म्हूं दिनूगै तावळो त्यारी करणै लागग्यो। दांतण रै पछै चा’-नास्तो कर्‌यो अर चनेक मिनटां मांय नहा-धोय’र इस्त्री कर्‌योड़ा घाबा पै’र लिया। अब तो फकत बठै पूगणै री देर ही।

मन मांय घणो जोस अर उमाव हो। अर गैरी उत्सुकता भी। होवै भी क्यूं कोनी आखर सरूआत कलेक्टर साब सूं होय रैयी ही। उच्छाव तो लाजिमी हो।

क्यूंकै म्हारै खास बेलियां रो फैसलो हो कै कलेक्टर साब रै कन्नै थनैं जावणो पड़सी अर आपणी सगळां री मनस्या उणां रै साम्हीं राख दीजै।

इण मामलै मांय म्हारो विचार हो कै जाण’र कलेक्टर साब घणा राजी होसी अर बां कानी सूं आपां नैं साबासी मिलसी। दिनूगै लगभग साढे इग्यारा बजे म्हैं कलेक्टर साब रै घर रै गेट कन्नै चौकीदार साम्हीं ऊभो हो। म्हनैं ठाह हो आज अदीतवार हो अर कलेक्टर साब घरां मिलसी। म्हूं चौकीदार नैं म्हारो परिचै देय’र मायनैं चल्यो गयो।

इणा रो घर शानदार हो। बा काच री भांत चिलकण वाळी बिल्डिंग तीन माळा ही अर किणी महल सूं कमती कोनी ही। घर रै च्यारूं पासै घणी ऊंची अर मजबूत दीवार ही। घर रै मायनैं जावण सारू सीमेंट री रोड़ बणियोड़ी ही। सड़क रै दोनूं कानी गमलां मांय सुगन वाळै फूलां री सजावट करियोड़ी ही तो अेक कानी दूब सूं हर्‌यो-भर्‌यो, रंग-बिरंगै फूलां सूं मै’ कतो अर आम, अमरूद, पपीता, नारियल आद दरखतां सूं भरियोड़ो नैनो बगीचो घणो फूटरो लागै हो। बगीचै मांय हाल तांई माळी पाणी देय रैयो हो।

कलेक्टर सा’ब रो शिकायत सुणनैं अर मिनखां सूं जरूरी बंतळ करणै सारू नीचलै तलै मांय इज आपरो केबिन बणा मेल्यो हो जिको आवण वाळां सारू कीं सौराई रैवै।

गिरमियां रो बखत हो। म्हारै पसीनै रा रींगा चालै हा, पण जोस मांय किणी भांत री कमी कोनी ही। इणी कारणै म्हनैं किणी भांत रो ध्यान कोनी रैयो अर बिना इजाजत म्हूं घणो मायनैं तांई उठग्यो तो साम्हीं सूं अेक और दूजो चौकिदार म्हारै कानी तावळो-तावळो आयो। बीं नैं देख’र म्हूं कीं सैंतरो-मैंतरो-सो होग्यो, क्यूंकै उण म्हनैं बिचाळै रोक लीन्यो।

“म्हनैं कलेक्टर साब सूं मिलणो है।” म्हूं कैयो।

“कलेक्टर साब सूं मिलणो है तो थोड़ो थ्यावस राखो। पैलां पर्ची लिखो, पछै मिलो। छुट्टी रै दिन घड़ी स्यात जक कोनी लेवण देवै।” छेकड़लो वाक्य बो बरड़वतो-सो बोल्यो।

म्हूं कैयो, “घरां मिलणै सारू पर्ची लिखणी पड़ै के..?”

“क्यूं घरां के है? आं कन्नै तो थारै जैड़ा घरां घणाई आयबो करै।”

म्हूं कीं कोनी बोल्यो अर चुपचाप पर्ची लिख’र बीं रै हाथां मांय झला दीनी। बो पर्ची लेवतो बोल्यो, “साब सूं मुलाकात खातर थांनैं कई जेज उडीकणो पड़सी। बै कीं अफसरां साथै अेक निजू मिटिंग मांय बिजी है।” उण हाथ सानी सूं कैयो, “बा जकी बैंच है नीं, बठै जा’र बैठ जावो। जद थांरो नांव बोलीजै, तद मायनैं आइज्यो।”

के करै हो म्हूं? चुपचाप जाय’र बैठग्यो अर म्हारी बारी उडीकण लागग्यो। म्हूं मन मन सोचै हो कै आं रो चौकीदार इण भांत पेश आयो है, तो के कलेक्टर साब भी... सोच’र म्हारै उच्छाव मांय मतोमत कमी-सी आवण लागगी।

बारै बैठ्यै नैं म्हनैं कलेक्टर साब रै केबिन सूं बां लोगां री आवाज अर ठहाका सुणाई देवै हा, पण किण विषय माथै चरचा चालै ही, म्हारै समझ सूं बारै ही।

लगै-टगै अेक घंटा पछै तीन लोग कलेक्टर साब रै साथै केबिन सूं बारै नीसर्‌या। उणां री फूटरी पोशाक अर बां रै चे’रै सूं झलकतो रौब साव इण बात रो इशारो करै हो कै बै किणी महकमै रा अधिकारी हा।

बै जद बारै आया तो बां रै सनमान सारू म्हूं ऊभो होयो, पण बां म्हारै कानी निगै करणै तक री जहमत कोनी उठाई। देख’र म्हनैं अपणै आप माथै शर्म री मैसूस होई अर म्हूं पाछो बैठग्यो।

मायनैं तो के ठाह के बात होयी होगी, म्हूं सुण कोनी सक्यो, पण बै सगळा जद बारै आया अर आपरी गाड़ी कानी जावै हा, तद बां मांय सूं अेक मसखरी रै अन्दाज मांय बोल्यो “सर आपनैं तो बियां कोटो मिल्योड़ो है। आपनैं घबराणै री कांई जरूरत?”

म्हूं कलेक्टर साब रै कानी देखै हो। अर बां नैं देखता थकां म्हनैं इयां लाग्यो जाणै इण वाक्य सूं कलेक्टर साब रो चे’रो विषाद सूं भरग्यो अर बै बोल्या, “अरै कोटै रै मारो गोळी...इण री म्हानैं लोड़ कोनी।”

सुण’र बै तीनूं हांसण लागग्या। उण हांसी मांय के छिप्योड़ो हो, म्हूं कोनी जाण सक्यो।

“आप जियां चावो बियां इज होसी। डरणै री बात कोनी।” दूजै कैयो अर गाडी मांय चढ़’र व्हीर होग्या।

म्हूं बठै बैठ्यो-बैठ्यो सोचै हो कै आंरै जावण रै पछै कलेक्टर साब स्यात म्हनैं बूझसी। मांयनैं आवण रो कैयसी, क्यूंकै म्हारै सिवा अब बठै दूजो कुण इज कोनी हो। पण बै कीं कोनी बोल्या अर नां म्हारै कानी देख्यो अर सीधा मांयनैं उठग्या।

अब म्हूं मांयनैं कियां जावूं? जावूं का नीं जावू? बेरो नीं बै किण भांत पेस आसी? इण दोगाचींती रै बिचाळै चौकीदार म्हारो नांव लेय’र आवाज लगाई।

म्हूं घबरायोड़ो-सो मांयनैं जावण लागग्यो पण अब बां सूं मिलणै रो जोस घणी हद तांई कमती होयग्यो हो। म्हूं भीतर भीतर अपणै आपनैं कीं कमजोर-सो मै’सूस करण लागग्यो हो, क्यूंकै कलेक्टर साब रै बारै मांय म्हूं कीं धारणा बणा राखी ही, उण भांत रा कलेक्टर साब अब म्हनैं कोनी लागै हा। केबिन रै मायनैं जावतां म्हनैं कीं सुकून-सो मिल्यो। कलेक्टर साब रै कन्नै पूगणै सूं नीं, बल्कि केबिन एसी युक्त हो, उण ठण्डक सूं म्हारो पसीनो सूखण लागग्यो।

बां रो नौकर नास्तै री जूंठी प्लेटां, ठण्डाई री बोतलां अर गिलास उठावै हो।

केबिन री खिड़कियां ऊपरां कांच री सुन्दर नकासी कर्‌योड़ी ही। बां रै ऊपरां रंगीन परदा अळगै सूं आपरी ओळखाण बणा राखी ही। मायनैं की दीवार रै दोनूं कानी फूटरा मूंधै मोल रा गद्देदार सोफा मेल्योड़ा हा। कलेक्टर साब री कुरसी आगै अेक मेज अर बीं रै ऊपरां रंगीन फूलां सूं सजायोड़ी बैडसीट बिछायोड़ी। केबिन रै मायनैं भीनी-भीनी महक फैल्योड़ी ही। कैवण रो मतलब सो कीं साही हो।

मांयनैं जावतां कलेक्टर साब म्हनैं ऊपर सूं लगा’र नीचै तांई जोयो, जाणै म्हारो निरीक्षण कर रैया होवै अर पछै सोफै कानी इसारो कर’र म्हनैं बैठणै रो कैयो। सुण’र म्हूं सरमावतो-सो जा’र चुपचाप बैठग्यो।

“बोलो के समस्या है थांनै..! कींकर आवणो होयो” बां बूझ्यो।

“सर समस्या तो कीं कोनी।” म्हूं कैयो।

सुण बां ओजूं म्हारै कानी गौर सूं देख्यो अर बोल्या, “तो पछै आवण रो कारण...?”

म्हूं सगळी बात अेक साथै बतावता थकां कैयो, “सर, म्हूं अर म्हारै कीं खास बेलियां आपणै दलित समाज माथै अेक ‘स्मारिका’ लिख’र प्रकाशित करणै री हूंस पाळी है। इण नै छापणै रै पछै ‘स्मारिका’ हर दलित रै घर तांई पूगाणै री कोशिश करस्यां।”

म्हारी बात सुण’र बां बेरो कोनी क्यूं उपरनै देख्यो अर पछै इन्नै बिन्नै देख’र बोल्या, “इण सूं के होसी..?”

“इण सूं म्हारो सोचणो है कै इयां करणै सूं आपणै समाज मांय अेक नवी चेतना आयसी। बां मांय जाग्रति आयसी। नवी सोच रो बिगसाव होसी। उणनैं नवै सिरै सूं सोचण रो मौको लाधसी कै आजादी पछै आपणो समाज कित्तो’क आगै बढ्यो है! आपणै समाज मांय कित्तो’क बदळाव आयो है?” जिण गति सूं समाज बढणो चाइजै हो, बीं गति सूं बढ्यो है का नीं बढ्यो है? अर जे नीं बढ्यो तो कठै कमी रैयगी? उणा नैं आत्मविश्लेषण करणै रो मौको मिलसी।”

“इणरो मतलब इण स्मारिका नैं छपावणै सारू म्हारै कनैं आप चन्दो मांगण आया हो..?

“ना सर म्हूं चन्दो मांगण कोनी आयो।”

“तो…?” बां ओजूं बूझ्यो

“सर म्हे चावां कै इण स्मारिका खातर आप भी म्हानैं अेक लेख लिख’र देवो जिण सूं म्हारो भी हौंसलो बढै। बीं लेख रै साथै-साथै आप आपरो संघर्ष आपरै पूर्वजां रै बारै मांय भी कीं लिख’र देवो। अभाव रै दिनां अर समाजू भेदभाव झेलता थकां भी आप हिम्मत कोनी हारी अर आपरी मेहनत अर लगन रै माथै आज आप अेक जिलै रा कलेक्टर बण्या।

म्हारी बात सुण’र कलेक्टर सा’ब रै चे’रै रा भाव म्हनैं कीं बदळता-सा लाग्या तो म्हनैं इयां लाग्यो जाणै म्हूं स्यात कीं बेसी बोलग्यो दिखूं! पण बै बोल्या, “आच्छी बात है, थे लोग इण समाज सारू कीं कीं करणै सारू पांवडा मेल रैया हो। म्हूं भी आप लोगां रै साथै हूं। म्हूं तावळो थांनै अेक म्हारो खुद रो लिख्योड़ो आलेख पूगतो कर देयस्यूं, पण इण मांय पैलड़ै मायतां रै बारै मांय लिखणो जरूरी कोनी। बै जियां कियां आपरो टेम टिपाग्या बो अैड़ो बखत हो। बीं रै बारै मांय अब के गावणो पड़्यो है!”

कलेक्टर सा’ब री सकारात्मक सोच जाण’र म्हनैं हरख होयो। म्हारो कीं हौंसलो बध्यो अर म्हूं कैयो, “सर बो आपणै समाज रो आदर्श हो। आप जे आपरा कटु अनुभव रै साथै जीवण परिचै लिखस्यो तो समाज रै जुवान मोट्यारां मांय नवै जोस रो संचार होसी अर वै आपरो उदाहरण साम्हीं राखता थकां घणै हौंसलै रै साथै विकट परिस्थितियां सूं भी लड़’र आगै बढणै री कोसिस करसी।”

कलेक्टर साब म्हारी बात घणी ध्यान सूं सुणी पण आपरो जीवन परिचै अर आपरै मायतां रै बारै मांय लिखणै सूं साव इनकार कर दियो अर इण बंतळ नैं अठैई खत्म करणै री कोसिस करता थकां बोल्या, ‘म्हूं थांनैं कैय दियो नीं, अेक आलेख आप ताईं पूग जासी।”

सुण’र म्हूं अेक भांत हतास-सो होयग्यो अर आखरी कोसिस करता थकां कैयो, “साब, आलेख तो आप भलांई थे म्हानैं ना देवो, पण आप थारो अर थारै मायतां रो संघर्ष अर जीवण परिचै दे देंवता तो आच्छ्यो रैवतो। इण सूं समाज नैं कीं सीखणनैं मिलतो। बां रो हौंसलो आछो बधतो।”

इबकाळै कलेक्टर साब नैं गुस्सो आयग्यो अर बै लाल-पीळा-सा होय’र बोल्या, “थे चावो कै म्हूं लिखूं कै म्हारा पूर्वज हा जका गांव-गळी रा मर्‌योड़ा डांगर-ढोर घसीट-घसीट’र गांव सूं बारै गेरता। बां रो मांस खांवता। बेगारी करता। राज-रजवाडै मांय रोटियां सट्टै हाळी रैवता..?”

“बिल्कुल सर, इण मांय बुराई के है..? बात के झूठी थोड़ी इज है। आपांनैं भी तो नीं भूलणी चाइजै कै काम आपरला मायत कोड सूं थोड़ी करता। बां सूं जबरन काम करायो जावतो। आपरी बिरादरी रो म्हूं हूं अर बात स्वीकार करतां थकां म्हनैं दर सरम मै’सूस कोनी होवै।”

“आपां दोनूं अेक कटेगरी मांय आवां के..? आखिर आप हो के..? आपरी औकात के है..? अेक मामूली लेखक मात्र, बस..! म्हैं अेक जिलै रो कलेक्टर हूं। आपनैं ठाह है म्हारी कित्ती प्रतिष्ठा है..? कित्तो मान-सनमान है..? जिलै रा मोटै सूं मोटा अफसर म्हारै साम्हीं सैल्यूट मारै अर आप कैवो, म्हूं बो सो कीं लिखूं जको म्हारै आत्म-सनमान रै विरूद्ध है। माफ करो, म्हारै सूं इयां कोनी होवै, आप जाय सको।”

“खैर… सा’ब म्हूं आपरी बरोबरी तो कींकर कर सकूं।” नीं चावता थकां भी म्हारै इण वाक्य मांय व्यंग्य रो पुट हो।

“पण…” बिचाळै बै म्हनैं टोकता थंका बोल्या, “पण के..? आप म्हनैं बताओ दलित कुण होवै..? आप किण नैं दलित मानो हो..?

इण सुवाल रो पड़ूत्तर देवणो म्हारै सारू घणो दोरो कोनी हो अर म्हूं कैयो, “दलित...! दलित बो समाज है, जको सदियां सूं गुलामी री जंजीरां सूं जकड़्यो रैयो। ऊंचै तबकै द्वारा सालों-साल दबायो-कुचळ्यो जावतो रैयो। इण समाज रै लोगां री भावनावां नैं रौंद’र सवरण समाज रै लोगां बां नैं पसु सूं भी भूण्डो जीवण जीवणै नैं मजबूर कर दियो। बां ऊपरां भांत-भांत री पाबंदियां लाद’र जबरन कर्त्तव्यनिष्ठ होवण रो पाठ पढावता थकां सदियां ताईं अधिकार-विहीन राख्या।”

“हां, म्हूं बात मानूं। सांच है, पण आपनैं म्हूं अेक बात बताऊं..?” बै म्हारै ऊपर निजर गड़ावता बोल्या, “म्हूं खुद कलेक्टर हूं। म्हारी घरआळी एसडीएम है। म्हारो बेटो बैंक मनेजर है अर म्हारी बेटी आईएएस री त्यारी करण लागरी है अर म्हनैं पूरो-पूरो पतियारो है, बीं रो जल्दी ही नम्बर जासी। बीं रो सलेक्शन भी तै मानो। इण रै बावजूद भी के म्हे आपरी निजरां मांय दलित हां..? के अब भी म्हारै ऊपर दलित होवणै रो तमगो लागर्‌यो है..? अब भी थे म्हानैं दलित कैयस्यो..?”

“पण सा’ब, आपरो जलम तो दलित समाज मांय इज होयोड़ो है।” आखर रा अै सबद म्हूं डरतै-डरतै कैया। क्यूंकै कलेक्टर सा’ब सूं बंतळ करणै रो जोस अब अेकदम खत्म होयग्यो हो। कीं देर पैलां जका लोग आया बां री मिजबानी म्हूं देखी ही। म्हूं कलेक्टर सा’ब साथै समाज ऊपरां चरचा करणै आयो, पण म्हनें बां चा’ रो बूझणो जरूरी कोनी समझ्यो।

म्हारो आखरी संवाद शायद बां रै घणो चुभग्यो हो। क्यूंकै बां इणरो कीं ऊथळो कोनी दियो अर आपरै अेक चौकीदार नैं हेलो मारता थकां बोल्या, “अरै हरिराम..! आं नैं गेट तांई बारै छोड़’र आ।”

आं रै अठै सभ्य होवण रो मुखौटो नीं होवतो तो स्यात अै म्हनैं धक्को देय’र भी काढ सकै हा, पण के धक्को मारणै सूं कमती हो। म्हूं बां रै चौकीदार रै पूगणै सूं पैलां उठ’र चाल पड़्यो अर सोचण लागग्यो, दलित तो म्हैं हूं। अै दलित थोड़ी है। ‘स्मारिका’ तो किणी दलित नैं लिखणी पड़सी, जको म्हूं हूं।

स्रोत
  • पोथी : कथेसर ,
  • सिरजक : उम्मेद धानिया ,
  • संपादक : रामस्वरूप किसान, डॉ. सत्यनारायण सोनी ,
  • प्रकाशक : कथेसर प्रकाशन, परलीका ,
  • संस्करण : 08-09
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