थोड़ौ रोकड़, घणौ उधार

घाटै रौ करियो बौपार।

बोदौ बैर, बावळौ प्यार

आपां रै कैड़ी तकरार।

आंटी टेढी जीवण घाटी

चार चढायां, अेक उतार।

आपस री किचकिच में देखौ

सगळा डूब्या काळीधार।

भरम तणी भींता धुड़तांई

खुल जावै है मन रा द्वार।

उडगी है चैरां री रंगत

सिकलां जाणै लिवी उधार।

लाय लग्यां कुण साबत रैसी

पैला थोड़ौ सोच; विचार।

यूं भी पीड़, किसी कम थारै

क्यूं थूं फेर करै मनवार।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : सत्येन जोशी ,
  • संपादक : भगवतीलाल व्यास
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