जद बाड़ ही खेत नै खावै।

बां खेतां नै कुण बचावै।

आरी रो है काम काटणो,

जद भी आवै जद भी जावै।

दूर ही रहियो बीं मिनख सूं,

गीत गाँव सूं न्यारो गावै।

बच'र रहणो तो बीं सूं भी है,

लादा भर भर गोट गुड़ावै।

किं किं खोट तो बठै भी है,

बात बात में आँख दबावै।

भरौसै मार खा ज्याओला,

काडै दाँत राफ तिड़कावै।

मोडै हाथ अर पीठ में छूरी,

लगा चोर नै, धणी जगावै।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : कुलदीप पारीक 'दीप' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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