अेक लखपति बांणियौ हौ। पण निपूतौ। लारै इण माया नै कुण संभाळेला, इण सोच में उणरै पूरी तळतळावण लागी।

पैला लोगां घणी कहा-सुणी करी पण पाप रा डर सूं वौ भैरूंजी नै पाडौ नीं बोलियौ, पण सेवट कायौ होयनै वौ अेक दिन सिंझ्या रा छांनै-ओलै थांन पूगौ। सात वळा नाक रगड़नै हाथ जोड़तौ अरज करी— भैरूं बाबा, सगळी दुनियां नै तूठौ, पण म्हैं कांईं औगण करियौ। खावण नै दांणा कोनीं जठै टाबर माथै टाबर अड़थड़ै। म्हारै लारै नांव लेवणियौ कोनीं। तूठौ भैरूं बाबा, तूठौ। थोड़ी म्हारै माथै दया विचारौ। जे आवती साल म्हारै टाबर व्हियौ तौ म्हैं भरपूर करारौ पाडौ चढ़ावस्यूं।

कैयनै मन में विसवास धार्‌यां बांणियौ आपरै घरै आयौ। घरवाळी नै पाडौ चाढ़ण रौ भेद परगट कर दियौ। पछै हर पांचवै-सातवै वौ भैरूंजी रा थांन माथै जायनै नाक रगड़तौ, पाडौ चाढ़ण री घड़ी-घड़ी बोलवां बोलतौ। वौ जांणतौ के घणौ घोचौ करियां ईं भैरूंजी बात मांनैला।

भैरूंजी तूठिया के नीं तूठिया इणरौ भेद तौ वै जांणै, पण सताजोग री बात के बिणियांणी रै आसा मंडी। दोनूं धणी-लुगाई रै हरख रौ पार नीं। बिणियांणी कह्यौ— आसा मंडण री खुसी में बकरियौ तौ चाढ़ दौ। कुण जांणै भैरूंजी रा कोप सूं जीव रौ भाटौ बण जावै!

बांणियौ मूंजी अंत इज घणौ हौ। नित बिणियांणी नै टाळतौ रह्यौ। कैवतौ— टाबर व्हियां पछै अेक री ठौड़ दोय पाडा चढ़ाय देस्यूं, थूं क्यूं डरै! जका देवता सूंक लेवण सूं राजी व्है, वांनै मनावणा तौ साव सै’ल है।

नवमै महीनै बिणियांणी रै चांद रै टुकड़ा जैड़ौ रूपाळौ बेटौ व्हियौ। इत्ता बरसां सूं ढळती ऊमर में पेट मंडियौ अर वौ बेटौ, बांणियौ तौ खुसी रै मार्‌यौ अधगैलौ सो व्हैगौ। थांन माथै जायनै रोजीना भैरूंजी रा बखांण करतौ के देवां में सिरै देव तौ भैरूंजी है, बाकी सगळा तौ भाटा है। कोरा बखांण में उणरौ कांईं बिगड़तौ? पण पाडौ चाढ़ण सारू उणरौ मन पाछौ-पाछौ सिरकण लागौ। बांणिया री जात होयनै अकरम कीकर करै! इण रौ पाप कुण ओढ़े? पण बिणियांणी रौ मन कैणौ नीं करतौ। वा उणनै नित घोदावती। जावौ पाडौ चढ़ावौ। कठै नैनिया है कीं व्है नीं जावै।

सेवट बांणियौ काठौ आंती आयनै अेक पाडौ मोल लियौ। मन में सोच्यौ के जका भैरूंजी लोगां नै टाबरां सारू तूठै, वै खुद आपरै तांईं, कांई पाडौ नीं चढ़ा सकै? देवता तौ मिनखां बिचै घणा अपरबळी व्है। वौ अंधारै-अंधारै जायनै सैंठा बंधणा सूं पाडा नै भैरूंजी री पूतळी रै बांध दियौ। अरज करी— जद इंछ्या व्है तद पाडौ आपरै हाथां सूं ईं चढ़ाय लिरावसी। आप तौ देवां ऊपरला देव हौ। इण पाडा री आप सांम्ही कांईं जिनात! अबै आप जांणौ अर पाडौ जांणै। म्हें तौ म्हारौ कौल पूरौ करियौ। कैयनै वौ तौ उठा सूं खिसकग्यौ।

पाडौ सैंग रात भूखौ-तिरसौ पूतळी रै बंधियौ रह्यौ। दूजै दिन भाग फाट्यां कुत्ता पाडा नै थांन माथै देखियौ तौ वै जोर-जोर सूं भुसण लागा। पाडौ भूखौ तौ हौ इज। कुत्तां रौ भुसणौ सुणनै वौ जोर सूं हूचटौ दियौ। हूचटा रै समचै पूतळी तौ उखलगी। बंधणा सूं काठी जरू करियोड़ी पूतळी लेयनै पाडौ तौ उठा सूं हत्ताछूट दौड़ियौ। भैरूंजी लारै ठिरड़ीजता गिया। माटौ बांणियौ तौ कुजरबी करी!

माताजी रै मढ़ सांम्ही पाडौ पूतळी नै ठिरड़तौ लेग्यौ तौ मांय सूं माताजी पूछ्यौ—भैरूं-बाबा, यूं कांईं? पाडा रै ठिरड़ीजियोड़ा कीकर ठिरड़ीजौ हौ। थें तौ घणा अपरबळी बाजौ।

तद भैरूं-बाबौ ठिरड़ीजतां-ठिरड़ीजतां ईं इण मोसा रौ पड़त्तर देवतां बोल्यौ—थनै हाल इण भेद री ठाह को पड़ी नीं। आखी ऊमर मढ़ में बैठी मटरका करिया, बांणियां नै बेटा को दिया नीं!

स्रोत
  • पोथी : बातां री फुलवाड़ी (भाग-1) ,
  • सिरजक : विजयदान देथा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार प्रकाशक एवं वितरक
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