न्यारी न्यारी सोच मिनख री, म्हारो ओ बिसवास रह्यो है।
जद बी वचन निभ्या दसरथ का, राम सदा बनवास सह्यो है॥
कुण मानै है कुण ना मानै, पण कैणै को हक राखूं हूं।
जदां सांतनू हुया धरा पर, भीसम तो संन्यास लियो है॥
नन्द और आन्धै तापस री, पिता नाम सूं गिणती है।
पूत कन्हाई अर सरवण रो, अेक नयो इतिहास रह्यो है॥
दगो करैं निज ममता सूं, बै कुंती इब बी बोली हैं।
करण बिचारै अैं धरती पर, सदा सदा उपहास सह्यो है॥
परणी नै हारैं जुअै मैं, बै युधिष्ठर पूज्या जावै।
काची मौत मर् यो अभिमन्यू, को कमती अहसास रह्यों है॥
अधिकारां री बात छिड़ै तो, ठौड़ बाप री सबली है।
सदा पूत रै माथै पर पण, करतब गड्ढड़ खास रह्यो है॥
हिरणा कुस और पल्हाद रो, पिता पूत रो रिसतो हो।
बाप मरावै बेटै नै, आ सुणकर ‘दीप’ उदास रह्यो है॥