उडीकतां-उडीकतां जणा वो आखतौ होयग्यौ अर रोवणियां रयौ तौ वींनैं गाडी रै चीलां सीध दूर अेक तारौ-सो टिमटिमांवतौ दीस्यौ। उणनैं देख’र वीं रै कीं ध्यावस तौ बंध्यौ, पण साथै काळजै रै सरोधै अेक धुकधुकी-सी ऊपड़ी अर वो उडीक रै धोरां सांधै अमूजती झोळ सूं निसर’र दोगाचिंती री टेकड़ी ऊपर जाय ऊभौ होयौ।

भादरा रै ठेसण ‘गंगानगर अेक्सप्रेस’ घड़ी देख’र डौढ घंटै लेट पूगी ही। सरकारी कागजां में थमण रौ टैम पांच मिंट हौ पण आज वींनैं ईं बात रौ पितारौ नीं आयौ।

तीर री दांई आवतौ इंजण री हैडलाइट रौ च्यानणौ वीं अेकर ओजूं जोयौ। बेखळखातौ-सो होय’र आपरै डावै हाथ नैं घुमा’र मूंढै आगै ल्यायौ अर घड़ी ऊपर निजर नांखी- धत्... वीं रै मन में अचांणचूक अेक खीझ ऊपड़ी—साळी, जणां देखो जिग्यांसर नीं लाधै—अर सागै मन में कर्‌यौ गंगानगर पूगतौ वो चैन री तीन-च्यार कड़्यां कढा’र काठी करवा लेसी। नैड़ै आवती गाडी री धड़धड़ अबै वींनैं साफ सुणीजै ही। तावळां में दुबारा घड़ी देखण री बैजत वीं मोल नीं लीवी। इत्तौ कर्‌यौ—आपरी सावचेती सूं अेक मोटी जांणकारी झाली कै गाडी लेट आयी है तौ तावळी चालैली अर गाडी रै प्लेटफारम ऊपर पूगतां मुंह रै सीध में भाग छूट्यौ। घणी देर सूं वीं रौ मूंढौ गाडी रै लारलै कांनी हौ। सो, वो भाज’र गाडी रै छेकड़ पूगग्यौ अर गार्ड सूं जांणकारी ले’र कै “यह डिब्बा नहीं है भई!” गड़गड़ी कर’र पाछौ भाज्यौ अर अेक सांस इंजण सूं जा टक्कर लींधी। यूं गाडी रौ डौढ चक्कर पूरौ कर’र वी फेर जोयौ। प्लेटफारम कोई उजड़्योड़ै गांव दांई पड़्यौ हौ— सुनसान अर आखी गाडी री खिड़क्यां बंद होयगी ही। देख’र वीं रै मन में अेक धक्कीड़-सो ऊपड़्यौ कै रैयग्या, पण वीं हिम्मत करी अर डूबतौ सिंवाळां नैं हाथ घातै जैड़ी मनगत सूं अेकर ओरूं पाछौ भाज्यौ अर ज्यूं-त्यूं डिब्बां आगै पूग’र दरवाजा खोलण तांईं तांण मारण लाग्यौ, जिकां आगै वीं आपरी भाजा-नासी रै बगत भीड़ जुप्योड़ी देखी ही। दो-च्यार डिब्बा आगै भाज-भाज’र उण हेला पाड़्या, “कासी...! कासी...!!” अर साथै पिसतावौ करण ढूक्यौ कै कासी रै साथै रैंवतौ तौ...?”

रात रा साढै तीन बज्या हा। लांबै-चौड़े प्लेटफारम ऊपर अबार-अबार वापर्‌योड़ौ ताजादम सुन्नाड़ भभका मारै हौ। अेक डर बरपांवती सैंठी सूंऽऽ सूंऽऽ...वीं रै डावै पसवाड़ै लगोतार चाल रैयी हौ। वींनैं यूं लाग्यौ जांणै गाडी, गाडी नीं होय’र कोई काळै मूंढै रौ इजगर होवै, भोत बडौ इजगर। अर साथै यूं जियां वो कोई समुंदर रै बिचाळै निसरी बिटक माथै ऊभौ होवै अर च्यारूंमेर जळजळौकार होवै।

“भाई लाल लऽ ऽ!” वीं रै तीन-च्यार डिब्बां आगै खिड़की सूं निसर्‌योड़ै अेक सिर वींनैं हेलौ पाड़्यौ। वींनैं अेकाचूक यूं लाग्यौ ज्यूं प्रभु री किरपा होयगी होवै अर वो आणंद सूं भरग्यौ होवै। धाड़पाड़ वो हेलै री सीध भाज छूट्यौ।

“कांई यार...? कोई डिब्बौ को खोलै नीं!” उण आपरै दोस्त नैं जांणकारी दीनी।

“उन्नै आ, हाथ पकड़ा थारौ।” वीं रै दोस्त वीं री बात रै उथळै री जिग्यां हाथ लफायौ अर वींनैं मोरी मांय सूं खींच’र डिब्बै मांय नांख लियौ।

पहलां वींनैं अेक पग धरण तांई जिग्यां मिली, फेर दूजै तांई अर वो अेक सूतोड़ै मिनख ऊपर टांगड़ा चौड़ा कर’र खड़्यौ होयग्यौ। थोड़ी ताळा पहलां लोगां ऊपर वापर्‌योड़ी अेक खारी खीझ होळै-होळै वीं रै मन सूं उतरणी सरू हुई। वो पून में बड़बड़ायौ— लोग बापड़ा खोलै किंयां? खुल्लण नै जिग्यां कोनी। कनैं ऊभै दोस्त रै कांन सरोधै वीं रौ मूंढौ हो, उण हुंकारौ दियौ, “हां, भोत भीड़ है।”

“अबै भाई सा’ब, थै आगीनै चालौ।” पाखानै अर खिड़की री खूंट में भींचीजतै अेक जोधपुरी साफै सूं बोल्याळ नीसर्‌यौ।

“हां भई...।” कनैं ऊभै वीं रै दोस्त पगां हेठै पड़्या लोगां नैं जोवतां थकां वीं री बात री हांमळ भरी अर वीं रौ बूकियौ झाल’र आगीनै धोकण री सैन करी।

अेक... दो... तीन... च्यार अर फेर पांच, छः, गिणती री ऊपर तळै री सीटां रा वींनैं सिरफ खूंणां दीस्या। देख’र तौ वींरा भोगना किस्त खायग्या। आखै डिब्बै में लोग सूता खरड़ाटा लेवै हा। नीचै री सीटां ऊपर लोग दोय रै हिसाब सूं हा। अेक बिछावणां बिछायां सूतौ हौ। दूजौ वीं रै पगांयतां जिंयां-किंयां टिकर्‌यौ हौ अर छाती में गोडा दियां गैळीजै हौ, ज्यूं कोई मर्‌योड़ै नैं सेवंतौ होवै। ऊपर री सीटां ऊपर लोग अेक रै हिसाब सूं हा। दूजै रै नांव ऊपर का तौ वांरा अटैचीकेस हा का थोड़ौ मोटौ अैड़ौ बीजौ सामांन।

“भीड़ कठै है? भीड़ तौ कर राखी है सूवण वाळां! अेक-अेक सीट नैं अेक-अेक मिनख मल्ल’र बैठग्यौ तौ भीड़ तौ होवै ई, सै उठ उठ’र बैठ जावै तौ सीटां मोकळी है।” वीं अेक-अेक सबद ऊपर जोर देय’र आपरै लारै ऊभै दोस्त सूं कैयौ अर सोचण ढूक्यौ, जांणै बीं रौ यूं बिलांत-बिलांत ऊंचौ बोलणौ सूता मिनखां रै कांनां पड़ण तांई मोकळौ होवैलौ अर वांनैं यूं लागैलौ कै कोई वांनैं उठावण वाळौ आय पूग्यौ है।

वीं रै दोस्त उणरी बात रौ उथळौ नीं दियौ। फकत अैड़ी निजरां सूं वीं कांनी जोयौ, जांणै हांमळ भरतौ होवै।

इतरौ कर’र वीं थोड़ी ईं बात री उडीक करी कै कोई तळमळावै अर उठ’र कैवै, “ल्यौ भाई सा’ब, बैठौ।” पण डिब्बै में किणी रै कांन ऊपर खाज को होई नीं। लोग ज्यूं सूता हा त्यूं रा त्यूं सूता रैया। वीं रै ईं जतन री निरफळता रौ लखांण स्यात वीं रै दोस्त नैं हुयौ। वो निसासु-सो बोल्यौ, “तूं तो बैठज्या, जिग्यां पड़ी है नीं।” वो जिकी सीट रै नेड़ै ऊभौ हौ वीं रौ थोड़ौ-सो’क खूंणौ दीसै हौ, अर वीं रै दोस्त जे वींनैं जिग्यां मांन लियौ होवै तौ वीं रै मनग्यांन वीं री गळती ही। वीं आपरै दोस्त री बात रौ उथळौ यूं दियौ ज्यूं लड़तौ होवै, “बैठ कठै जावै, सिर में? जिग्यां होवै जणां’क? अबकै वीं रौ बोल्याळ पेहलड़ै सूं खासा ऊंचौ हौ।

“आ पड़ी है नीं जिग्यां।” वीं रै दोस्त वींनैं सीट रौ खूंणौ दरसांवतै झिड़क्यौ अर अैड़ी निजरां सूं जोवण ढूक्यौ ज्यूं कैवतौ होवै— क्यूं नखरा करै है यार?

मन मार’र उण अेकर तौ आगी-लारै जोयौ, पण फेर निजोरीकार देख’र वीं आंगळ च्यारे’क जिग्यां ऊपर किंयां कणियां अर अकूंणियां रै तांण खुसी होग्यौ। वो लोगां नैं यूं जोवण ढूक्यौ ज्यूं खाय ज्यावैलौ। लोग पण सूता हा अर सूता लोगां ऊपर वीं रै करड़ै लखांण रौ फरक पड़ण रौ सुवाल कांई हौ। हां, जिका ऊभा हा, बांरा मुंहादरा थोड़ा बदळ्या। वींरी देखादेखी वै अेक-दूजै कांनी करड़ा जोवण ढूक्या। ज्यूं सीटां ऊपर सूता मिनख वांरा दुस्मण होवै, या कोई मुरदा-ल्हासां, जिणां सूं बास आवती होवै।

डिब्बै में सागीड़ौ क्रान्ति रौ माहौल बणग्यौ। वीं रै आवण सूं होयौ है-वीं सोच्यौ बस, अबै कोई बोलणवाळौ है। अेक बोलसी तौ सगळा वीं रै सुर में सुर मिला’र बोलसी! सोच’र वो राजी होयौ। वीं मन मन ईं आवण वाळी क्रान्ति रै प्रतिफळ री कूंत करी अर किणी रै बोलण री उडीक करण ढूकौ।

गाडी नैं ऊभी होयां पच्चीस मिनट होयग्या हा अर पंदरा मिनट वीं रै डिब्बै में आयां पण चूसै रौ चौथौ पग, कीं री हिम्मत नीं होयी कै सीट ऊपर सूतै कोई मिनख नैं बतळाय लेवै। ईं देस में इज तौ बीमारी है! लोगां री हक री बात कैवण री हिम्मत नीं पड़ै। उण मन मन दुसरायौ अर लोगां कांनी सूं निसासु होय’र बैठग्यौ। डिब्बै में सीटां नीं मिलण रै दुख रा मार्‌योड़ा मिनखां नैं अबकै उण ऊंडा जोया। मोटै गाभां रा हा सगळा। गांवड़िया-सा। वो मन मन मुळक्यौ, ज्यूं वांरी बौद्धिक गरीबी री खिल्ली उडावतौ होवै—पहल करण तांई आं कनैं कांई पड़्यौ है? अै तौ अगलै सूं पूरसल बात को कर सकै नीं? कांम तौ थांनैं करणौ पड़सी—उण मन मन नैचौ कर्‌यौ— हां, इत्तौ होय सकै है कै अै लोग गेल हुंकारौ लगाय देवै। अर जे नईं बी लगावै तौ कांई है? कासी तौ साथै है। कोई घणी करसी तौ साळै नैं झाल लेस्यां...। उण मांय मांय हिम्मत रोपी अर उचक’र साम्हीं जोयौ।

साम्है खिड़की ही। जिकी ऊपर सीसौ पड़्यौ हौ। रात रौ पांणी लाग’र वीं में वींनैं आपरौ मूंढौ दीस्यौ—गहरौ-गहरौ सो’क, ज्यूं बिनां पांणी रै काच में दिस्या करै है या थम्योड़ै पांणी में। वींनैं आपरौ यूं धुंधळौ होवणौ दाय नीं पड़्यौ तौ सीसै सूं निजर टहला’र वो डिब्बै री छात कांनी जोवण ढूकगौ। वीं री निजर बत्ती माथै टिकी। वीं देख्यौ, अेक भुणकलौ बत्ती रै सीसै माथै सिर मार-मार’र च्यानणै तांई पूगण री कोसिस करै हौ अर वीं रै आरबार घिरोळा खावै हौ।

डिब्बै रै दूजै कम्पार्टमेंट में किणी रै जोर-जोर सूं बोलण रा हाका सुण’र वीं रौ ध्यांन टूट्यौ। वीं मन मन थाग पाड़ी, कोई लड़पड़्यौ दीसै है। अर माथै में त्योरां घात’र आंवतै बोल्याळ कांनी नाड़ मोड़ी। बोल्याळ मां री... भैण री... ट्रंकल्यां पूग’र जद भासा कांनी सूं निजोर पड़ण ढूक्यौ तौ लड़णियां दूजी सोध करी— फड़ाफड़... अर फेर दोन्यूं स्यात परम ग्यांन नै पूगग्या हा। सांति होयगी। बुद्धिजीवी रै पगां कनैं बैठ्यौ बूढौ चौधरी अर वो अेकै साथै अेक कांनी जोवण रा सागड़दी हा। चौधरी नितार दियौ, “दो घड़ी खातर क्यूं किणी सूं बैर-विरोध? कोई इण ठेसण उतर जासी तौ कोई आगलै ठेसण... गाडी तौ इंयां चालती रैसी... सिर फोड़ाण नै भलां अबार फुड़ाल्यौ।” कैय’र चौधरी यूं सांत बैठग्यौ ज्यूं आध्यात्मिक होयग्यौ होवै।

बुद्धिजीवी मन मन हुंकारौ भर्‌यौ अर ‘ठीक बात है’, वाळै अंदाज में धूण घात लीधी।

लारली सीट ऊपर सूतै मिनख पग पसार्‌या तौ वीं रै पगांणै बैठ्यौ ऊंघतौ मिनख उलळ्यौ अर बुद्धिजीवी रै मगरां माथै लदीजग्यौ, “भाई सा’ब जरा...”, बुद्धिजीवी खूंणी रौ सा’रौ दियौ अर पाछौ नब्बै डिगरी रौ कोण होग्यौ। आपरी आंगळ च्यारे’क जिग्यां नैं बचावण सारू संघर्स करण ढूकगौ। सीटां ऊपर सूता मिनख फेरूं वीं रै काळजै में कांटै दांई गडणां सरू होया। वीं रै मन में उठा-पटकी फेरूं होई। अचांणचक वीं रै कीं च्यानणो-सो होयौ जिकै नैं धार’र वो न्याल होयग्यौ। वीं सोच्यौ—साळी...इत्ती ताळ बात ध्यांन नीं आई... कीं सूं लड़णौ नीं झगड़णौ... अबै जाय’र गार्ड सूं आं लोगां री सिकायत करणी चाइजै। ल्यार दिखावणौ चाइजै कै देखौ... लोग किंयां सूता है अर भीड़... ऊठण रौ कैवां तौ झगड़ौ फसाद...। सोच’र वो ऊठण तांई सोसका तकण ढूक्यौ अर बत्ती कांनी जोवण लाग्यौ। सागी भुणकलौ बत्ती रै सिर मार’र पाछौ बावड़ै ही। वीं घड़ी कांनी जोयौ, गाडी ऊभी होयां खासी ताळ होयगी ही। वीं सोच्यौ—ठीक है, गार्ड कीं कर तौ सकै है पण अब तौ गाडी ऊभी होयां कित्ती ताळ होयगी। कांई ठा, वो नीचै ऊतरै अर गाडी चाल वहीर होवै?

डिब्बै रै ऊभै लोगां में वीं रै जाबक चिप’र वीं रौ दोस्त खड़्यौ हौ। वीं नैं ध्यांन आयौ—बडौ है, ऊठ’र वींनैं बैठण तांई कैवणौ चाइजै। पण दूजै छिण वो ईं बात रौ आळस करग्यौ अर मूंढै साम्हली खिड़की कांनी जोवण लाग्यौ। सीसै माथै आपरी सिकल वींनैं फेरूं पसंद नीं आई, मगसी-मगसी’क। वींनैं झुंझळ होयी— बैठण नैं जिग्यां होवै जणै तौ कैवै ई, जिग्यां कठै है? अर फेर गाडी चालण री उडीक करण...। गाडी ऊभी होयां जांणै जमारौ होग्यौ हौ। वीं सोच्यौ— इत्ती ताळ में तौ वो गार्ड नैं कणांई रौ बुला’र लियांवती अर कित्ती आछी बात हूंती, गार्ड आय’र सगळां नैं ऊभा करतौ। लोगां नैं सीट मिळ ज्यावती। लोग मांन जावता कै कोई आयौ हौ भण्यौ-गुण्यौ, बात रौ जांणूं।

वीं री ईं जगाथगी रौ निवैड़ पण तावळौ होग्यौ। गाडी अेक जोर री चिरळी मे’ली अर चाल पड़ी। वीं रौ गार्ड नैं सिकायत करण वाळौ विचार गयौ होग्यौ अर ईं गयौ होण रै बिचाळैं गाडी चाल वहीर होवण री डाट ठोक लीधी।

गाडी रै गुड़कण रै साथै वीं रै विचारां रौ गड़मचियौ फेरूं गुड़णौ सरू होयौ। सूतै लोगां नैं बैठा करण री चिंता वींनैं फेरूं झाल लियौ।

हां—वींनैं चांणचूक सूझी—आ करणी चाइजै। टीटी आ’र जणा टिकट मांगै, वींनैं टिकट नीं दिखावां। कैवां टिकट पैली आं लोगां री देखौ जिका च्यार-च्यार मिनखां री जिग्यां रोक’र सूता है। अै च्यार-च्यार टिकटां दिखावैला तौ म्हे टिकट दिखास्यां। मन मन वो आपरी ईं नूंवी योजना ऊपर राजी होयौ—कित्ती मार्के री बात अचांणचक वीं रै ध्यांन में आई है। वीं सोच्यौ— ऊभा लोग सै टिकट दिखावण सूं नट ज्यावैला तौ झक मार’र टीटी नैं जिग्यां दिरावणी पड़सी। ईं सोच नैं समटावण रै सागै उण मांय मांय अेक लांबौ हुंकारौ दियौ—हुंह... अर टीटी रै आवण री उडीक करण ढूक्यौ।

“भाई सा’ब! आपका टिकट?” लीलै रंग रा ऊनी पैंट-कोट वाळौ अेक मिनख, भूकरकै सूं गाडी वहीर होवतां डिब्बै में दाखल होयौ। भाई सा’ब, जिका बुद्धिजीवी रै मूंढै आडै पसर्‌योड़ै डिब्बै री पांचवीं ऊपरली सीट रा मालक हा, थोड़ा तळमळाया अर झटा’क सूं बैठ्या होयग्या। वांरौ टिकट साथै रौ साथै यूं हाथ में आयौ ज्यूं मसीन में आयौ होवै।

“जयपुर से रहे हैं?” टीटी मूंन भांगण तांई टिकट बांच’र फालतू रौ सवाल घात्यौ।

“हूंऽ...।” अर वीं री ईं हूंऽऽ अर वीं रै सागी चांकै पाछौ होवण में लागी जेज घड़ी री सूयां री पकड़ में आवण वाळी नीं ही, दोन्यूं कांम अड़गड़ै साथै होया। वो लमलेट होग्यौ। हेठली सीट ऊपर सूतै मिनख कनैं टिकट स्यात नईं ही। वीं रै मूंढौ उकासतां टीटी आपूंआप उथळौ दे लीधौ, “आपका टिकट तौ में देख चुका हूं।”

यूं मुसाफरां री टिकटां देखतौ टीटी कणां बुद्धिजीवी रै कनैं आयौ अर कणां वींरी टिकट टीटी रै हाथ आई वींनैं ठा नीं लाग्यौ, पण थोड़ी ताळ में हलचल खतम होयगी। टीटी उण डिब्बै सूं उतरग्यौ।

रामगढ-उज्जळवास सूं गाडी चाली तौ वो पाछौ आपरै सागी चांकै आवतौ होयौ। वीं रै लारै ऊंघतै मिनख रै गाडी चालण सूं अेक इस्यौ झटकौ लाग्यौ जिकै सूं वींरौ खूंवौ आ’र बुद्धिजीवी रै मगरां में लाग्यौ। जातरी नैं ईं स्यूं कीं चेतौ होयौ अर इंयां ऊपर पड़ण री कासफ सूं वो कीं सांकड़’र बैठग्यौ। बुद्धिजीवी नैं ईं स्यूं निठ आंगळे’क जिग्यां रौ फायदौ पूग्यौ, पण संतोख ईं स्यूं कठैई बेसी होयौ। वीं सोच्यौ—गाडी चालण रै हिलकां सूं हाल-हाल’र वो जिग्यां बणा सकै है। वींरी अण समझ पण थोड़ी ताळ में धोखौ दे दियौ। गाडी आपरी पूरी रफतार ऊपर चालण ढूकी अर हिलका लागणा बंद होयग्या।

ऊभा मिनखां मांय सूं केई गोडा मोड़-मोड़’र जठै ऊभा हा, बठै बैठग्या हा। पीतळ री परात अर झेरणा रौ मुठियौ भर्‌‌यां ऊभी बूढळी झेरणा नैं निसांण री ज्यूं ऊंचा’र परात ऊपर बैठगी ही। थैलौ हाथ में लियां ऊभौ मिनख हौ जठै रौ जठै थैलौ आगै मेल’र उकडू होग्यौ हौ। चौधरी-सो दीसतौ मूंछ्यां वाळौ मिनख आपरी कांमळ हेठां दे लीनी अर बीड़ी सारणौ सरू होग्यौ हौ।

नोहर री ठेसण सूं गाडी रवांनै होई तौ डिब्बै में अेक नूंवौ मिनख चढ्यौ। वीं रै हाथ में काळै रंग रौ मोमजामै रौ थैलौ हौ। अेक लांग री दोलड़ी धोती बांध्योड़ी ही अर वो लीली पापलीन रौ कमीज पैर्‌यां हौ। मूंछ्यां ही तौ बडी-बडी, पण बंट देवण ज्यूं नीं ही, ऊपर सूं बुड़छायोड़ी ही अर झाड़लै री सूळां दांई ऊभी ही। उघाड़ै सिर वो अेक पूरौ मिनख हौ अर यूं लागै हौ ज्यूं कोई मिलटरी रौ रिटायर सिपाई होवै अर ताजा रिटायर होय’र आयोड़ौ होवै। आवतां वीं आपरौ थैलौ ऊपरली सीट ऊपर अेक सा’ब रै पगांणै धर दीधौ अर सीटां ऊपर सूतै मिनखां ऊपर बेराजी सो होय’र ऊभौ रैयग्यौ।

“अरे, यह थैला किसका है भई?” सीट ऊपर सूता सा’ब तलमलाया। ...।”

“अरे, यह थैला किसने रखा है?” आपरी लारली बात रै नूंवै संस्करण में अबकै वीं “उठावो इसे” और जोड़्यौ अर थोड़ी नाड़ उकसा’र थैलै कांनी देख्यौ।“…….।”

सूतै सा’ब री अबखायां अबै तांई अेक री जिग्यां दो होयगी ही। अेक थैलौ नीं उठावण री अर दूजी बात रौ उथळौ नीं देवण री। वां मूंढै ऊपर ओढ्योड़ी चादर नैं झटकै सूं उतारी अर फूंफाया, “मैं कहता हूं इस थैले का मालिक कौन है? उठावो इसे!” सा’ब किरड़ियै दांई आकड़’र फेरूं कैयौ।

लीली कमीज वाळै मिनख रै माथै में तीन सवालां रै जवाब में तीन तोर्‌यां चढी, “क्यूं? थांनैं थैलौ अबखाई देवै है कांई? अठै लोगां नै खड़्या रैवण तांई जिग्यां कोनी। सीट सामांन धरण तांई है कै सोवण तांई?” उण तीन सवाल साथै घात्या अर यूं जोयौ ज्यूं सा’ब नैं आंख्यां में घाल लेवैलौ।

डिब्बै रै वीं खास ‘पोर्सन’ रै लोगां नैं, जिकै में आपणौ बुद्धिजीवी हौ, अबै ध्यांन आयौ कै कोई बात होई है। वै कणांई लीली कमीज वाळै मिनख कांनी तौ कणां सीट ऊपर सूतै मिनख कांनी जोवण लाग्या। बांरी निजरां में अेक बात री हांमळ पण साव ही कै बात लीली कमीज वाळै मिनख री ठीक है, पण बोलण रै नांव ऊपर वां सूं अत्तौ नीं होयौ। लीली कमीज वाळै मिनख बारी-बारी सूं सगळां ऊपर निजर पसारी, झाड़-पिछोड़’र जोयौ, ज्यूं बूझतौ होवै कै थे लोग कीं सा’रौ लगावौ तौ नीं उठाऊं थैलौ! पण किणी वीं सूं मींट नीं मिलाई। किणी री हिम्मत नीं पड़ी।

बुद्धिजीवी, जिकौ अबतांई अेक पत्रिका में सिर दियां सत्तरमुरगौ होय रैयौ हौ, आपरी पत्रिका अळगी धरी अर सीट ऊपरलै मिनख कांनी गोख्यौ, ज्यूं थैलौ लीली कमीज वाळै मिनख रौ नीं होय’र वीं रौ होवै।

ऊपरलै जातरी अबै तांई थैलै वाळै नैं आखरी ‘अल्टीमेटम’ देय दीनौ हौ, “तुम उठाते हो या नहीं, थैला? मैं पूछता हूं, तुम उठाते हो या नहीं?”

बुद्धिजीवी रै बात होठां ऊपर आयगी ही। वो लीली कमीज वाळै मिनख रै पख में उचक्यौ— ज्यूं कैवैलौ—यह नहीं उठाएगा थैलाऽऽ, आपको जो करना है कर लीजिए! सबद पण वीं रै होठां सूं बारै नीं नीसर्‌या। वीं कई ताळ तांण मार्‌यौ, पण बोली नीं फूटी।

ऊपरलै जातरी री सबर री हद होयगी ही। उण थैलै रै ठोकर मारी, जिकै नैं लीली कमीज वाळै अधर रौ अधर गुप लियौ।

अेन टैम ऊपर बुद्धिजीवी नीचै धूण घात लीधी अर पत्रिका रा पानां उळटण लाग्यौ, ज्यूं कीं देख्यौ नीं होवै।

लीली कमीज वाळै मिनख सा’ब नैं सीठणां सुणावणा सरू कर्‌या, “गाडी थारै बाप री है... रिजर्ब करायोड़ी है कांई थारी सीट... सूग्या खूंटी तांण’र...इसा सा’बजादा हा तौ फस्टक्लास में क्यूं गया नीं... सूग्या खूंटी तांण’र... जिंयां बाप री गाडी हुवै... थैलै रै ठोकर मारण री तौ म्हैं बता देंवतै पण...।”

पण...! कैय’र लीली कमीज वाळै जातरी डिब्बै रै लोगां नैं जोया पण... सगळां रा सिर सौ मण रा हा। किणी नाड़ नीं उकासी। लीली कमीज वाळौ मिनख आपूंआप चुप रैयग्यौ अर कोई ठेसण आवण री उडीक करण ढूक्यौ।

बुद्धिजीवी अबैई बोलूं... अबैई बोलूं तौ केई ताळ रैयौ पण जद डिब्बै में बैठ्या लोगां मांय सूं कोई लीली कमीज वाळै रै पख में नीं बोल्यौ तौ वीं सोच्यौ थारै अेकलै रै बोलण सूं....

घटना रै घटाव रै पांच मिनट रौ बखबौ बिचाळै आयग्यौ तौ वीं पिसतावा करणा सरू कर्‌या—लोग तौ भलांई नीं बोलता पण वींनैं... वो बोलतौ तौ कासी साथै बोलतौ... अर फेर अै सगळा लोग... सा’ळौ दब ज्यावतौ... लीली कमीज वाळौ कांई सोचतौ होवैलौ कै वींरी सही बात रौ समरथन करण वाळा नीं लाध्या। वो लीली कमीज वाळै मिनख सूं प्रभावित होयौ अर फेर सोचण ढूक्यौ— अैड़ै लोगां नैं जे समरथन मिळ जावै तौ देस री काया पलट नांखै। सोच’र वो लीली कमीज वाळै मिनख सूं काठौ सरमसार होयग्यौ। वीं री मनस्या होई कै वो लीली कमीज वाळै मिनख री वजांकतां अेकर फेरूं जोवै। पण वो सिर नीं ऊंचा सक्यौ। मन मन वीं रौ चितरांम मांडतौ रैयौ कै वो अैड़ौ है अर अठै-सी ऊभौ है।

थैलौ हाथ में ऊंचायां लीली कमीज वाळौ मिनख थोड़ी ताळ तौ आपरी झेंप मिटावण ऊभौ रैयौ पत्थर... फेर अेक सिसकारौ नांख’र वीं वा जिग्यां छोड दीधी अर खिड़की कांनी जाय’र कठैई ऊभौ रैयग्यौ।

ईं घटना सूं बुद्धिजीवी अेक लूंठी गिलांणी सूं गळगळौ होयग्यौ। बींनैं लाग्यौ, आज री वींरी जातरा अेक डफोळ मिनख री जातरा रैयी है। फेर वीं सोच्यौ, आज री ईं बात रौ वींनैं कोई पिरासचित करणौ चाइजै, बदळौ देवणौ चाइजै। इणी’ज घांण-मथांण में वो मन नैं कठैई अळगौ लगावण री कोसीस करण ढूक्यौ। पत्रिका रा पांनां उलटणा सरू कर्‌या, ‘संपादक रै नांव पत्र’ अचांणचक वींरी आंख्यां चिमकी ज्यूं कोई रास्तौ लाधग्यौ होवै।

उण निस्तै कर्‌यौ—कालै वो देस रै लूंठै इकबारां नैं अेक-अेक कागद लिखसी, जिकै में रात री गाड्यां में सोवण वाळै मिनखां अर ऊभा रैवण वाळा मिनखां री अबखाई रौ सागैड़ौ चितरांम मांडतौ थकौ मांग करसी के गाड्यां री टिकटां ऊपर नम्बर होवणा चाइजै, जिकै सूं वा जातरी नैं मिळ सकै। सोच’र वो मन मन सो’री होयग्यौ—आ मांग जरूर जोर पकड़सी अर समस्या रौ समूळ समाधांन होसी। निस्तै कर’र वीं आपरी साम्हली खिड़की कांनी जोयौ। आर-पार दिन-उगाळी रै सुभांखै में न्हायोड़ा दूधिया खेत देख’र वीं रै मन में अेक ठंड-सी वापरी।

मिनख रै रात रौ अर दिन रौ सोच-समझ रौ ढाळौ स्यात न्यारौ-न्यारौ होवै। वीं अेक लांबी सांस खींच्यौ। दिन नीसरण रै मांडणां रै साथै वीं रै विचारां रा मांडणा नूंवै रूप मंडण ढूक्या! इकबारां में कागद लिखण री आपरी बात काट उण आपूंआप उथळी—बिंयां’स इकबारां में लिखण रौ कांई फायदौ? सरकार बापड़ी कांई करै? इंदिरा गांधी देस री गाड्यां में जा-जा’र लोगां रा कांमळिया तौ खींचण सूं रैयी। तौ लोगां री कमजोरी है कै आपरै हक री मांग करतां मूंढौ सीमीजै है। कोई कांई करै? आज डिब्बै में ऊभा लोग जे सूतोड़ां नैं ऊभा करता तौ कांई कर नईं सकै हा—घणाई करै है, कांन पकड़’र बैठांण देवै है।

लीली कमीज वाळै मिनख री घटना वीं रै साम्हीं फेरूं ताजी हुई। वींनैं पिसतावौ होयौ आज री बींरी जातरा...। उण आपरै ईं पिरास्चित नैं पूरौ करण सारू फेरूं सोचणौ सरू कर्‌यौ।

गाडी गंगानगर रै आउटर सिंगनल बड़ती आजाद टॉकीज रै नैड़ै बगै ही। वीं फिल्म रौ पोस्टर बांच्यौ, ‘कोरा कागज’। अर सोचण ढूक्यौ आछी फिल्म है, कला फिल्म, अर स्यात ईं कला सबद रै साथै वीं आपूं आपनैं अेक लेखक रै रूप मांय जोयौ। वींनैं समस्या रौ समाधांन ढूंढतां जेज नीं लागी— हां, वो इज करसी, आज रै ईं सूमर विरतांत नैं मांडतौ थकौ अेक कहांणी लिखसी।

गाडी गंगानगर रै प्लेटफारम ऊपर आय’र ऊभी होयगी ही। सुवारियां उतर-उतर जावण लागी तौ वो उठ्यौ अर आपरै गाभां री धूड़ झाड़ण लाग्यौ। उण देख्यौ, वो सागी भुणकलौ वीं री झोळ्यां मांय मर्‌योड़ौ पड़्योड़ौ हौ। उण वीं भुणकलै नैं धूड़ रै साथै झाड़्यौ अर डिब्बै सूं बारै निसरग्यौ।

स्रोत
  • पोथी : साखीणी कथावां ,
  • सिरजक : मोहन आलोक ,
  • संपादक : मालचन्द तिवाड़ी/भरत ओळा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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