मिनख ओळमां सूं देखैला

कठै-कठै गोडा टेकैला

जद पग में कांटा भागैला

तद जूतां पैरण सीखैला

काया अर माया रै खातर

कद ताईं खुद नैं बेचैला

बातां में आणो सोरो है

थोड़ी बुद्धि राख रे गैला

थारी करण रब रै तांईं

थारै सूं पैली पूगैला

जद खुलसी करमां रो खातो

तद जम नैं कांईं कैवैला

पकड़ कान सूं ऊपरवाळो

पल-पल रो जोखो लेवैला

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत अगस्त-सितंबर ,
  • सिरजक : कविता किरण ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृत अकादमी, बीकानेर
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