नाग रौ नाम सी है जिन्दगी

छलकतौ जाम सी है जिन्दगी

किणई तरा भौगणी तो पड़ेला

थोपियोड़ौ काम सी है जिन्दगी

थूं इनै देखतौ रै जावेला

घणकरी बदनाम सी है जिन्दगी

भलाई रौ बदलौ जदे मिलेला

लागैला इनाम सी है जिन्दगी

दोराई में जठे उजालौ वै

दुपारी में शाम सी है जिन्दगी

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : अब्दुल समद 'राही' ,
  • संपादक : डॉ. भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थान साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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