महलां मं बैठके “हाई” बरबादी लिखदे।
थूं भी दो चार कविता जनवादी लिखदे।
नाम गणिज्यागो थारो भी नामी कवियां मं,
मालपूवा खा'र कविता सलादी लिखदे।
भूख, गरीबी, सर्दी-गर्मी भलांई मत जांण,
फ्रिज को पाणी पी'र जनता प्यासी लिखदे।
आसामान मं उड अर धरती न्हं भूलज्या,
आदर भाव तज ये सब पुरातनवादी लिखदे।
खाबा का अर दिखाबा का दांत नाळा नाळा,
अपनी गरज खा'ड सब अवसरवादी लिख दे।
मंदर मं भोग जीम आ डकार भी मत ले,
बारे आके पण्डान्ह पूंजीवादी लिखदे।