महल मेढ्यां और के बांधै रतन जी
टूटी घर की छप्पर कहां सांधै रतन जी।
‘जीमलो सरदार भोजन त्यार’ कह
घर नैं आके आलूणी रांधै रतन जी।
ब्याज बा’ढी देता पीढियां बीतगी
मूळ ढोतो आयो कई कांधै रतन जी।
हो सकै तो न्हासूं होशियार रहो,
बेकसूर ई केस में फांदै रतन जी।