न तू ई सुधर्यो, न म्हूँ अ'र यो सारो बीत बी ग्यो
जमाना! थारी फकर मं' जमारो बीत बो ग्यो
कठे' बी झांक ल्यो, काळो ई काळो आव' नजर
कठे' बी सुण ल्यो, यो रोळो, 'अंधारो बीत बी ग्यो'
तसाया पंछी कळपता फरे है' जंगल मांय
बंध्या है' ढोर खोटा पे’, चारो बीत बी ग्यो
न फर मुळकती, मिरग-सी उछळती खेतां मं'
यो जाण ल्ये क’ लड़कपण तो थारो बीत बी ग्यो
कस्याँ बणाऊँ खलकणो, मनाऊँ टाबर ने'
अठे' तो सड़काँ है' डामर री, गारो बीत बी ग्यो
घणा सह्या है जुलम इब तो उठ रे’ साथीड़ा
बता द्यां वाँ ने' सबर थारो-म्हारो बीत बी ग्यो
'यकीन' जागती राखो या जोत साहित री
मिनखपणो तो चुक्यो, भाईचारो बीत बी ग्यो।