न्हाख्यां जा नीचो निरधन नै,

धनिकां री धाक जमातो जा।

मेहनत सूं खाता मिनखां रो,

मगरूर मान घटवातो जा॥

पतियारो थारो पोचो है

लोचो जबान में लागै है।

सारो धन काढै सेंठोड़ा

निबळां रो अतंस जागै है॥

थूं कैवै दिन सोरा आसी,

जासी सै जालिम जेळां में।

खावै वै खुल्ले खाळै धन,

राशि वै भरै रसेलां में॥

दिन-दिन दोरप में काढ करी

कामणियां पूंजी गूंजी री।

ऊंझी झड़कण नै बै जूंझी,

मूंजी मानस रै खूंजी री॥

बिण बडभागण री बद्दुआ सूं

बचणो मुस्किल हो जासी।

बरबाद हुया घरबार सार,

दीस्यो नीं थारो सुखवासी॥

थूं दिन पचास री थग्गी दै

बग्गी में बैठो बगडावै।

जग्गी जद आसा जगमगती,

पग्गी में पेकड़ पकड़ावै॥

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली लोकचेतना री राजस्थानी तिमाही ,
  • सिरजक : वीरेन्द लखावत ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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