महल मेढ्यां और के बांधै रतन जी

टूटी घर की छप्पर कहां सांधै रतन जी।

‘जीमलो सरदार भोजन त्यार’ कह

घर नैं आके आलूणी रांधै रतन जी।

ब्याज बा’ढी देता पीढियां बीतगी

मूळ ढोतो आयो कई कांधै रतन जी।

हो सकै तो न्हासूं होशियार रहो,

बेकसूर केस में फांदै रतन जी।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली लोक चेतना री राजस्थानी तिमाही ,
  • सिरजक : रामदयाल मेहरा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्कृति पीठ
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