पग रूळ्यां हुवै अंधारो,

छिण में जावै डूब सारो।

पांव री व्है पीड़ नाचै,

सांस ले अटकै जमारो।

प्रीत क्यूं बौपार करदी,

गांव घर बाजार थांरो।

वीणा रा सै तार तूट्या,

बैराग जामै राग सारो।

बात उड़जा पूठ फेर्‌यां,

हामळ भर्‌यां कदै टारो॥

स्रोत
  • पोथी : बिणजारो 2016 ,
  • सिरजक : मोहन पुरी ,
  • संपादक : नागराज शर्मा ,
  • प्रकाशक : बिणजारो प्रकाशन पिलानी
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