जी देख रह्यो हूं जिगर देख रह्यो हूं।

दरअसल थारी तिरछी निजर देख रह्यो हूं।

जळतो हुयो घर अर रोंवती थकी बेवा

देख्यो नीं जावै है मगर देख रह्यो हूं।

दुनिया में आ’र म्है चौफेर देख रह्यो हूं

बदळयोड़ी दुनिया री निजर देख रह्यो हूं।

कैसो बदळाव है इन्कलाब है कैसो

हर सख्स लूटेरो है चौफेर देख रह्यो हूं।

खाली नीं जावै है कदैई गरीब रो रोणो

कब तांई नीं होवै है असर देख रह्यो हूं।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली गजल विशेषांक ,
  • सिरजक : असद अली ‘असद’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्कृति पीठ
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