ढाई आखर प्यार का छै प्यार, समझो तो।
मत बणाओ ईं नैं थे ब्योपार, समझो तो।
ढूंढ़ता रस फिर रह्या खाली कळस लेके,
जिन्दगी खुद रस-कळस छै यार, समझो तो।
जात-धरमां में मिनख नैं बांटता डोलो,
देस को छै योही बंटाढार, समझो तो।
अकड़या-अकड़या फिर रह्या झूठा जगत माहीं,
सब सूं ऊपर बैठयो छै करतार, समझो तो।
चांदणी छै धूप छै झिलमिल घणी होवै,
ओस की-सी बूंद यो संसार, समझो तो।
आदमी सूं आदमी इकराम मिल जावै,
अेक पल में होवै बेड़ा पार, समझो तो।