अब हिवड़ै रा पट खोलो सा

थैं सांची सांची बोलो सा

मूँडे में गुळ घी रा ग्रासा

पण माथा पर क्यूं ठोलो सा

किस्मत री थोथी गेगरियां

लो बैठा बैठा छोलो सा

मिनखपणै रा अळिया कींणां

थैं चुंगी बट्टा तोलो सा

लांठा लटका लेवेला

हाथ करो थोड़ो पोलो सा

चमचा सगळा छाती कूटे

खाली देख भगोलो सा

स्वारथ री बैती गंगा में

दोन्यूं हाथां ने धो लो सा

रोज उडीकै मन री मरवण

कद आसी म्हारो ढोलो सा

प्रेम रतन जद पाकण लागौ

आडो बाझ गियो झोलो सा

स्रोत
  • सिरजक : रतन सिंह चांपावत ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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