थांनै कुण कह्यो कै कपूत सो लागै,

स्याबास! म्हारा बेटा तूं सपूत सो लागै।

बगत साथै जिकौनीं चाल सकै बो,

देखै जिकै नैं ही ऊत सो लागै।

बोली रौ मीठौ तो साकर दीसै,

खारो बोल सिर में भाठा-जूत सो लागै।

भगवान पाछै डागदर नै बैद गिणीजै,

जे हड़ै पीसा—प्राण तो जमदूत सो लागै।

पांचूं आंगळ्यां मिळै, तो बणै एकता,

कसकर थे बाधो! मुक्कौ मजबूत सो लागै।

बोलै जद फूल झड़ै, ठा परो पड़ै,

मूरख दूर सूं ही राजदूत सो लागै।

बीं घर रा रैंवासी, तो घर छोड़ न्हाटग्या,

जाती बेळा बोल्या, ‘अठै भूत सो लागै’।

घिरणा में बांरी सैंग बातां लाग ज्है’र सी,

पण प्रेम में हर काम सहतूत सो लागै।

जिन्दगी अर मौत बिचै औरत है पड़ाव,

‘अरविन्द’ जमानौ आखो बसीभूत सो लागै।

स्रोत
  • पोथी : बदळाव ,
  • सिरजक : अरविन्द चूरुवी ,
  • संपादक : सूर्यशंकर पारीक ,
  • प्रकाशक : सूर्य प्रकाश मन्दिर, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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