कुंटा टुट्या पड्या है घर रा, कठै लगावां ताळा आज

मां बाप तो ओल्ड होम में, घर में साळी-साळा आज।

सूखी खेती प्यासा प्राणी, प्राणी रा मोहताज हुया,

बादल बरस्या नईं बवै क्यूं कर बोलो नद नाळा आज।

घरवाळी जेवर नै तरसै, सोनो छू र् ‌यो आकास अठै,

छोडो बात हार री बण नई पावै ईं रा वाळा आज।

पोथ्यां कढै धरां घर में, नईं आं रो कोई ठांव बण्यो,

ड्राइंगरूम घणो सूणो पर बण्या अठै ना आळा आज।

अपणा घणा हुया करता, आता जाता मिल लेता हा,

आदर रो अब भाव नीं, म्हे निकळां हा परवाला आज।

चौकीदार चोर स्यूं मिलग्या, दूध रूखालै अब बिल्ली,

बाड़ खेत नै खा रयी देखो, कठै रया रखवाला आज।

भला भुगत र् ‌या सजा, बुरां री अब तो पांचू घी में है,

खरा विभीषण लात खा र् ‌या, पा र् ‌या देस निकाळा आज।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली गजल विशेषांक ,
  • सिरजक : विद्या सागर शर्मा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्कृति पीठ
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