‘बादस्या! बादस्या!’

‘आयो साब!’ बोलतो बादस्या जीवणै हाथ में रेती अर डावै हाथ में सेवरलेट गाडी री पिन लियां फोरमैन रै सामीं ऊभो हुयग्यो। उण रा खाई में दापळ्या नैणां में बेबसी रा खीरां रो जगमगाट अेकरसी चिलक्यो। फेर जाणैं वीं पर राख री परत चढ़ी जगी हुवै। भीतर भोबर सी सिळगै। मूंडै अर औस्था री आब कद री पळसीजगी; ऊपर सूं कारखानै री काळंस जाणै भींत परलै मंडीज्योड़ै मंडाण पर तारकोल लीप दियो हुवै। लोगां रै दीदां मे ‘एक्सरे’ जैड़ो बळ कठै जिको मांय झांक सकै।

“ओ मरसड़ी रो हब है। इण रा कोजरां में डाई सूं साढ़े च्यार सूत रो टप घुमादे। फेर छै इंची बोल्ट कस’र हाथूं-हाथ त्यार करदे। अर आं रिमां में जठै-जठै बेल्डिंग रा टांका है, गराइन्डर फेर’र पलीन करदे।” फोरमैन साब जरूरी निरदेस देय’र दूजा कमां मे उळझग्या अर बादस्या हब नैं ल्या’र आपरै ठीयै पर मूंदो मार न्हांख्यो। उण रा होठ हळवां-हळवां बड़बड़ावै—“अेक, काम चालू कर्‌यो कोनी जितरै पैली दूजो काम म्हारी छाती पर चढ़ा मेल्यो। दूजा फीटर वैं रा बाप लागै, दिखावै छूंतरो। म्हांसूं दूणी पगार लेवै अर सगळो दिन लफोसाबाजी में खोवै अर जाती बखत आपरी पेन्टां रै खूंजां में हवाई स्टील रा बिट अर बरमा चुरा’र लेजावै। रवाब राखै अर फोरमैन री निजरा में घोचो न्हांखै। पण म्हारै पर तो झट चढ़ बैठै। बीड़ी री दो फूंक भी सारण रो औसाण कोनी। जद अेक चाय री पुरजी मांडण री कैवां तो घणा मरोड़िया करै। आधी रात ताणी म्हारो लोही पीवण मे कसर नीं राखै।”

बादस्या रै ठीयै री मेज। वीं पर जमकर मांय क्सीज्योड़ी पिन। बादस्या रै दोनूं हाथां सूं फाइल रा सरड़का लागीजर्‌या। उण रो काळजो भी समाज रै जमकरू सूं जकड़ीज्यो पड़्यो। सोसण री दमघोटू फाइल री रगड़ सूं वीं रै हिरदै री झिलणी छिलीजै अर निसासां रै अणकूंत बुरादै रो कूढ लागीअै, बीच चौराहै पर कुरड़ी सो, जिणनैं हटावणै रो अभी जुगाड़ नीं हुय सक्यो है। मसीना री घरघराट में उण रै विचारां रो तारतम नीं टूटै। माथो अेकरढाण बगर्‌यो—बाप री अकाळ मिरत्यू... भणनो बन्द। समधी समधी नीं रैया। टीकै रो उछाव फीको पड़ग्यो। मांग री आण सिरफ काळजै नैं सेधी। अेक अणजाण प्रेम रो पोतो समैं री बोछाड़ां में धुप चुक्यो हो। हां, कठै-कठै कूणां में अेकाध लकीरां देखी जा सकैं हैं।

“ओ बादस्या! आज क्यां में लागर्‌यो है? दम कोनी लगावै?” वीं रो सागरदी फीटर बोल्यो।

ऊं...बादस्या री चेतना बावड़ी।

“ऊं... ऊं...कांईं करै? कीकर मरणो मांड राख्यो है! सिगरेट बाळले।”

“अरै यार! इण पिन रै बासते लगाऊं हूं। म्हारा तो प्राण ले लिया।” बादस्या गैरो आखतो हुयोड़ो हो।

दूलियो उपेक्षा सूं पड़ूत्तर दियो—“मार गोळी सुसरी पिन रै! स्यात्-घड़ी दम लगावणै रै मिस काया नैं बिसराम दे लिया कर।” बादस्या कमीज रै ऊपरलै खूंजै मांय सूं अेक डबूकली निकाळी अर ढकणो खोल’र गांजै री मगसी पत्ती दूलियै री हथेळ्यां में न्हाख’र बोल्यो—“पिन के है अेक आफत है। गडुवै सूं भेर हूती जायरी है। तीन घंटां सूं घुलर्‌यो हूं, हाल ताणी फिट मिलाण नीं बैठ्यो। इण सूं पैली फोरमैन री पिद्दी हबां नैं गळै गेर्‌या।” दूलियो हथेळी में गूंठै सूं लसरका लगावतो बोल्यो—“ओ फोरमैन मादरकाड़ गडक रो मैल है।” अेक चाय खातर रांड सा नखरा करै। इण री तथाजुगत चोखी करणी पड़ैली।” बादस्या ओजूं खूंजै मांय सूं अेक सिगरेट अर दो बीड़ी निकाळ’र दी अर दूलियो वांरो जरदो काढ’र गांजै री टिकड़ी में मिला’र मुरकोई। फेर सिगरेट री भोगळी में घाल’र तूळी अेक मूंडै कानी लगा दीनी। फेर अेक सागीडी फूंक सार’र बादस्या नैं झला दीनी, बादस्या अेकर साथ दो- तीन कस खींच्या अर धूंअै रा कुरळिया मूंडै अर नासां मांय सूं निकाळ्या—“स्टोरकीपर सूं आधा इंच रो टप ल्या’र आं हवां रो मूंडो ओर भुळसणो है।” नाक रै नथणां सूं अब भी धूंअै री दो धार फुंवारै ज्यूं बगरी ही। बादस्या फेरूं आपरै भोगेड़ै पळा में खोयीजग्यो—“मेरै भी अरमान हा...नखराळी जवानी पर घणो नाज हो—अणमोल भावां रै डागळै में मन रो मोरियो अणथाक निरत करतो। भावी प्रेम-रस री सावणी लहरां में झोला खावतो... मस्ती में ऊझळतो पण अब? पगां कानी देख’र...”

‘बादस्या’ रै हेलै सूं उण री भावना रै अचाणचक ब्रेक सो लाग्यो, जाणै वो आपरै जीवण री आखरी दुरघटणा सूं बाळ-बाळ बच्यो हुवै। संभळतो सो आं...री सीत्कार सूं सामीं देख्यो। फोरमैन रै सागै संकड़ी मोरी री पेन्ट अर टेरलिन री बुसर्ट पैर्‌यां एक जवान ऊंभो।

“साब री पिन त्यार करी’क नीं?”

“अभी पांच मिनट में त्यार करद्यूं सा। फकत पालिस री फाइल रा दो-च्यार हाथ मारणा है।” बादस्या धूजतो सो पडूत्तर दियो।

“टेम पर त्यार नीं राखै! बड़ो हरामखोर है। खैर, सूद साब! आप थोडी ताळ बिराजो। अभी मिल जासी।” बोल’र फोरमैन कैरी आंख्यां सूं बटका सा भरती दूजां फिटरां कानी निकळग्यो।

सूद साब बादस्या नै बतळायो—“तन्नै लोग बादस्या कीकर बोलै?” बादस्या सूखै होठां मुळक्यो—“साब! दुनियां रा रंग-ढंग घणा निराळ हुवै है। बीजा मिनखां रा बखिया उघड़ता देख’र वांनैं मोकळा मजा आवै। मैं बादस्या हूं! कित्तो बड़ो मजाक! नीं, मजाक नीं साच है—मैं बादस्या हूं मेरै दिल रो। पण बादस्या अर पागल में आंतरो कित्तो? इण नैं कोई ठीक सर नाप सकै है?” बादस्या रै लिलाड़ पर दरद री अनेक लकीरां उभरीजगी।

साब हाथ गैल नैं बांध्यां लकडी री थूणी रै नेड़ै सी ऊभा हुयग्या। थूणी रै ऊपर सूं बीजळी रा तार आयोड़ा अर नीचै दोनूं तार बिच्छू रै डंक ज्यूं ऊभा। स्विच अर प्लग लागीज्योड़ा कोनी हा। छोटी ग्राइंडर चलावणी होती तद वां तारां री आंकूड़ी घाल देवता। चालू करन्ट में डंक त्यार ऊभा रैवता। साब बादस्या री बातां में मगन हुयर्‌या। बादस्या पिन पर पालिस री फाइल मार’र आखरी फिनिसिंग टच देवै हो। साब टांगां नैं चिनेक बिसराम देवण नैं अेक टांग डावै कानी सरकाई। इत्तै में थूणी परला चालू करंट रा खुला डंक पीछै बंध्योड़ी हथेळ्यां रै छूवीजग्या अर छूवणै रै साथै सरणाट उपड़ीज्यो। थूणी रा सगळा तार उपड़ीजग्या अर साब परै दूर जा’र चार फुटी लेथ मसीन सूं भिड़्या। तो वांरी बीनणी री चूड़्यां में बळ हो सो मसीन बन्द ही अर कारखानै रै अेक फीटर नैं ओकत आयगी सो मेन स्विच ओफ कर दियो। साब च्यारूंखानां चित्त अर बेहोस। मसीनां रो घर्राट बन्द हुयग्यो अर सगळा कारीगर भेळा हुयग्या। साब नैं उठा’र असपताळ पुगावणै रो तावळ सूं परबन्ध कर्‌यो।

फोरमैन आंख रा डोरा लाल कर्‌यां बादस्या नैं गाळां सूं भांड दियो। गधै रा कान मरोड़ न्हाख्या। कुम्हारी पर जोर कीकर चालै?

ढळतै दिन रो परवानो मिल्यो-काल सूं काम पर आणो बन्द...नौकरी सूं परै। मालक रै पगां में गिड़गिड़ाणो निसफळ गयो। नैणां रै सूखै आंसुवां री भाप बणीजगी। हाथां परली नाव खूटगी। बीस रिपिया अगावू लेवणै री साध पर पाणी फिरग्यो। आज उण रै भाग री किरणां भी ढळगी। अेक अणचींती विपदा रो डूंगर वीं रै गेलै में ऊभो हुयग्यो। वीं रै गिरस्थी रै मारग में मा री पीळी पड़ती काया रो धुंधळको समायीजग्यो। आंख्यां आगै अंधेरो आवणै सूं बादस्या धरतियां पसरग्यो। मिनखपणो छाती पीट’र हांफग्यो।

कारखानै रो मेन स्विच ओन हुयग्यो हो अर मसीनां रो घर्राट हुवण लागीजग्यो हो! अजमेरी गेट रै सामींसाम री गळी में सबजीमंडी रै अड़वांअड़ ‘लेबोरियस मेकेनिक्स’ रो गेट। वीं सूं बारै निकळ्यो बादस्या। सिर पर लांबा बाबर्‌या अर जुल्फी एक्टरकट। गाल पिचक्योड़ा। पतळो आयताकार मूंडो। चामड़ी गोरी पण मसीनी तेल सूं चीकटी। बिना बांवां री कमीज। आगै रो हिस्सो साबूत। पीछै रो घिसीजेड़ो। जगां-जगां कोजरा चालणीबेज हुयर्‌या। उण रै काळजै रा कोजरा कुण गिणै? पजामो नीचै सूं गांठगठीलो। कारी-कुटकां री विचित्र डिजाइन। सड़क पर हळवां-हळवां सरकतो आज रो बादस्या आपरी दुनियां में खोयीजतो...मा रो लाडेसर। जात-बिरादरी सूं उपेक्षित। हिमळास बंधावणियो कुण? मा री लांबी मांदगी सूं घणो थाकेलो। वीं रै डील री हाडक्यां सूखी फळू ज्यूं तिड़कै। पण आज बादस्या री टांगां में अणदगी सगती भरीजगी। आपूंआप कद नारगढ़ रोड़ टपीजगी अर कद बीकानेर ट्रेडिंग कंपनी रै सामूं-साम सांकड़ी गळी री तीजी पोळी में पूगी, ठा कोनी पड़्यो। अंधारै में भीजतै आंगणै नैं बादस्या री डूबती आंख्यां ओळखै। कोटड़ी रै कूणै में अेक अधखुली गांठड़ी चिमनी रै च्यानणै में हालती सी दिखीजै। अेक टूटी माचली पर पुराणा-बोदा मगसा पूर बिखर्‌या पड़्या। बादस्या वीं पर जा बैठ्यो अर बोल्यो—“मा! मा!! दरद क्युं कम हुयो? खुराक पड़ी है, ली कोनी?”

गांठडी थोड़ी हाली। सिर रो गाभो परै कर्‌यो। अेक सूकै हाडां री गांठड़ी में भीगी पळकां खुली—“बेटा! खुराक निवड़गी! माटी हूं। माटी में खुराक ढोळ कांईं करसी! चाय री दो घूट...आज री रात...जी नैं काठो राखे भला! धरती तेरी मायड़ अर आभै री छायां तेरी रेख राखसी।” बादस्या रै नैणां रै कटोरां रो जळ कद सूक्यो। पींदै री आल काळजै री अगन सूं और उड़ीजगी। सूका कोया गांठडी पर पसरग्या। उण री निवाच उण नै आराम देवै। मा रै हाथां में रगत री बची-खुची बूंदां रो दौरो हुयो अर आपूं-आप बादस्या रै माथै ऊपर हळवां-हळवां फिरीजण लाग्या।

पळां धीरै-धीरै सरकती जावै ही। रात रो अंधारो घणो गाढो हुवतो जावै हो। दीयै रो तेल कमीजतो गयो अर बाती बळ-बळ नै ओछी हूती गयी। कोटड़ी रो सरणाटो मून भासा में मिरत्यू रै आवणै री अड़ीक री करै। बादस्या नैं चेतो हुयो—‘मा! चाय बणाअं!’ बोल’र झटकै सूं मा कानी देख्यो। मा री नीन्द थिर हुयगी ही। खुली आंख्यां री थिर पळकां निरभै। बादस्या अेकरसां चितराम रो हुयग्यो पण फेर चेतना रो झटको उण नैं ऊभो कर मेल्यो। वो झट दीयै नैं मा रै मूंडै कनै ल्या’र नाक रै हथेळी लगाई अर झुक’र डील नैं सावळ देख्यो। दीयो फक् सूं नंदग्यो।

बादस्या दीयो लेय’र आप रै माचै कनै ऊभो होय’र तीळी बाळी अर बाती रै बार-बार लगाई पण तेल निवड़ चुक्यो हो। बाती कोरो धूंओ देवै ही। वीं री आतमा निढाळ होय’र माचै पर जा पड़ी। थाकेलो वीं रै डील नैं तोड़ै लाग्यो। वो आपरै खूंजै में हाथ न्हांखर अेक सिगरेट, अेक बीड़ी अर गांजै री पत्यां बारै काढी। हथेळी में गूंठै रा लसरका लगा’र चिलम बणाई। माचै री लटकती जेवड़ी रो टुकड़ो तोड़’र एक गांठ लगाई अर तुळी दिखाई। गांठ रै खीरै नैं चिलम पर राख कस खींच्या लांबा-लांबा अर धूंवै रो गोट कोटड़ी में भरीजग्यो। नसै सूं डील री नसां तणीजगी अर मन री बेचैनी क्युं कम हुयगी।

आखर आखी रात आंख्यां में बीतगी। दिन आहिस्तै-आहिस्तै ऊग्यो। पण कांईं! बादस्या तो कारखानै जार्‌यो है। मा री तथाजुगत कुण करसी? स्यात् वीं नैं अेक घणी ऊंडी आस है कै फोरमेन बीस रिपिया अगावू दे देसी अर नौकरी सूं यूं कोनी काढ़सी। पण केवळ रात री नींद अर नसै रै घिराव सूं एक कानी विचारां रो अथिर खाळ हो।

स्रोत
  • पोथी : आज रा कहाणीकार ,
  • सिरजक : अमोलकचन्द जांगिड़ ,
  • संपादक : रावत सारस्वत ,
  • प्रकाशक : राजस्थान भासा प्रचार सभा ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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