एक दूजै रो सिर खाणा माणस।

सब्जी सागै ज्यूं धाणा माणस।

टीकली कमेड़ी बण बण बोलैं,

होर्‌या हैं डेढ स्याणा माणस।

गरज पड़्यां गधो बाप कुहाज्या,

कहज्यां जाण्या पिताणा माणस।

आख्यां थकां कई आंधा होर्‌या,

जाण करता बणैं काणा माणस।

किं हैं तूळी किं तेल किं लकड़ी,

किं थेपड़ी किं हैं छाणा माणस।

एक मेल्यो दूजी आस नीं पण,

मांड राख्या तकड़ा पाणा माणस।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : कुलदीप पारीक 'दीप' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
जुड़्योड़ा विसै