लोही रळ तातो हुवै,

दरद रो भातो हुवै।

प्रीत सांकळ खोल राखूं,

कोई पाहुणों आतो हुवै।

ऊंचा चिणैं क्यूं बावळा,

रेत घर जातो हुवै।

अडीकज्यै थूं रात भर,

परभात बण आतो हुवै।

सूखी रीतै आंख क्यूं,

दरिया कोई ल्यातो हुवै॥

स्रोत
  • पोथी : बिणजारो 2016 ,
  • सिरजक : मोहन पुरी ,
  • संपादक : नागराज शर्मा ,
  • प्रकाशक : बिणजारो प्रकाशन पिलानी
जुड़्योड़ा विसै