राजा – ‘भिड़की क्यूं नाहक भेड़ियां, बाड़ाबंधी जी ए लो, 
बळहीणी जी ए लो, कीड़्यां रै लागा कांई पांख? परजाजी॥’

प्रजा – ‘न्याय—सरूपा नित चालस्यो, सत—करमी जी ए 
लो,  सेवा—धरमी जी ए लो, भक्ति सूं बैठास्यां हिवड़ा मांहि, बाल्हाजी॥’ 
मानव जनम थी पावियो, हक मांहरो ए लो, 
ईश्वर दीधोड़ो ए लो, लिखण बोलण अधिकार, राजाजी॥’

राजा — ‘बोलण लिखण रो काम नहिं, हक जूतियां ए 
लो, पशु रूपी जी ए लो, बिरथा ही करै छै बकवाद, परजाजी॥’

प्रजा — ‘धन जोबन दो दिन पाम्हणा, घण लोभीजी ए 
लो, मदमाता जी ए लो, आखिर भूंडो हाल, राजाजी॥’

राजा — ‘बड़कां री कमाई माया मांणस्यां, घण—भोळी जी 
ए लो,  पख—हीणी जी ए लो, म्हारां तो सुखड़ां रो नाहीं छेह, परजाजी॥’

प्रजा — ‘बीजां रा नाहक हम लूटणा, नहिं सुखियारी जी 
ए लो, धिक धाड़वी ए लो, माया बादळ री छांह, राजाजी॥’
 
राजा — ‘जनम लियो छै धणियां वंश में, ध्रम—भीरू जी ए 
लो, श्यामधर्मी जी ए लो, ईश्वर दियो छै म्हानै राज, परजा जी॥’ 

प्रजा — ‘करो छो प्रभू रो झूठो नाम, स्वारथ आंधा जी ए 
लो, कूड़ा—बोला जी ए लो, कोरा—भाटा जी ए लो,  
माळीपन्ना तो चढाया म्हारै हाथ, राजाजी॥’
 
राजा — ‘धरा रा धणी छां जमीं मांहरी, कुण पूछी जी ए 
लो,  बेगारी जी ए लो, पंचायत किण काम? परजाजी॥’
  
प्रजा — ‘पवन अगन उपजाविया, कांई तुछ मानवी ए लो, 
दंभी फोद्या जी ए लो, अगम समदं धरती आभ, भोळाजी॥ 
सकल सरीखा हक एकसा, पिता पूंजी ऊपर लो, 
सांची समता ए लो, सांचो तो धणी छै सरजणहार, राजाजी॥’

राजा — ‘कमाई ऊपर हक मांहरो, बड़का—बोली जी ए लो,  
बहकाई जी ए लो, उड़ास्यां, खूब मन—मौज, परजाजी॥’ 
प्रजा — ‘किण दिन उठाई हळणी हाथ में, बळ—हीणा जी 
ए लो,  आळस—डूबा जी ए लो, खेतां में बहायो किण दिन स्वेद? विषयीजी॥
हाडां रो पसीनो मे’नत मांहरी, धन म्हांरो जी ए लो, पूंजी म्हारी जी ए लो, थे कुण छो मुफत—खाणां’र? राजाजी॥’

राजा — ‘खड़ग उठायो बड़कां हाथ में, बात भूली जी ए 
लो, मूरख—मंडळी ए लो, रंगतां सूं छिड़की छै धरणी मांय, परजाजी॥’

प्रजा — ‘स्वारथ रा आंधा लड़िया कूतरा, मांहो—मांहे जी 
ए लो, पापी खूनी जी ए लो, हिड़काया जी ए लो, रगतां सूं न निपजै भूम, राजाजी॥’

राजा — ‘धन रा रूखाळा काळा नाग छां, व्हीकण हियड़ा 
री हो, मंतर—भूलाणी ए लो, कुण तो लगावै म्हारै हाथ! परजाजी॥’

प्रजा — ‘अधम भोगां में खरची खूटिया, दीवाळिया हो,
आंधा एधूला ए लो, परजा री कमाई एळी खोय, नीयत—हीणा जी॥’
ठगां सूं ठगाया रीता—ठीकरा, कोरा—कूंडा जी ए लो, फोगट—फूंफाड़्या जी ए लो,
सूंपीसंपत सांप न खाय, विषधारी जी॥
सपरोट्या घाल्या छै छाबड़ मांहिनै, कोरा—कीड़ा जी ए लो, 
परड़ोट्या जी ए लो, पाड़्या छै दतंड़ थैली काढ़, राजाजी॥’
 
राजा — ‘लूला गूंगा गहला पूतड़ा, राजस राखै ला ऐ लो, 
मालक बणे ला ए लो, म्हारो छै अटळ अधिकार, परजाजी॥’
  
प्रजा — ‘मायड़ रा मांटी घण धाड़वी, धमकाणा जी ए लो,
घुरकाणा जी ए लो, बण्या नै बिलाया केही बार, भूलाजी॥
धरा रो धणी छै ईश्वर एक, धिक मानवी ए लो, 
धोखा—देणा जी ए लो, म्हैं छां उण रा सांचा पूत, राजाजी॥’
  
राजा — ‘धरा रा धणी जद म्हें नहीं, बहक्योड़ी जी ए लो,
पथ—भूलाणी ए लो, तो बणसी कांई कंगलां री फौज॥’

प्रजा — ‘अक्कल हुवै तो थोड़ा सोच लो, जूना—जुआरी ए 
लो, देखत—आंधा जी ए लो, भाळो क्यूं हिरणां रो झूठो नीर, गाफल जी॥
सम्हल चालो तो सुख पावस्यो, भाई म्हारा जी ए लो,
सत रा प्यारा जी ए लो, बहक्योड़ा रहस्यो न छिन हेक, राजाजी॥’

राजा — ‘फौजां बंदूकां तोपां मांहरी, देखो आंधळी ए लो, 
मारा—कूटी जी ए लो, छिन में न्हांकै सब नै भूंज, परजाजी॥’
स्रोत
  • पोथी : भारतीय साहित्य के निर्माता : केसरी सिंह बारहठ ,
  • सिरजक : केसरी सिंह बारहठ ,
  • संपादक : फतहसिंह मानव ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : द्वितीय
  • पोथी : भारतीय साहित्य के निर्माता : केसरीसिंह बारहठ ,
  • सिरजक : केसरीसिंह बारहठ ,
  • संपादक : फतेहसिंह मानव ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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