बस्ती बस्ती सौर हुयो है।

हर जंगल सिरमौर हुयो है॥

भूमीगत हैं सभी देवता

अब प्रेतां रो जोर हुयो है॥

नवीं सदी रा इन्तजार में,

बूढो सूरज और हुयो है॥

फूल, पात, टहनी घायल है,

मौसम आदमखोर हुयो है॥

असंतोष से अजगर जिंदा,

सुविधावां रा सूरज रो मुख॥

सुविधावां रा सूरज रो मुख,

कुछ बंगलां री ओर हुयो है॥

अब असत्य नै मिल्यो बहूमत,

सच से कद कमजोर हुयो है॥

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : कुंदन सिंह 'सजल' ,
  • संपादक : डॉ. भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थान साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर