रस्तो भूल्या म्हारै घर रो, पै’लां आवण वाळा लोग,

उपर स्यूं तो मीठा बोलै, मन रा है अै काळा लोग।

काल तांई तो खास बणै हा, अब कोनी पहचाणै है,

कन्नै स्यूं निकलै बिन बोलै, मुंडां रै जड़ ताला लोग।

सूट वूट पैर् ‌यां डोलै अर भूल्या धोती चप्पल नै,

कार स्यूं नीचै पैर धरै नीं, काल तांई चाल्या उपाळा लोग।

दान पुन्न रो करै दिखावो, मंचां पर पीसा बांटै,

‌अै गरीब रै हाथां स्यूं भी, खाज्या छीन निवाळा लोग।

कथनी करणी आं री न्यारी बस फरेब में जीवै है,

एक हाथ में छुरी अर दूजै में राखै माळा लोग।

चलता पूर्जा मान्या जावै, अब तो अै उस्ताद बण्या,

नईं रैया पैलां बरगा वै, मन रा भोळा भाळा लोग।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली गजल विशेषांक ,
  • सिरजक : विद्या सागर शर्मा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्कृति पीठ
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