हेत, मिलण आपस रा छूट्या,

मिलबा में डर लागै।

पाड़ौसी रा घर में 'पूजा',

कुण—कुण सैणी, सागै।

भेस बदळ'र रैवै कामण,

काळ जादू, जागै।

मीठी—मीठी बातां मांय,

तीखा खंजर, राखै।

कियां बदळगी इतरी दुनिया,

भींतां थर—थर, कांपै।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी गंगा जनवरी-मार्च 2015 ,
  • सिरजक : पूजाश्री ,
  • संपादक : अमरचन्द बोरड़ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ज्ञानपीठ संस्थान
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