कुनकी नै कालतांई आंख्यां रै आगै पड़ी जिनस ही कोनी सूझती। उणरी मां उणनै इण खोटी आदत रै कारण नित-हमेस दिरकारती। कुनकी नै मां रा बोल ताता खीरा-सा लागता अर बा आपरै मन भळै कदैई इण भांत री भूल नहीं हुवण देवणै रा मनसोया बांधती पण थोड़ी-सी ताळ बाद उणरा मनसोबा फगत मनसोबा ही बण’र रह जावता अर कुनकी सांम्ही पड़ी जिनस रै खातर ढंढोळा मारती फिरती। कुनकी नै आपरी इण आदत ऊपर घणी ही झुंझळ आवती पण बात निजोरी ही, इण खातर मन मसोस’र रह जावती।

आखाबीज रै दिन कुनकी रै मन में अणभै जागी। जिकी कुनकी नै पगां में पड़ी जिनस भी नहीं सूझ्या करती, उणनै आज ऊंडी-सूं-ऊंडी मेल्योड़ी जिनस भी सैंचड़ूड़ दीसण लागगी। कस्तूरियै मिरग नै सुगंधी रो ज्यूं अचूंभो हुवै त्यूं हीज कुनकी नै आपरी अंतर्दृष्टि ऊपर अचूंभो हुवण लाग्यो। वा इण बात रो भेद समझ ही नीं सकी कै रातोरात अणभै जागी तो जागी क्यूंकर।

कुनकी सदा तो सूरज ऊग्यां पछै तांई गूदड़ां में पड़ी रह्या करती, पण आज वा आपरी मां रै साथै-री-साथै उठ खड़ी हुई। उणनै इतरी बेगी उठी देख’र मां ने थोड़ो इचरज हुयो जरूर पण उण भी बोल’र कंई कह्यो कोनी। कुनकी उठती पाण धोळी वाळी कुंडाळकी उठा लाई। कुंडाळी में नीं तो धोळी ही अर नीं मसोतो। उण तुरताफूरत कोठलियै बड़’र धोळी री डळ्यां काढी अर कुंडाळी में घाल’र भिजोय दी। धोळी भीजी जिकै सूं पैलां अेक ओढणियै रो चिल्लो फाड़’र मसोतो बणाय लियो। कुनकी धोळी घिरोळ’र आंगणे रै पसवाड़ली लीकां देवणी पैळाय दी। घर रो आंगणो खासा बडो हो। आंगणै री पट्टी पूरी हुई जितरै दिन खासा चढग्यो। कुनकी री मां जितरै रोटी-साग तैयार कर लिया। उण चूल्है रै कनै बैठी ही हेलो कर्‌यो कुनकी..! रोटी सिकगी, आवरी जीम लै।

कुनकी मां रै हेलै रो कोई उथळो नहीं दियो। वा कुंडाळी लेय’र पड़वै में जाय बड़ी। उण पड़वै रै आंगणै रै भी च्यारूंमेर पट्टी देवणी पैळायी। तां बाद, बरसाळी, सामली साळ, बाहरली छानड़ी, ओटा, पगोथिया आद सगळी जगां पट्टियां देय नांखी। करड़ी भातै वेळा हुयगी। कूनकी री मां रै बात समझ में ही नहीं आई कै भखावटै-भखावटै सिरावण रै खातर कूकणैवाळी कुनकी री आज भूख क्यूं कर बंद हुयगी..! धोळीवाळी कुंडाळी नै हाथ में लियां कुनकी नै उणरी मां सावळ लेवाळमेट हुय’र देखी। उणनै कुनकी में और तो कीं फरक निजर नीं आयो, पण होळी ऊपर जिको लहंगो उणरै पगां रै हेठै दबीजतो, बो गिट्टा सूं भी च्यार-च्यार आंगळ ऊंचो चढ़ग्यो दीस्यो। उणरै मूंढै सूं अणचायो ही अेक ठंडो निस्कारो निकळग्यो।

कुनकी रै पट्टियां रो काम तो पूरो हुयग्यो पण हिरमचवाळो सगळो-र-सगळो काम बाकी पड़‌यो हो। बा कुंडाळी मेल’र हिरमचवाळी कुंडी उठाय लाई। उणरी मां चूल्है कनै बैठी-बैठी आखती हुयगी। बा उठै सूं उठ’र कुनकी रै कनै आई अर हिरमचवाळी कूंडी उणरै कनै सूं लेवती बोली ला, थारी हिरमच म्हैं घसूं जितरै तूं जीमलै तो कोई बीजो काम उकलै।

कुनकी मां रो कैवणो मान’र चूल्है कनै जाय’र जीमण नै बैठगी। रोटी रो पैलड़ो टुकड़ो तोड़’र मूंढै में लेवतां ही उणरी मींट पसरी। उणनै साफ दीस्यो कै दोय काळा ऊंट, चोखी सजाई सजायोड़ा उणरै गांव कानी अेका-पड़छ बूहा आवै है अर उणा दोनुवां ऊपर बेळास करयोड़ी है। अगलै ऊंट रै आगलै आसण में बैठै मोट्यार रो चेहरो उणनै सैंधो-सैंधो लाग्यो। बा रोटी रा टुकड़ा मुंढे में लेवणा भूल’र उणरो चेहरो-मोहरो देखण लागगी। गोरोगट्ट रंग, गालां रै ऊपर थोड़ी-थोड़ी गुलाबी झलक, मोटी-मोटी आंख्यां, तीखो नाक, गुलाब रै फूल-सा पतळा होठ, मोती-सा चमकता दांत अर ऊपरलै होठ ऊपर फूटती-सी रूंवाळी, माथै ऊपर बंदेज रो फेंटो अर धोळीधप्प जीण रो कोट, झीणी धोती अर मखमल रै पटै री पगरखी देख’र कुनकी छकड़ीकम हुयगी। उणरी मां हिरमच घस’र उणरै कनै आय बैठी। उणनै ध्यान-मगन हुयोड़ी देख’र बोली कुन्नी, ले तूं तो अजै तांई जीमी ही कोनी अर देख म्हैं थारी हिरमच घस’र तैयार ही कर दी।

मां री बोली सुण’र कुनकी रो ध्यान टूट्यो। बा बेगा-बेगा रोटी रा टुकड़ा तोड़-तोड़’र पेट में नांखण लागी। सब्जी में आज लूण कंई कमती अर मिरचां कंई तीखी ही पण सुसकारा करती बा जीमली। बीजा सगळा जणा जीमजूठ’र पैलां ही निरवाळा हुयोड़ा हा। कुनकी री मां रसोई रो सांभा-सारो करण लागगी अर कुनकी उठती ही हिरमच री लीकांवाळो काम सांभ लियो। धोळीवाळी पट्टी रै मांयलै पासी अेक हिरमच री लीक अर बारलै पासी कटवीं जाळी देवणी पैळाई। रसोई रै आगळी लीकां देवती उण आपरी मां नै कह्यो मां..! आंगणै मांयलो चौक तो तूं धोळी सू चांकदै तो ठीक रैवै। बीजोड़ा-गाडी, दड़ी-गेडियो, सतरंजी, गमला इत्याद हूं सगळा पूर देसूं। अर हां, लापसीवाळो बाट भी थनै तैयार करणो है। हमै दिन कठै; पछला रो दिन अर अऊतियै रो धन जावतो कांई जेज लगावै।

कुनकी रै घर में मां-बाप, बैनां-भाई अर हेतू-मुलाकाती कोई बीस आदमी अेकै पगतणा ऊभा, पण कुनकी रै खुद रै मन में कोई-न-कोई खामी रैवण री आसंका बराबर बण्योड़ी ही। इणरै खातर पावणा रै हरअेक काम री निगराणी बा खुद राखती। ऊंटां रै नीरै-चारै अर गुड़-फिटकड़ी सूं लगाय’र पावणा रै पुरसारै तांई, उणरी पूरी-पूरी निगराणी राखी। गीतेरण्यां ने बुलाय’र लावणो अर फूटरै-सूं-फूटरै गीतां नै गवावणै री सगळी जिम्मैदारी तो फगत उणरै ही उपर ही। पावणा रै आवण री बधाई रै सागी ही कुनकी बास-मोहल्लै री सगळी गीतेरण्यां नै भेळी कर’र लेय आई। जीमणवार री बगत उणनै भळै दौड़णो पड़्यो, पण जंवाई जीम्यां बाद जद लुगायां पाछी आपरै घरां जावण नै संभी तो कुनकी उणारै आड़ी जाय फिरी अर कैवण लागी हमैं थे घरै जासो तो जावो..! म्हारी तो फिरती-फिरती री टांग्यां ही पिणिहारी गावण लागगी। थे जितरी बार फिरासो, थांरै काम पड़यां म्हैं इण सूं सात गुणा ज्यादा फिरासूं। भळै हमैं जेज ही कितरी है..!

लुगायां रै भी कुनकी री बात हाडोहाड ढूकगी। वै मंगेरणै कनै सूं घिरोळो देय’र पाछी आंगणै में जाय बैठी अर-आम्बा पाक्यां आंबलीजी, नींबूड़ा झोला खाय-गीत उगेर दियो। कुनकी गीत रै आंबा, आंबली अर नींबूड़ा रा उपमानां रा उपमेय खोजण लागी। उणरै शरीर में कंपकंपी-सी छूटण लागी अर डील पाणी-पाणी हुयग्यो।

कुनकी दोय-च्यार छोर्‌यां नै सागै लेय’र बैनोई नै तेड़ण नै गई। कोटड़ीवाळै झूपड़ै री मोरी मांय सूं उण झूंपड़ै में बैठै मिनखां रो जायजो लियो। सगळा जणा हंसी-ठट्टा करण नै लाग्योड़ा। उणरा बैनोई अेक किताब हाथ में लियां बैठा। खवासजी बैठा-बैठा सुपार्‌यां भांगै। उण झूपड़ै रै कंवळै जाय’र होळ-सी कह‌यो बैनोईजी..! हालो थानै घर में बुलावै।

बैनोईजी किताब नै भेळी कर’र आपरी कोटवाळी जेब में घाल ली। खवासजी सुपारी-किरचा अर खाटी-मीठी गोळ्यां अेक गमछियै में बांध’र उणारै हाथ में झलाय दी। बै उठै सूं आळस तोड़’र उठ्या अर पगरखी पैर’र कुनकी रै लारै-लारै टुरग्या।

रसोई वाळै कनलै पड़वै में जंवाई नै तेड़ण री तजवीज करीजी। बूढी-ठाडी लुगायां आंगणै में बैठी गीत गावै। मोट्यार-जवान बीनण्यां अर छोर्‌यां-छापर्‌यां भेळी हुय’र पड़वै में आय बैठी। केई छोर्‌यां कुनकी री बडोड़ी बैन नै पैराय-ओढाय’र पड़वै में लेय आई अर जंवाई रै बरोबर बैठाय दी।

लुगायां आंगणै में बैठी-दोयां बिच म्हां सूं उठ्यो बैठ्यो जाय-पहेली गावै। छोर्‌यां-छापर्‌यां जंवाई कनै सूं गीदी-तकिया मांगै। जंवाई नै आवै जिकी बात रो उथळो देय देवै अर नहीं आवै उण बात ऊपर मून झाल लेवै। इयां करती छोर्‌यां-छापर्‌यां मसकर्‌यां ऊपर उत्तरती बोली –बैनोईजी, इळायची देवो, डोडा देवो अर थांरी मां रा गोडा देवो।

जंवाई तो छोर्‌यां री बात सुण’र चुप्पी साधग्यो पण कुनकी नै छोर्‌यांवाळी गोडां री बात ऊपर हंसो आयां बिना नहीं रह्यो। उण मन में विचार्‌यो छोर्‌यां गोडां रो कांई माथै में फोड़सी। कोई छोरो तो बात कैवतो तो कंई ओपती भी लागती। जितरै अेक छोरी बोली बैनोईजी, थे बैठो जणा थांरो पैलां पोत कांई टिकै..?

जंवाई उथळो देवै उणसूं पैलां ही कुनकी इणरो जवाब जोय लियो अर उणरै मूंढै सूं निकळ्यो टिकै मींट..!

जंवाई आपरी मींट कुनकी कानी फोरी। बा पड़वै मांयली घट्टी रै ऊपर बैठी ही। उणनै आपरै बैनोई री मींट भूखी दीसी। उण आपरी आंख्यां हेठीनै करली। जितरै अेक छोरी बोली –बैनोईजी थे थोड़ा ऊभा हुवो देखां, म्हारली बैन सूं कितराक डीघा हो..?

कुनकी री आंख्यां बैनोई कानी गई। बो कठमनो-कठमनो ऊभो हुयो। छोर्‌यां कुनकी री बैन नै भी ऊभी करी पण उणरा पग सावळ संभ्या कोनी। जितरै किणी छोरी रै हाथ रो टिल्लो लागग्यो अर बा ढीलै अंग बैनोई रै ऊपर जाय पड़ी। बैनोई उणनै आपरी बांथा में झाल’र पाछी सागी जागां बैठाय दी। छोर्‌यां नै अेक तमासो लाग्यो अर बै सगळी हड़हड़ करती हंसण लागी। कुनकी रै तो हंसतां-हंसतां आंख्यां मांय सूं आंसू तक आवण लागग्या।

सगळै गांव में सोपो पड़्योड़ो। कुनकी रा भाई-भौजाई आपू-आपरी जागां जाय सूता। कुनकी नै पड़वै कनली छानड़ी में जागां लाधी। रात आधी रै अड़सळै आयगी ही, पण कुनकी री आंख्यां में बट तक नहीं पड़ै। उणनै पड़वैवाळी भींत रै आर-पार रो देखाव साफ दीसै। वा मूतियां रै मिस उठ’र बाड़ै में गई। पड़वै री अेक छोटी-सी मोरी बाड़ै में ही। उण मोरी मांय सूं झांक’र आपरी मींट री जांच करणी चाही, पण कुनकी री बैन पड़वै मांयलो दीयो निंदाय दियो। कुनकी नै आपरी बैन री इण अणहुंती हुंसियारी ऊपर घणी ही झूंझळ आई।

पड़वै रै मांय सूं आवती सिसकारां री आवाज सुण’र कुनकी चौकन्नी हुयगी। उण आपरो जीवणोड़ो कान पड़वैवाळी मोरी ऊपर मांड दियो। हमैं उणनै सिसकारां वाळा सांस सैंचड़ूड़ सुणीजण लागग्या। बा केई ताळ सांस रोक्यां उठैई बैठी रही। कुनकी रो काळजो फड़कै चढ़ग्यो। वा उठै सूं उठ’र आपरै बिछावणा में आय बड़ी। उण पंगाथियै पड़्यै कांवळियै नै उठाय’र आपरै ऊपर नांख लियो अर आंख्यां नै काठी भींच’र नींद रै खातर ताफड़ा तोड़ण लागी। पण नींद री जागां उणरी आंख्यां में वैसाख रै महीनै रा चिड़ा, सावण रै महीनै रा गधिया, भादवै रै महीनै रा गोधा अर काती रै महीनै रा कुतिया अेक रै बाद अेक परतख दीसण लाग्या। कुनकी रो सांस फदकै चढ़ग्यो। डील पाणी-पाणी हुयग्यो। उण आपरो पसवाड़ो फोर’र सगळो डील मांचैवाळी ईस ऊपर नांख दियो। तकिये नै छाती हेटै देय’र ऊंधी फुरगी। पण कुनकी रै इतरो करणै रै उपरांत भी पड़वै रै मांयलो चिलत सिनेमावाळी रील दांई उणरी आंख्यां में नाचतो ही रह्यो..!

स्रोत
  • पोथी : उकरास ,
  • सिरजक : मूलचंद प्राणेश ,
  • संपादक : सांवर दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एंव संस्कृति अकादेमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम
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