कत्ती गै'री काळी रात

दिवलै करी जोत सूं घात।

जद जद चायौ ऊबौ हाथ

पांती आई टूटळ लात।

बे खेल्या खाया पंच बीर

म्हां मिनखां री भोळी जात।

मोठ मजूरी आधै पेट

सूझै नहीं मुलक री बात।

टोटा पड़्या बाकळ्यां मांय

जीम्या पीड़ सूं टूटै डील

दिनगै संझ्या आधी रात।

रोवै रुळती मरवण लाण

कुण पूछै हिवड़ै री बात?

म्हूं थनैं बुझूं सुगनै पीर

कद होसी ऊजळ परभात?

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : सवाईसिंह शेखावत ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन
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