हाकम खुद होवे है, चांदी रो चिळको।

दुबळां नै दोवै है, चांदी रो चिळको॥

सूरज-ई सरमावै, चांदो पण नी चमकै।

पळको खुद होवै है, चांदी रो चिळको॥

चांदी रै चिळके री, खिमता रा अे खटका।

धवळाई धोवै है, चांदी रो चिळको॥

सैणा री सैणप रो, सांस घुटै सीमाडै।

बूड़ां नै बोवै है, चांदी रो चिळको॥

चतुराई छोडै नैं, काळख रा कोड करै।

मुनियां नै मोवै है, चांदी रो चिळको॥

‘लालो’ तो ळखणां सूं, बणगो है बैरागी,

रात्यूं नै रोवै है, चांदी रो चिळको॥

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत अक्टूबर 1981 ,
  • सिरजक : लालदास ‘राकेश’ ,
  • संपादक : चन्द्रदान कम्पलीट ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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