सहर में दस साल सूं रिकस्यो चलावै है।

बो संविधान ओढनै संसद बिछावै है॥

जद टाबर टोळी मांग ले कापी किताब।

आजादी पर बो घणूं बेजां लजावै है॥

जद कदां जागै हिया में लाय विदरो री।

इंकलाबी भीड़ में झंडो उठावै है॥

जो जाणै राजनीत अर वोट री भासा।

सांस पीणा सांप बीनै सतावै है॥

एक दिन मरग्यो सड़क रा हादसा में बो इयां।

सांझ जियां अदखेली चरभर उठावै है॥

मत सुणो इतियास’र मतगुणो कोई कलम।

बो एक सौ संघर्स रा सूरज उगावै है॥

स्रोत
  • पोथी : अंत बिहूण जातरा ,
  • सिरजक : रामस्वरूप परेस ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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