सारा आंसू पीग्यौ ऊमर को रेतीलौ तीर रे, 
तौ भी नहीं धुपी यादां की या धुंधळी लकीर रे।

उघड़ी मिली म्हांनै पगथळियां गेला पै चौराया पै, 
हाल घड़ी उठ चल्या अस्या सैनाण मिल्या हर छाया पै, 
आसा का म्रिगजळ कै पाछै भटकै मन की पीर रे।

कदी नहीं आया म्हारै आंगण तौ तुळसी पूजबा, 
सापनां के द्वारै भी आतां वै पग लागै धूजबा, 
नीं मिंदर में मिलै न मूंडा सूं बोलै तसबीर रे।

कद की कोई बेल चमेली हाल न आया फूल रे, 
कद का म्हारी पून्यूं ऊपर रह्या बादळा झूल रे, 
कद सूं सिमट्यौ सांभ्यौ मन कौ पड्यौ पचरंग चीर रे।

तातै तवै बूंद ज्यूं टमकै ये गीतां का बोल रे, 
दो जुग बडी कहाणी बणगी, कहूं न तो भी खोल रे, 
कसकै तौ भी काढ न पाऊं यौ दोधास्यौ तीर रे।
स्रोत
  • पोथी : अपरंच ,
  • सिरजक : रघुराजसिंह हाड़ा ,
  • संपादक : गौतम अरोड़ा
जुड़्योड़ा विसै