।

मुन्सपाल्टी सूं आंवता ब्यासजी की निजर जद पसीनै सूं हळा-बोळ अर टूटतै परमै माथै पड़ी तो बै बोल्या, “क्यूं आज मरणै री जचा मेली है के..? थोड़ी टेम टाळ’र तो बिलगतो..?” खुवाड़ रो सायरो लेय’र परमो खड़्यो हुयग्यो पण उणरै मूंडै सूं जबान नी उपड़ी।

परमै री हालत देख’र ब्यासजी सेठ पर जाड़ पीस’र बोल्या, “ईं दोपारी में बिचारै गरीब री जान लेता तनै सरम कोनी आवै..?”

“हैं हैं महाराज, मैं कांईं करूं। इणनै पीसा चाये हा।” ओठा परमै कानी देख’र बै बोल्या, “चाल घरां। मर ज्यासी ईं दोपारी री लाय में। थोड़ी टेम देख’र काम कर्‌या कर।”

परमो खुवाड़ छोड’र चालण लाग्यो तो सेठ बोल्या “कोडी नीं मिलैली परमा। लकड़ी फाड़’र जावैलो जद ही पीसा देवूंला।”

“सिंझ्या फाड़ देसी।” ब्यासजी बोल्या।

“ईं नै फोड़ा पड़सी, मैं कोई दूजै सूं फड़वा लेवूंला।”

परमै रा पग ठौड़ ही रुपग्या। बींरै मूंडै सूं नीसर्यो “बाबू, मैं फाड़’र आवूं हूं। थे चालो।”

“फाड़नी ही पड़सी परमा। कांईं जोर करैलो। इण जिंयालका दुस्ट लोग ही आदम्यां रा हाथ चिगळ्या जावै है।” सुण’र बो पाछो काम में लागग्यो। चिलचिलातै तावड़ै में परमो झाग गेरतो जूझै हो। गिरमी रै मार्यै बीं री आंख्यां मीचीजै लागी पण बो आंधो हुय’र बिलग मेल्यो हो।

ब्यासजी कोई घरां ही पूग्या हुवैला कै परमो तावड़ै मे तिंवाळो खाय’र तड़फतै बळद री दाईं पड़ग्यो। सेठ री निजर पड़ी तो बो कूक्यो, “अरै पीथा भाज।”

पीथो आयग्यो। जद बीं री निजर मूंडै में झाग आयोड़ै परमै पर पड़ी तो बो बीं कानी भाज्यो अर उठाय’र पोळी में ले आयो। बो बोल्यो, “बेहोस हुयग्यो, सेठजी।”

“ठीक-ठीक, तूं परै रैय। भींटसी।”

“पीथो सेठ रै मूंडै कानी देख’र बैदजी रै घरां कानी लपक्यो। थोड़ी ताळ पछै तो बो बैदजी रै लारै-लारै आवै हो।”

बैदजी परमा नै देख’र बोल्या, “डरणै री बात कोनी। तावड़ै में थक’र पड़ग्यो।” पेई सूं सीसी काढता परा बैदजी फेरुं बोल्या, “सेठजी थांनै भी तो बिचारै पर तरस खावणी चाहीजै ही। तावड़ै में नीं बिलगाणो चाहिजै हो। गिरमी री टेम है, ध्यान राखणो चाये। कदे कोई रै कीं हुयग्यो तो गळै में आज्यावैली।”

दवाई देय’र बैदजी जावण लाग्या तो सेठ गोज्यां में सूं पांच रो कड़पदार नोट काढ’र बोल्यो, “ल्यो बैदजी।”

“रहबादे सेठ, बिचारो गरीब आदमी है।”

“थानै तो मैं दे रैयो हूं।”

“बो तो ठीक है पण।”

“गरीब है तो कोई बात नीं, अै तो ल्यो।”

बैदजी रै गयां पछै परमै नै होस आयो अर बो आंख खोली। उणनै देख’र पीथै रो चैरो चमकै लाग्यो। अबै बीं रै ज्यान में ज्यान आई ही। परमो बैठ्यो हुयग्यो। सेठ बीं रै हाथ में पचास पीसा मेल परो बोल्या, “घरां जा अर आराम कर।”

“पांच रुपिया।”

“बैदजी लेयग्यो।”

“बैदजी लेयग्यो। क्यूं..?”

“अबार मर जांवतो जणा कुण मेरो बाप उठावतो।”

“तो बात है, सेठ।”

“हां।”

“तो ल्यो। अठन्नी सेठ कानी कर’र बो कैयो थानै बैदजी नै बुलाणै में कस्ट हुयो होसी बीं री मजूरी।”

परमो अठन्नी खाट पर मेल दीनी अर उठग्यो।

सेठ उठाय’र आपरै गोजियै में घाल लीनी। पीथो सेठ रै मूंडै कानी देखै हो।

स्रोत
  • पोथी : आज री राजस्थानी कहाणियां ,
  • सिरजक : बी. एल. माली ‘अशान्त’ ,
  • संपादक : रावत सारस्वत, प्रेमजी ‘प्रेम’ ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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