प्रेम भाव मत ना तोड़ो काका हीरा जी।

टूटा सकपण न्ह पाछा जोड़ो काका हीरा जी।

लोभ को मेल मन सूं दूर करां जी,

बिना बात अणबोलो छोड़ो काका हीरा जी।

एक ठोर ठिकाणे सबने जाणो जी-

नाळी गेल क्यूं दोड़ो काका हीरा जी।

मरती बेर कोई लारां नहीं जावे जी

थारी म्हारी कह क्यूं माथा फोड़ो काका हीरा जी।

पांव पेट में छेटी भले होज्या जी

पेट की आड़ी झुकेगो गोड़ो काका हीरा जी।

स्रोत
  • पोथी : कळपती मानवता मूळकतो मनख ,
  • सिरजक : रामदयाल मेहरा ,
  • प्रकाशक : विवेक पब्लिशिंग हाऊस, जयपुर