थोड़ो ही कुण करै भरोसो थारो,

बीसे ही वातें लखण बुरा।

लूटे तो विण कुण लाखीणे,

जोबन सरखो रतन जुरा॥1॥

अरजण भीम जसा आलीजा,

रेसे बेदल कीया रंग।

जरे तूज कवण जोजरी,

नवपण जसा अमोलख नंग॥2॥

पीळा चावळ कणे परठिया,

बे गम आवै माण बण!

हेर लिया जण जण रा हेतु,

पण रा राखण तरणपण॥3॥

चकवै खट थाका तन छेदे,

पाका जिम तरवर रा पात।

ओपा जुरा पथर नूं आवै,

मानव देह तणी के मात॥4॥

स्रोत
  • पोथी : प्राचीन राजस्थानी काव्य ,
  • सिरजक : ओपो आढो ,
  • संपादक : मनोहर शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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