थै जाणो थांरो जाणै राम

कवि कलम रो सबद धरम रो

सांची बात लिखण रो काम।

दिन में धूळ उडै गळियां में

रात सरपणी सागी है

घोळ फूलिया धूड़ चटावै

मिनखा जूण अभागी है

धिरक जमारौ मिनखाचारौ

रोज कुटीजै सामो-साम।

थै जाणो थांरो जाणै राम।

काळ-अकाळ री चरभर मंडगी

चाब चबीणौ थांरौ है

दुभरिया दिन रात लगालै

मिनख मौत रो चारौ है

सुख रो मोल करै सै कोई

दुख में कुण सो आवै काम।

घर में सांप पळै सदियां सूं

सरप-धरम तो सागी है

काळबेलिया बीण बिसरग्या

सांप-सळीटा बागी है।

मसळ-मूंडकी द्यौ फटकारो

करणो पड़सी काम तमाम।

गळी-गळी में अलख निरंजन

आखर सब नै करणो है

गांव-नगर में मस्तक भंजन

अन्त मंजल पर मरणौ है

आछै घर की आब उतरगी

सांच बखाणौ खावौ डाम।

आंख्यां मीच अंधारौ मतकर

जाग जुगत री बैळा है

मिनखा जूण जुलम रै सरणै

लोग लफंगा भेळा है

दिन धोळै जद लाज लुटीजै

घर को घर सगळौ बदनाम।

थै जाणो थांरो जाणै राम

स्रोत
  • पोथी : अंतस तास ,
  • सिरजक : मोहम्मद सदीक ,
  • प्रकाशक : सलमा प्रकाशन
जुड़्योड़ा विसै