प्यार में खुसबू, जिकी खुसबू रळी मन-प्राण में!

अेक कूंपी इत्र री, म्हारै ढुळी मन-प्राण में!

भूलग्यो सारा निजारा, आज-लग देख्या जिका!

तू मिली, जिण ठौड़, चितरी बा गळी मन-प्राण में!

गीत अब गावूं किस्या? किण रूप रा? किण रंग रा?

गीत, जिणरो नी रचीज्यो, बा कळी मन-प्राण में!

आज दिनुगै मैं सुणी, पाछी अठै तू आयगी!

माचगी, जद सूं घणी बस, खळबळी मन-प्राण में!

बात हो कर ई, कोई बात ओजूं-लग हुयी!

नित गडै खुसबू बिचाळै ज्यूं सळी मन-प्राण में!

स्रोत
  • पोथी : मरवण तार बजा ,
  • सिरजक : किशोर कल्पनाकांत ,
  • प्रकाशक : कल्पनालोक प्रकाशन (रतनगढ़)
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