साच समझाव अठै।

गीतड़ा गाव अठै॥

भरम भटकाव अठै।

मती मुळकाव अठै॥

मिनख मरजाद घटी

कठै है काय अठै॥1॥

पड़ो सूंधो’क ऊंधो,

लगावो दाव अठै॥2॥

पेट ने फाड़ मती,

हिया में घाव अठै॥3॥

वाड़ उजाड़ दिया,

जांव रा जाव अठै॥4॥

कदर कितरी कवी री,

पूण के पाव अठै॥5॥

तवै तीणा घणेरा,

नाम री नाव अठै॥6॥

सभा में सून घणी

लाल नै लाव अठै॥7॥

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : लालदास 'राकेश' ,
  • संपादक : डॉ. भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थान साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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