समै री बिछावण पर, लाज री लीरां बिखरगी।

कुण री करियोड़ी खोड़ कुण रै माथै उतरगी।

अणछैव अंधारो जाणै किण परबत पौढ़यौ

पीड़ा री रेखावां, रंडापा रै लार करगी।

चरड़चूं बोलो व्यवस्था री गाडी रा पहिया

योजना रा लबादा ओढ़ जिनगानी पसरगी।

कानाफूसी करतो बायरो पोछ में विछ्यो

करम खोड़ली नार ज्यूं हियै री आस बिसरगी।

बेईमानी रो नूंतो हाथ में ईमान रै

बेसरमी राफूल नीत आंगण-आंगण धरगी।

बायरा में निपजती नित नंवा नारां री भीड़

धरती री झोळी अब भूख रो फसल सै भरगी।

स्रोत
  • पोथी : बदळाव ,
  • सिरजक : अर्जुन ‘अरविन्द’ ,
  • संपादक : सूर्यशंकर पारीक ,
  • प्रकाशक : सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर
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