एक काळम्या को ही घेरो।
सुख थोड़ो, संताप घणेरो॥
मनखपणो खो गयो जगत सूँ,
मिल जावै तो थें भी हेरो॥
कोरी बाताँ घणी हुई अब,
नव जीवन को गीत उकेरो॥
अब तो भैंस सपट ऊँ की ही,
जीं के हाथाँ होव कुतेरो॥
सूरज ज्यूँ उजळा बणजावो,
फेर कठी सूँ आय अँधेरो॥
रामदयाल विगत ईं छोड़ो,
आबा हाळो बगत अवेरो॥