जठै जठै उजियारा व्हैला।

सरमिन्दा अंधियारा व्हैला॥

तन पर घाव पराया व्हैला।

मन पर दिया तिहारा व्हैला॥

करतूतां धरती री व्हैगी।

लज्जित सूरज तारा व्हैला॥

जो सत्ता री जय बोलैला-

वां रा द्वारा न्यारा व्हैला॥

पतझड़ में हरियाली देखै।

बी रां नयन उधारा व्हेला॥

आसा में आंख्यां दे बैठ्यो,

बो तो गहण निहार्या फैला॥

जन अलाव री राख कुरेदो

में की अंगारा व्हैला॥

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : कुंदन सिंह 'सजल' ,
  • संपादक : डॉ. भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थान साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर