उचक मत बावळा इतरो, जोबन रो जोर ढळगो है,

बाळपण सूं हुयो बूढो, जूण रो छोर अळगो है

बह्यो ऊंतावळो इतरो, जवानी रैयगी गारत,

तीर बिन कबाणी चढियां, टूटगो डोर, गळगो है

देखनै उमस रो घसको, पसारै पंख बिरथा ई,

नाचणो मेह बिन मुधरो, मोह रो मोर अळगो है

चुभैला डील में कांटा, पड़ैला प्रीत री पारख,

उगायो खेत में खुद ई, जको वो थोर पळगो है

करै ‌अै कुलखणी कोगत, भरत में भटकजै मतना,

विदेसी धुन नहीं धोखो, पछै सोर खळगो है

ऊठगी अतिथि सेवा, निरस वातावरण छायो,

अजै अपणापणा रो स्हैर में तो दौर टळगो है

बगत परवाण जे करलै, जमारो सुधर जावैला,

सीखलै संस्कारां रो, काळजै कोर बळगो है

विनय कर विरेन्दर कैवै, आथुणी लत उठाणी है,

करो मिल सामनो सगळा, भवस रो भोर कळगो है

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत अगस्त-सितंबर ,
  • सिरजक : वीरेन्द्र कुमार लखावत ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृत अकादमी, बीकानेर
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