ऊँचा ऊँचा छै मकान

ज्यां म्ह सुख साधन मनमान

सबको सब सूँ जाणै बैर

अस्यो लागै छै यो शहर

अब म्हा भूल्या खुद को नाँव

थारी मनमां आवै गाँव

पीढी परदेसी बंबूळ

आँख्याँ आँख्यां म्ह घसूळ

टाबर काईं खेले लारां

खँचबा लागी अब तलवारां

साता मरगी नाँव नाँव

थारी मनमां आवै गाँव

दुखड़ो जाणै गाजर घाँस

कर्‌जो खेतां म्ह ज्यूं काँस

घर की तुळसी होगी दूर

आँगण रोप्या थापाथूर

नतकै काँटा लागै पाँव

थारी मनमां आवै गाँव

बिगड्यो फळ भाजी को स्वाद

लालच म्ह भूल्या मरजाद

संकट जीवन पै अठपहर

गोरस पीर्‌या छाँ या जहर

असी काईं खाउं खाउं

थारी मनमां आवै गाँव

आम्बो, बड़, पीपळ कटवादी

सडकां कालोन्याँ बणवादी

अंगीरा सो उगतो भाण

दन भर मारै बळता बाण

रूसी राणी होगी छाँव

भारी मनमां आवै गाँव

स्रोत
  • सिरजक : राम नारायण मीणा ‘हलधर’ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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