गरीब गुरबा नै क्यूं सतावो भाया

दो बोल मीठा बोल हंसावो भाया

किणी मजबूर रै थे काम आवो

दोय पग हेत रा बधावो भाया

आंख्यां में आंसू सुपना में दरद है

हियै में वांरै फूल खिलावो भाया

जरूरत है जांबाज री म्हारै देस नै

दुस्मण नै ताकत दिखावो भाया

हुस्न-इस्क रा किस्सा कांई लिखो

लोई उफणै वा गजल सुणावो भाया

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : अब्दुल समद ‘राही’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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