निजरां देख्या सुपना सड़ता

कद लग बोलौ म्हां आथड़ता?

आखी उमर आस में काटी

फेर कठा लग धीमा खड़ता?

रोग नुवौ लागौ है उण रै

मिनखां रा फाड़ै है कुड़ता।

सगपण टूटौ, सीर खूटग्यौ

कीकर मन टूटोड़ा जड़ता?

जुरम उठै हौ साच बौलणौ

बोलण पैला जरबा पड़ता

धरी आखड़ी नै ऊंची पण

‌अेक जणै सूं कीकर लड़ता?

वो आगोतर में गमग्यौ है

देख रूंख सूं पत्ता झड़ता।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : सत्येन जोशी ,
  • संपादक : भगवतीलाल व्यास
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